सजाई महफिलें जो
प्रेम की खामोश पायल ने
मधुर वंशी बजा दी
नेह की फिर श्याम श्यामल ने
शिकायत क्या करूँ
इस खेल में मैं भी तो शामिल हूँ
मेरी नींदों को
छीना है किसी मासूम काजल ने
वो मिलते ही
हकीकत हर किसी की जान लेता है
मचा रक्खी है
कैसी खलबली उस एक पागल ने
मुकम्मल जानने को
क्यों तुम्हें हर बात हो मालुम
पके हैं या के
हैं कच्चे बता दी एक चावल ने
फलक तो मिल गया
लेकिन कसक सी रह गयी दिल में
न जाने क्यों
मेरा रस्ता नहीं रोका है बादल ने
सितम, दुःख
दर्द, मुश्किल राह में जितनी चली आएं
बलाओं से बचा
रक्खा है मुझको माँ के आँचल ने