कुदरती एहसास है या जिंदगी सोई हुई
बर्फ की चादर लपेटे इक नदी सोई हुई
कुछ ही पल में फूल बन कर खिल-खिलाएगी यहाँ
कुनमुनाती धूप में कच्ची कली सोई हुई
रात भर आँगन में पहरा जान कर देता रहा
मोंगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई
थाल पूजा का लिए तुम आ रही हो दूर से
आसमानी शाल ओढ़े जागती सोई हुई
यूँ भी देखा है कभी इस प्रेम के संसार में
जागता प्रेमी मिला और प्रेयसी सोई हुई
फेस-बुक के शोर में सब इस कदर मसरूफ हैं
ब्लॉग पे लगता है जैसे शायरी सोई हुई
कुछ कटे से हाथ, कुछ साँसें, सुलगती सिसकियाँ
संगे-मरमर ओढ़ कर मुमताज़ थी सोई हुई
(तरही ग़ज़ल)
बर्फ की चादर लपेटे इक नदी सोई हुई
कुछ ही पल में फूल बन कर खिल-खिलाएगी यहाँ
कुनमुनाती धूप में कच्ची कली सोई हुई
रात भर आँगन में पहरा जान कर देता रहा
मोंगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई
थाल पूजा का लिए तुम आ रही हो दूर से
आसमानी शाल ओढ़े जागती सोई हुई
यूँ भी देखा है कभी इस प्रेम के संसार में
जागता प्रेमी मिला और प्रेयसी सोई हुई
फेस-बुक के शोर में सब इस कदर मसरूफ हैं
ब्लॉग पे लगता है जैसे शायरी सोई हुई
कुछ कटे से हाथ, कुछ साँसें, सुलगती सिसकियाँ
संगे-मरमर ओढ़ कर मुमताज़ थी सोई हुई
(तरही ग़ज़ल)