सोमवार, 31 जनवरी 2022
शनिवार, 15 जनवरी 2022
परवाज़ परिंदों की अभी बद-हवास है ...
दो बूँद गिरा दे जो अभी उसके पास है,.
बादल से कहो आज मेरी छत उदास है.
तबका न कोई चैनो-अमन से है रह रहा,
सुनते हैं मगर देश में अपने विकास है.
ज़ख्मी है बदन साँस भी मद्धम सी चल रही,
टूटेगा मेरा होंसला उनको क़यास है.
था छेद मगर फिर भी किनारे पे आ लगी,
सागर से मेरी कश्ती का रिश्ता जो ख़ास है.
दीवार खड़ी कर दो चिरागों को घेर कर,
कुछ शोर हवाओं का मेरे आस पास है.
छिड़का है फिजाओं में लहू जिस्म काट कर,
तब जा के सवेरे का सिन्दूरी लिबास है.
कह दो की उड़ानों पे न कब्ज़ा किसी का हो,
परवाज़ परिंदों की अभी बद-हवास है.
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