स्वप्न मेरे: जून 2016

सोमवार, 27 जून 2016

ब्लॉग पे लगता है जैसे शायरी सोई हुई ...

कुदरती एहसास है या जिंदगी सोई हुई
बर्फ की चादर लपेटे इक नदी सोई हुई

कुछ ही पल में फूल बन कर खिल-खिलाएगी यहाँ
कुनमुनाती धूप में कच्ची कली सोई हुई

रात भर आँगन में पहरा जान कर देता रहा
मोंगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई

थाल पूजा का लिए तुम आ रही हो दूर से
आसमानी शाल ओढ़े जागती सोई हुई

यूँ भी देखा है कभी इस प्रेम के संसार में
जागता प्रेमी मिला और प्रेयसी सोई हुई

फेस-बुक के शोर में सब इस कदर मसरूफ हैं
ब्लॉग पे लगता है जैसे शायरी सोई हुई

कुछ कटे से हाथ, कुछ साँसें, सुलगती सिसकियाँ
संगे-मरमर ओढ़ कर मुमताज़ थी सोई हुई
(तरही ग़ज़ल)

सोमवार, 20 जून 2016

जिसे अपना नहीं बस दूसरों का दर्द होगा ...

किसी उजड़े हुए दिल का गुबारो-गर्द होगा
सुना है आज मौसम वादियों में सर्द होगा

मेरी आँखों में जो सपना सुनहरी दे गया है
गुज़रते वक़्त का कोई मेरा हमदर्द होगा

बहा कर जो पसीना खेत में सोना उगा दे
हज़ारों में यकीनन एक ही वो मर्द होगा

कहाँ है तोड़ने का दम किसी की बाज़ुओं में
गिरा जो शाख से पत्ता यकीनन ज़र्द होगा

कहाँ मिलते हैं ऐसे लोग दौरे-जिंदगी में
जिसे अपना नहीं बस दूसरों का दर्द होगा  

मंगलवार, 14 जून 2016

कुछ गुनाहों की सजा मिलती नहीं ...

आँख में उम्मीद जो पलती नहीं
रात काली ढल के भी ढलती नहीं

भूख भी है प्यास भी कुछ और भी
प्रेम से बस जिंदगी चलती नहीं

हौंसला तो ठीक है लकड़ी भी हो
आग वरना देर तक जलती नहीं

इश्क तिकड़म से भरा वो खेल है
दाल जिसमें देर तक गलती नहीं

है कहाँ मुमकिन हमारे बस में फिर
ज़िंदगी में हो कभी गलती नहीं

डोर रिश्तों की न टूटे जान लो
गाँठ आसानी से फिर खुलती नहीं

है शिकायत रब से क्यों जीते हुए
कुछ गुनाहों की सजा मिलती नहीं


मंगलवार, 7 जून 2016

बिन पिए ही रात बहकने लगी ...

ईंट ईंट घर की दरकने लगी
नीव खुद-ब-खुद ही सरकने लगी

बात जब बदलने लगी शोर में
छत दरो दिवार चटकने लगी

क्या हुआ बदलने लगा आज रुख
जलने से मशाल हिचकने लगी

बादलों को ले के उड़ी जब हवा
धूप बे-हिसाब दहकने लगी

दीप आँधियों में भी जलता रहा
रात को ये बात खटकने लगी

धर्म के गुज़रने लगे काफिले
गर्द फिर लहू से महकने लगी

सच की बारिशें जो पड़ीं झूम के
झूठ की ज़मीन सरकने लगी

बे-नकाब यूँ ही तुम्हे देख कर
बिन पिए ही रात बहकने लगी