स्वप्न मेरे: हिंदी गज़ल
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सोमवार, 24 जून 2019

अभी जगजीत की गजलें सुनेंगे ...

अंधेरों को मिलेंगे आज ठेंगे
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे 

जो तोड़े पेड़ से अमरुद मिल कर 
दरख्तों से कई लम्हे गिरेंगे

किसी के होंठ को तितली ने चूमा
किसी के गाल अब यूँ ही खिलेंगे

गए जो उस हवेली पर यकीनन
दीवारों से कई किस्से झरेंगे

समोसे, चाय, चटनी, ब्रेड पकोड़ा
न होंगे यार तो क्या खा सकेंगे  

न जाना “पालिका बाज़ार” तन्हा
किसी की याद के बादल घिरेंगे

न हो तो नेट पे बैंठे ढूंढ लें फिर
पुराने यार अब यूँ ही मिलेंगे

मुड़ी सी नज़्म दो कानों के बुँदे
किसी के पर्स में कब तक छुपेंगे

अभी तो रात छज्जे पे खड़ी है
अभी जगजीत की गजलें सुनेंगे

सोमवार, 17 जून 2019

आसमानी पंछियों को भूल जा ...


धूप की बैसाखियों को भूल जा  
दिल में हिम्मत रख दियों को भूल जा

व्यर्थ की नौटंकियों को भूल जा
मीडिया की सुर्ख़ियों को भूल जा

उस तरफ जाती हैं तो आती नहीं
इस नदी की कश्तियों को भूल जा

टिमटिमा कर फिर नज़र आते नहीं
रास्ते के जुगनुओं को भूल जा

हो गईं तो हो गईं ले ले सबक
जिंदगी की गलतियों को भूल जा

याद रख्खोगे तो मांगोगे सबब
कर के सारी नेकियों को भूल जा

रंग फूलों के चुरा लेती हैं ये
इस चमन की तितलियों को भूल जा

टूट कर आवाज़ करती हैं बहुत
तू खिजाँ की पत्तियों को भूल जा

इस शहर से उस शहर कितने शहर 
आसमानी पंछियों को भूल जा 

सोमवार, 22 अप्रैल 2019

मेरी निगाह में रहता है वो ज़माने से ...


कभी वो भूल से आए कभी बहाने से  
मुझे तो फर्क पड़ा बस किसी के आने से

नहीं ये काम करेगा कभी उठाने से
ये सो रहा है अभी तक किसी बहाने से

लिखे थे पर न तुझे भेज ही सका अब-तक
मेरी दराज़ में कुछ ख़त पड़े पुराने से

कभी न प्रेम के बंधन को आज़माना यूँ
के टूट जाते हैं रिश्ते यूँ आज़माने से

तुझे छुआ तो हवा झूम झूम कर महकी   
पलाश खिलने लगे डाल के मुहाने से

निगाह भर के मुझे देख क्या लिया उस दिन  
यहाँ के लोग परेशाँ हैं इस फ़साने से

मुझे वो देख भी लेता तो कुछ नहीं कहता
मेरी निगाह में रहता है वो ज़माने से
(तरही गज़ल) 

सोमवार, 15 अप्रैल 2019

चाँद उतरता है होले से ज़ीने पर ...


हुस्नो-इश्क़, जुदाई, दारू पीने पर
मन करता है लिक्खूं नज़्म पसीने पर 

खिड़की से बाहर देखो ... अब देख भी लो  
क्यों पंगा लेती हो मेरे जीने पर 

सोहबत में बदनाम हुए तो ... क्या है तो 
यादों में रहते हैं यार कमीने पर    

लक्कड़ के लट्टू थे, कन्चे कांच के थे
दाम नहीं कुछ भी अनमोल नगीने पर

राशन, बिजली, पानी, ख्वाहिश, इच्छाएं
चुक जाता है सब कुछ यार महीने पर 

खुशबू, बातें, इश्क़ ... ये कब तक रोकोगे  
लोहे की दीवारें, चिलमन झीने पर

छूने से नज़रों के लहू टपकता है
इश्क़ लिखा है क्या सिन्दूर के सीने पर

और वजह क्या होगी ... तुझसे मिलना है
चाँद उतरता है होले से ज़ीने पर

सोमवार, 8 अप्रैल 2019

किसी के दर्द में तो यूँ ही छलक लेता हूँ ...


हज़ार काम उफ़ ये सोच के थक लेता हूँ
में बिन पिए जनाब रोज़ बहक लेता हूँ  

ये फूल पत्ते बादलों में तेरी सूरत है
वहम न हो मेरा में पलकें झपक लेता हूँ

कभी न पास टिक सकेगी उदासी मेरे
तुझे नज़र से छू के रोज़ महक लेता हूँ

हरी हरी वसुंधरा पे सृजन हो पाए 
में बन के बूँद बादलों से टपक लेता हूँ

तमाम रात तुझे देखना है खिड़की से
में चाँद बन के टहनियों में अटक लेता हूँ

मुझे सिफ़त अता करी है मेरे मौला ने
सुबह से शाम पंछियों सा चहक लेता हूँ

यही असूल मुद्दतों से मेरा है काइम
ख़ुशी के साथ साथ ग़म भी लपक लेता हूँ

तमाम अड़चनों से मिट न सकेगी हस्ती
में ठोकरों से ज़िन्दगी का सबक लेता हूँ

सितम हज़ार सह लिए हैं सभी हँस हँस के
किसी के दर्द में तो यूँ ही छलक लेता हूँ

सोमवार, 1 अप्रैल 2019

शर्ट के टूटे बटन में रह गए ...


प्रेम के कुछ दाग तन में रह गए
इसलिए हम अंजुमन में रह गए

सब तो डूबे चुस्कियों में और हम
नर्म सी तेरी छुवन में रह गए

चल दिए कुछ लोग रिश्ता तोड़ कर
कुछ निभाने की जतन में रह गए

छा गए किरदार कुछ आकाश पर
कुछ सिमट के पैरहन में रह गए

टूट कर सपने नहीं आए कभी 
कुछ गुबारे भी गगन में रह गए

अहमियत रिश्तों की कुछ समझी नहीं
अपने अपने ही बदन में रह गए

उड़ गई आंधी घरोंदे तोड़ कर 
सिरफिरे फिर भी चमन में रह गए

रेशमी धागे, मधुर एहसास, पल
शर्ट के टूटे बटन में रह गए

खिडकियों से आ गई ताज़ा हवा
हम मगर फिर भी घुटन में रह गए

सोमवार, 25 मार्च 2019

अरे “शिट” आखरी सिगरेट भी पी ली ...


सुनों छोड़ो चलो अब उठ भी जाएँ
कहीं बारिश से पहले घूम आएँ

यकीनन आज फिर इतवार होगा
उनीन्दा दिन है, बोझिल सी हवाएँ

हवेली तो नहीं पर पेड़ होंगे
चलो जामुन वहाँ से तोड़ लाएँ

नज़र भर हर नज़र देखेगी तुमको
कहीं काला सा इक टीका लगाएँ

पतंगें तो उड़ा आया है बचपन
चलो पिंजरे से अब पंछी उड़ाएँ

कहरवा दादरा की ताल बारिश
चलो इस ताल से हम सुर मिलाएँ

अरे “शिट” आखरी सिगरेट भी पी ली
ये बोझिल रात अब कैसे बिताएँ

सोमवार, 11 मार्च 2019

दुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे ...


सहारा बे-सहारा ढूंढ लेंगे
मुकद्दर का सितारा ढूंढ लेंगे

जो माँ की उँगलियों में था यकीनन
वो जादू का पिटारा ढूंढ लेंगे

गए जिस जिस जगह जा कर वहीं हम
हरा बुन्दा तुम्हारा ढूंढ लेंगे

मेरे कश्मीर की वादी है जन्नत
वहीं कोई शिकारा ढूंढ लेंगे

अभी इस जीन से कर लो गुज़ारा
अमीरी में शरारा ढूंढ लेंगे

बनाना है अगर उल्लू उन्हें तो
कहीं मुझ सा बेचारा ढूंढ लेंगे

नए हैं पंख सपने भी नये हैं       
गगन पे हम गुबारा ढूंढ लेंगे

सितारे रात भर टूटे जहाँ ... चल  
वहीं अपने दुबारा ढूंढ लेंगे

नहीं जो लक्ष्य हम, कोई तो होगा
किधर है ये इशारा ढूंढ लेंगे

पिघलती धूप के मंज़र पे मिलना
नया दिलकश नज़ारा ढूंढ लेंगे

जो मिल के खो गईं खुशियाँ कभी तो
दुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे

सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

झपकियों ही झपकियों में रात कब की हो गई ...

इस नज़र से उस नज़र की बात लम्बी हो गई
मेज़ पे रक्खी हुई ये चाय ठंडी हो गई

आसमानी शाल ने जब उड़ के सूरज को ढका
गर्मियों की दो-पहर भी कुछ उनींदी हो गई

कुछ अधूरे लफ्ज़ टूटे और भटके राह में     
अधलिखे ख़त की कहानी और गहरी हो गई

रात के तूफ़ान से हम डर गए थे इस कदर
दिन सलीके से उगा दिल को तसल्ली हो गई

माह दो हफ्ते निरंतर, हाज़री देता रहा
पन्द्रहवें दिन आसमाँ से यूँ ही कुट्टी हो गई

कुछ दिनों का बोल कर अरसा हुआ लौटीं न तुम 
इश्क की मंडी में जानाँ तबसे मंदी हो गई

बादलों की बर्फबारी ने पहाड़ों पर लिखा   
रात जब सो कर उठी शहरों में सर्दी हो गई

कान दरवाज़े की कुंडी में ही अटके रह गए
झपकियों ही झपकियों में रात कब की हो गई

सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

हया किसी के निगाहों का कह रही सच है ...


यही ज़मीन, यही आसमां, यही सच है 
यहीं है स्वर्ग, यहीं नर्क, ज़िन्दगी सच है

हसीन शाम के बादल का सुरमई मंज़र 
हथेलियों पे सजी रात की कली सच है

उदास रात की स्याही से मत लिखो नगमें  
प्रभात की जो मधुर रागिनी वही सच है  

ये तू है, मैं हूँ, नदी, पत्तियों का यूँ हिलना
ये कायनात, परिंदे, हवा सभी सच है

अभी जो पास है वो एक पल ही है जीवन
किसी के इश्क में डूबी हुई ख़ुशी सच है

कभी है गम तो ख़ुशी, धूप, छाँव, के किस्से
झुकी झुकी सी नज़र सादगी हंसी सच है

नज़र नज़र से मिली एक हो गयीं नज़रें
हया किसी के निगाहों का कह रही सच है

सोमवार, 28 जनवरी 2019

वक़्त ने कुछ अनकही मजबूरियों को रख दिया ...

मखमली से फूल नाज़ुक पत्तियों को रख दिया
शाम होते ही दरीचे पर दियों को रख दिया

लौट के आया तो टूटी चूड़ियों को रख दिया
वक़्त ने कुछ अनकही मजबूरियों को रख दिया

आंसुओं से तर-बतर तकिये रहे चुप देर तक  
सलवटों ने चीखती खामोशियों को रख दिया

छोड़ना था गाँव जब रोज़ी कमाने के लिए
माँ ने बचपन में सुनाई लोरियों को रख दिया 

भीड़ में लोगों की दिन भर हँस के बतियाती रही 
रास्ते पर कब न जाने सिसकियों को रख दिया

इश्क़ के पैगाम के बदले तो कुछ भेजा नहीं
पर मेरी खिड़की पे उसने तितलियों को रख दिया

नाम जब आया मेरा तो फेर लीं नज़रें मगर
भीगती गजलों में मेरी शोखियों को रख दिया

चिलचिलाती धूप में तपने लगी जब छत मेरी
उनके हाथों की लिखी कुछ चिट्ठियों को रख दिया 

कुछ दिनों को काम से बाहर गया था शह्र के
पूड़ियों के साथ उसने हिचकियों को रख दिया

कुछ ज़ियादा कह दिया, वो चुप रही पर लंच में
साथ में सौरी के मेरी गलतियों को रख दिया

बीच ही दंगों के लौटी ज़िन्दगी ढर्रे पे फिर
शह्र में जो फौज की कुछ टुकड़ियों को रख दिया

कुछ दलों ने राजनीती की दुकानों के लिए
वोट की शतरंज पे फिर फौजियों को रख दिया

सोमवार, 24 दिसंबर 2018

सुन युधिष्ठर फैंक दे अपने ये पासे


प्रेम के सब गीत अब लगते हैं बासे
दूर जब से हो गया हूँ प्रियतमा से

मुड़ के देखा तो है मुमकिन रोक ना लें 
नम सी आँखें और कुछ चेहरे उदासे

नाम क्या दोगे हमारी प्यास का तुम
पी लिया सागर रहे प्यासे के प्यासे

आ रहे हैं खोल के रखना हथेली
टूटते तारे भी दे देते हैं झांसे

उम्र भर थामे रहे सच का ही दामन   
और पीछे रह गए हम अच्छे ख़ासे

फूट जाएगा तो सागर लील लेगा 
दिल का मैं साझा करू अब दर्द कासे 

हर गली मिल जाएँगे कितने ही शकुनी 
सुन युधिष्ठर फैंक दे अपने ये पासे 

सोमवार, 10 दिसंबर 2018

थमा गई थी वो ख़त हाथ में मेरे फट से ...


कहाँ से आई कहाँ चूम के गई झट से 
शरारती सी थी तितली निकल गई ख़ट से

हसीन शोख़ निगाहों में कुछ इशारा था 
न जाने कौन से पल आँख दब गई पट से

ज़मीं पे आग के झरने दिखाई देते हैं  
गिरी है बूँद सुलगती हुयी तेरी लट से

डरा हुआ सा शहर है, डरे हुए पंछी 
डरा हुआ सा में खुद भी हूँ अपनी आहट से

लगे थे सब तो छुडाने में हाथ पर बिटिया
ज़रूरतों में बुढापे की ले गई हट से

नहीं थे सेर, सवा सेर से, मिले अब तक
उड़े जो हाथ के तोते समझ गए चट से

न जाने कौन थी, रिश्ता था क्या मेरा, फिर भी 
थमा गई थी वो ख़त हाथ में मेरे फट से

सोमवार, 3 दिसंबर 2018

क्यों है ये संसार अपने दरम्याँ ...


क्यों जुड़े थे तार अपने दरम्याँ
था नहीं जब प्यार अपने दरम्याँ

रात बोझिल, सलवटें, खामोश दिन
बोझ सा इतवार अपने दरम्याँ

प्रेम, नफरत, लम्स, कुछ तो नाम दो
क्या है ये हरबार अपने दरम्याँ

मैं खिलाड़ी, तुम भी शातिर कम नहीं
जीत किसकी हार अपने दरम्याँ

छत है साझा फांसला मीलों का क्यों
क्या है कारोबार अपने दरम्याँ

सिलसिला रीति, रिवाजो-रस्म का 
क्यों है ये संसार अपने दरम्याँ