धीरे धीरे अपने सारे दूर हुवे
तन्हा रहने को बूढ़े मजबूर हुवे
बचपन बच्चों के बच्चों में देखूँगा
कहते थे जो उनके सपने चूर हुवे
नाते रिश्तेदार सभी उग आए हैं
लोगों का कहना है हम मशहूर हुवे
घुटनों से लाचार हुवे उस दिन जो हम
किस्से फैल गये की हम मगरूर हुवे
गाड़ी है पर कंधे चार नहीं मिलते
जाने कैसे दुनिया के दस्तूर हुवे
पहले उनकी यादें में जी लेते थे
यादों के किस्से ही अब नासूर हुवे
गुरुवार, 24 नवंबर 2011
गुरुवार, 17 नवंबर 2011
पिघलती धूप का सूरज कोई पागल निकाले
पिघलती धूप का सूरज कोई पागल निकाले
लगेगी आग कह दो आसमां बादल निकाले
पहाड़ों को बचा ले कम करे मिट्टी की गर्मी
कहो की आदमी से फिर नए जंगल निकाले
सुना है वादियों में सर्द होने को है मौसम
कहो की धूप से अपना नया कम्बल निकाले
चुरा लेता है जो संगीन के साए में अक्सर
किसी की आँख से भीगा हुवा काजल निकाले
पड़े हैं गाँव में मुद्दत से घायल राह तकते
कहाँ अर्जुन पितामह के लिए जो जल निकाले
किसी के पास है पैसा किसी के पास आंसू
वो पागल जेब से कुछ कहकहे हरपल निकाले
लगेगी आग कह दो आसमां बादल निकाले
पहाड़ों को बचा ले कम करे मिट्टी की गर्मी
कहो की आदमी से फिर नए जंगल निकाले
सुना है वादियों में सर्द होने को है मौसम
कहो की धूप से अपना नया कम्बल निकाले
चुरा लेता है जो संगीन के साए में अक्सर
किसी की आँख से भीगा हुवा काजल निकाले
पड़े हैं गाँव में मुद्दत से घायल राह तकते
कहाँ अर्जुन पितामह के लिए जो जल निकाले
किसी के पास है पैसा किसी के पास आंसू
वो पागल जेब से कुछ कहकहे हरपल निकाले
बुधवार, 9 नवंबर 2011
रोने से कुछ दिल का बोझ उतर जाता है
धीरे धीरे हर सैलाब उतर जाता है
वक्त के साथ न जाने प्यार किधर जाता है
यूँ ना तोड़ो झटके से तुम नींदें मेरी
आँखों से फिर सपना कोई झर जाता है
आने जाने वालों से ये कहती सड़कें
इस चौराहे से इक रस्ता घर जाता है
बचपन और जवानी तो आनी जानी है
सिर्फ़ बुढ़ापा उम्र के साथ ठहर जाता है
सीमा के उस पार भी माएँ रोती होंगी
बेटा होता है जो सैनिक मर जाता है
अपने से ज़्यादा रहता हूँ तेरे बस में
चलता है ये साया जिस्म जिधर जाता है
सुख में मेरे साथ खड़े थे बाहें डाले
दुख आने पे अक्सर साथ बिखर जाता है
कुछ बातें कुछ यादें दिल में रह जाती हैं
कैसे भी बीते ये वक़्त गुज़र जाता है
माना रोने से कुछ बात नहीं बनती पर
रोने से कुछ दिल का बोझ उतर जाता है
वक्त के साथ न जाने प्यार किधर जाता है
यूँ ना तोड़ो झटके से तुम नींदें मेरी
आँखों से फिर सपना कोई झर जाता है
आने जाने वालों से ये कहती सड़कें
इस चौराहे से इक रस्ता घर जाता है
बचपन और जवानी तो आनी जानी है
सिर्फ़ बुढ़ापा उम्र के साथ ठहर जाता है
सीमा के उस पार भी माएँ रोती होंगी
बेटा होता है जो सैनिक मर जाता है
अपने से ज़्यादा रहता हूँ तेरे बस में
चलता है ये साया जिस्म जिधर जाता है
सुख में मेरे साथ खड़े थे बाहें डाले
दुख आने पे अक्सर साथ बिखर जाता है
कुछ बातें कुछ यादें दिल में रह जाती हैं
कैसे भी बीते ये वक़्त गुज़र जाता है
माना रोने से कुछ बात नहीं बनती पर
रोने से कुछ दिल का बोझ उतर जाता है
गुरुवार, 3 नवंबर 2011
भूल गए जो खून खराबा करते हैं ...
भूल गए जो खून खराबा करते हैं
खून के छींटे अपने पर भी गिरते हैं
दिन में गाली देते हैं जो सूरज को
रात गये वो जुगनू का दम भरते हैं
तेरी राहों में जो फूल बिछाते थे
लोग वो अक्सर मारे मारे फिरते हैं
आग लगा देते हैं दो आंसू पल में
कहने को तो आँखों से ही झरते हैं
उन सड़कों की बात नहीं करता कोई
जिनसे हो कर अक्सर लोग गुज़रते हैं
हाथों को पतवार बना कर निकले जो
सागर में जाने से कब वो डरते हैं
पूजा की थाली है पलकें झुकी हुईं
तुझ पे जाना मुद्दत से हम मरते हैं
खून के छींटे अपने पर भी गिरते हैं
दिन में गाली देते हैं जो सूरज को
रात गये वो जुगनू का दम भरते हैं
तेरी राहों में जो फूल बिछाते थे
लोग वो अक्सर मारे मारे फिरते हैं
आग लगा देते हैं दो आंसू पल में
कहने को तो आँखों से ही झरते हैं
उन सड़कों की बात नहीं करता कोई
जिनसे हो कर अक्सर लोग गुज़रते हैं
हाथों को पतवार बना कर निकले जो
सागर में जाने से कब वो डरते हैं
पूजा की थाली है पलकें झुकी हुईं
तुझ पे जाना मुद्दत से हम मरते हैं
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