स्वप्न मेरे: नवंबर 2018

मंगलवार, 27 नवंबर 2018

सजाई महफिलें जो प्रेम की खामोश पायल ने ...


सजाई महफिलें जो प्रेम की खामोश पायल ने
मधुर वंशी बजा दी नेह की फिर श्याम श्यामल ने

शिकायत क्या करूँ इस खेल में मैं भी तो शामिल हूँ
मेरी नींदों को छीना है किसी मासूम काजल ने

वो मिलते ही हकीकत हर किसी की जान लेता है
मचा रक्खी है कैसी खलबली उस एक पागल ने

मुकम्मल जानने को क्यों तुम्हें हर बात हो मालुम 
पके हैं या के हैं कच्चे बता दी एक चावल ने

फलक तो मिल गया लेकिन कसक सी रह गयी दिल में
न जाने क्यों मेरा रस्ता नहीं रोका है बादल ने

सितम, दुःख दर्द, मुश्किल राह में जितनी चली आएं 
बलाओं से बचा रक्खा है मुझको माँ के आँचल ने

सोमवार, 19 नवंबर 2018

पागल दिल रुक जाओ, धक धक बंद करो ...

धूप न आए जेब में तब तक बंद करो
शाम को रोको दिन का फाटक बंद करो

बरसेंगे काले बादल जो ठहर गए
हवा से कह दो अपने नाटक बंद करो

प्रेम नहीं जो है मुझसे इस जीवन में
दिल के दरवाज़े पे दस्तक बंद करो  

जाना सच में अच्छी लगती हो सब से
दर्पण भी कहता है, अब शक बंद करो

गठ-बंधन के अभी इशारे आते हैं
जाना दिल पे अपना तो हक़ बंद करो

रोज़ चुनावों का ही मौसम रहता है
हे नेताओं अब तो बक बक बंद करो

बिन देखे तुम को वो ही यूँ चली गई 
पागल दिल रुक जाओ, धक धक बंद करो

सोमवार, 12 नवंबर 2018

एक प्रतिमा विशाल भी होगी ...


खेत होंगे कुदाल भी होगी
लहलहाती सी डाल भी होगी

धूप के इस तरह मुकरने में
कुछ तो बादल की चाल भी होगी

गौर से इसकी थाप को सुनना
बूँद के साथ ताल भी होगी

जोर से बोल दें अगर पापा
पूछने की मजाल भी होगी

सब्जी, रोटी के साथ है मीठा 
आज डब्बे में दाल भी होगी

उनकी यादों के अध-जले टुकड़े
आसमानी सी शाल भी होगी

यूँ उजाला नज़र नहीं आता
चुप सी जलती मशाल भी होगी

प्रेम जीता हो दिल में तो अकसर
एक प्रतिमा विशाल भी होगी 

सोमवार, 5 नवंबर 2018

वक़्त ...


वक़्त के इक वार से पर्वत दहल गया
वक़्त के आँचल तले सपना कुचल गया

फर्श से वो अर्श पे पल भर में आ गए
वक़्त के हाथों में जो लम्हा मचल गया

गर्त में हम वक़्त के डूबे जरूर थे
वक़्त पर अपना भी वक़्त पे संभल गया

हम सवालों के जवाबो में उलझ गए
वक़्त हमको छोड़ के आगे निकल गया

वक़्त ने सब सोच के करना था वक़्त पे 
वक़्त अपना वक़्त आने पे बदल गया

जेब में रहती थी दुनिया वक़्त पे नज़र 
पर न जाने कब ये मुट्ठी से फिसल गया