ख्व़ाब है बदनाम आवारा मेरा भटका हुआ.
मखमली सी याद है के पाँव की दस्तक कोई,
दिल के दरवाज़े में हलके से कहीं खटका हुआ.
ढेर सारी नेमतें ख़ुशियाँ उसी में बन्द हैं,
ट्रंक बापू का कबाड़े में जो है पटका हुआ.
हम तरक्क़ी के नशे में छोड़ कर हैं आ गए,
प्रेम धागा घर के रोशन-दान में लटका हुआ.
गुफ़्तगू करते थे खुद से आईने के सामने,
एक दिन हमको मिला वो बीच से चटका हुआ.