मंगलवार, 20 अप्रैल 2021
बुधवार, 7 अप्रैल 2021
कन्धे पे अपने भार उठाएँ ... मुझे न दें ...
ले कर गुलाब रोज़
ही आएँ …
मुझे न दें.
गैरों का साथ यूँ
ही निभाएँ … मुझे न दें.
गम ज़िन्दगी में
और भी हैं इश्क़ के सिवा,
कह दो की बार बार
सदाएँ …
मुझे न दें.
इसको खता कहें के
कहें इक नई अदा,
हुस्ने-बहार रोज़
लुटाएँ …
मुझे न दें.
सुख चैन से कटें
जो कटें जिंदगी के दिन,
लम्बी हो ज़िन्दगी
ये दुआएँ …
मुझे न दें.
शायद में उनके
इश्क़ के काबिल नहीं रहा,
आखों से वो शराब
पिलाएँ ... मुझे न दें.
खेलें वो खेल
इश्क़ में पर दर्द हो मुझे,
उनका है ये गुनाह
सज़ाएँ ... मुझे न दें.
उम्मीद दोस्तों
से नहीं थी, मगर था सच,
हिस्सा मेरा वो
रोज़ उठाएँ ... मुझे न दें.
खुशबू भरे वो ख़त
जो मेरे नाम थे लिखे,
खिड़की से रोज़ रोज़
उड़ाएँ ... मुझे न दें.
देखा है ज़िंदगी
में पिता जी को उम्र भर,
कन्धे पे अपने
भार उठाएँ ... मुझे न दें.
सदस्यता लें
संदेश (Atom)