पता होता है उन्हें
की रौशनी का एक जलता चिराग
जरूर होता है अंधेरे के उस छोर पे
जहां बदलने लगती है जीवन की
आशा, घोर निराशा में
की मुश्किलों की आंच से
जलने वाला चराग
उस काया ने ही तो रक्खा
होता है दिल के किसी सुनसान कोने में
पता होता है उन्हें
की नहीं मिलते खुशियों के
खजाने उस तिलिस्मी दुनिया से
जिसका दरवाज़ा बस, बस में है
अलीबाबा के
उन चालिस चोरों के अलावा
की जिंदगी की हर शै मैं बिखरी
खुशियां ढूँढने का फन
चुपचाप उस काया ने ही उतारा
होता है गहरे कहीं
पता होता है उन्हें
की कट जाएंगे जिंदगी के
तमाम ऊबड़ खाबड़ रस्ते, सहज ही
की उस खुरदरी सतह पे चलने
का हुनर भी सिखाया होता है उसी काया ने
ओर फिर साथ होता है एहसास,
उस काया का
जो कभी अकेला नहीं होने
देता
पंछी जब छोड के जाते हैं
घोंसला, लौटने के लिए
तो पता होता है उन्हें की
खड़ी होगी झुर्रियों से लदी वत्सल काया
असीसों से लदे दो हाथ
उठाये, उनके इंतज़ार में
तैयार तो मैं भी था, (या
शायद नहीं था) लौटने को उस घरोंदे में
पर देर तो हो ही गई थी मुझसे
उस वत्सल काय की जगह, अब
तेरी तस्वीर टंगी है माँ