स्वप्न मेरे: मई 2025

शनिवार, 31 मई 2025

एक दिन हमको मिला वो बीच से चटका हुआ ...

मुद्दतों से है तुम्हारी आँख में अटका हुआ.
ख्व़ाब है बदनाम आवारा मेरा भटका हुआ.

मखमली सी याद है के पाँव की दस्तक कोई,
दिल के दरवाज़े में हलके से कहीं खटका हुआ.

ढेर सारी नेमतें ख़ुशियाँ उसी में बन्द हैं,
ट्रंक बापू का कबाड़े में जो है पटका हुआ.

हम तरक्क़ी के नशे में छोड़ कर हैं आ गए,
प्रेम धागा घर के रोशन-दान में लटका हुआ.

गुफ़्तगू करते थे खुद से आईने के सामने,
एक दिन हमको मिला वो बीच से चटका हुआ.

गुरुवार, 15 मई 2025

उनको तो सिर्फ एक ये चिल्लर दिखाई दे ...

चाहत यही है काश वो घर-घर दिखाई दे
वादी में काश्मीर में केसर दिखाई दे

ऐसा न काश एक भी मंज़र दिखाई दे
हाथों में हमको यार के खंजर दिखाई दे

अंदर से जो है काश वो बाहर दिखाई दे
सुख दुख के बीच कोई तो अन्तर दिखाई दे

बादल भी काश सोच समझ कर ले फैंसला
बरसें न गर ग़रीब का छप्पर दिखाई दे

कहते हैं लोग आज भी मेरे लिए यही
अंदर वही बशर है जो बाहर दिखाई दे

इंसान देख ले तो उसे दिख ही जाएगा
सब कुछ तो साफ़ साफ़ ही अंदर दिखाई दे

सिक्कों के साथ मन का ये बच्चा चहक उठा
उनको तो सिर्फ एक ये चिल्लर दिखाई दे