पूछता हूँ अपने आप से ... क्या प्रेम रहा है हर वक़्त
... या इसके आवरण के पीछे छुपी रहती है शैतानी सोच ... अन्दर बाहर एक बने रहने का नाटक करता इंसान ... क्या थक कर अन्दर या बाहर के किसी एक सच को अंजाम
दे पायेगा ... सुनो तुम अगर पढ़ रही हो तो इस बात को दिल से न लगाना ... सच तो तुम जानती
ही हो ...
तुम्हें देख कर मुस्कुराता हूँ
जूड़े में पिन लगाती तुम कुछ गुनगुना रही हो
वर्तमान में रहते हुए
अदृश्य वर्तमान में उतर जाने की चाहत रोक नहीं पाता
हालांकि रखता हूँ अपना चेतन वर्तमान भी साथ
मेरे शैतान का ये सबसे अच्छा शग़ल रहा है
चेहरे पर मुस्कान लिए "स्लो मोशन" में
आ जाता हूँ तुम्हारे इतना करीब
की टकराने लगते है
तुम्हारी गर्दन के नर्म रोएं, मेरी गर्म साँसों से
ठीक उसी समय
मुन्द्वा देता हूँ नशे के आलम में डूबी तुम्हारी दो
आँखें
गाढ़ देता हूँ जूड़े में लगा पिन, चुपके से तुम्हारी
गर्दन में
यक-ब-यक लम्बे होते दो दांतों की तन्द्रा तोड़ कर
लौट आता हूँ वर्तमान में
मसले हुए जंगली गुलाब की गाढ़ी लाली
चिपक जाती है उँगलियों में ताज़ा खून की खुशबू लिए
मैं अब भी मुस्कुरा रहा हूँ तुम्हे देख कर
जूड़े में पिन लगाती तुम भी कुछ गुनगुना रही हो
इश ... पढ़ा तो नहीं न तुमने ...
#जंगली_गुलाब