आम सा ये आदमी जो अड़ गया ...
सच के लिए हर किसी से लड़ गया.
नाम का झन्डा उसी का गढ़ गया.
ठीक है मिलती रहे जो दूर से,
धूप में ज्यादा टिका जो सड़ गया.
हाथ बढ़ाया न शब्द दो कहे,
मार के ठोकर उसे वो बढ़ गया.
प्रेम के नगमों से थकेगा नहीं,
आप का जादू कभी जो चढ़ गया.
होश ठिकाने पे आ गए सभी,
वक़्त तमाचा कभी जो जड़ गया.
बाल पके, एड़ियाँ भी घिस गईं,
कोर्ट से पाला कभी जो पड़ गया.
जो न सितम मौसमों के सह सका,
फूल कभी पत्तियों सा झड़ गया.
तन्त्र की हिलने लगेंगी कुर्सियाँ,
आम सा ये आदमी जो अड़ गया.
तन्त्र की हिलने लगेंगी कुर्सियाँ,
जवाब देंहटाएंआम सा ये आदमी जो अड़ गया.
एक सधी और बहुत अच्छी गजल
वाह हमेशा की तरह लाजवाब
जवाब देंहटाएंवाह सर बहुत बढ़िया।🌻
जवाब देंहटाएंवाह सर जी। शानदार ग़ज़ल। आपने ज़िन्दगी के हालात को बखूबी बयाँ किया है।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 08-01-2021) को "आम सा ये आदमी जो अड़ गया." (चर्चा अंक- 3940) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
सूचनार्थ- आज की चर्चा की शीर्षक पंक्ति आपकी रचना रचना-"आम सा ये आदमी जो अड़ गया." रहेगी ।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बेहतरीन ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर। जीवन के बहुरूप बिखरते हुये से......
जवाब देंहटाएंजो न सितम मौसमों के सह सका,
जवाब देंहटाएंफूल कभी पत्तियों सा झड़ गया.
तन्त्र की हिलने लगेंगी कुर्सियाँ,
आम सा ये आदमी जो अड़ गया.
बहुत सटीक।
हर शेर लाजवाब एवं कुछ कहता हुआ..बेहतरीन ग़ज़ल..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंइश्क राजनीति का मिश्रण। 😄
लाजवाब
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंहोश ठिकाने पे आ गए सभी,
जवाब देंहटाएंवक़्त तमाचा कभी जो जड़ गया.
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तन्त्र की हिलने लगेंगी कुर्सियाँ,
आम सा ये आदमी जो अड़ गया.
बहुत सटीक सामयिक चिंतन
जो न सितम मौसमों के सह सका,
जवाब देंहटाएंफूल कभी पत्तियों सा झड़ गया.
बेहतरीन ग़ज़ल 🌹🙏🌹
बहुत सुंदर प्रस्तुति, सच्चाई बयान करती हुई
जवाब देंहटाएंलाजवाब शेर।
जवाब देंहटाएंहोश ठिकाने पे आ गए सभी,
जवाब देंहटाएंवक़्त तमाचा कभी जो जड़ गया.
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लाजवाब प्रस्तुति। आपको शुभकामनाएँ।
वाह ! छोटे-छोटे चित्रों से जीवन के विभिन्न पहलुओं पर रौशनी बिखेरतीं सुंदर पंक्तियाँ !
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंसुन्दर गज़ल....
जवाब देंहटाएंवाह! कमाल लिखा।
जवाब देंहटाएंबाल पके, एड़ियाँ भी घिस गईं,
जवाब देंहटाएंकोर्ट से पाला कभी जो पड़ गया.,,,, बहुत सच बात है,बहुत सुंदर रचना हमेशा की तरह ।
तन्त्र की हिलने लगेंगी कुर्सियाँ,
जवाब देंहटाएंआम सा ये आदमी जो अड़ गया.
बहुत खूब दिगंबर जी। अव्यवस्था, अध्यात्म और प्यार सभी कुछ समाहित हैं इस सरल शब्दों में लिखी गई शानदार ग़ज़ल में। वाह से कम कुछ नहीं। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई🙏🙏
तन्त्र की हिलने लगेंगी कुर्सियाँ,
जवाब देंहटाएंआम सा ये आदमी जो अड़ गया.
बेहतरीन 🙏
जुदा है अंदाज की बानगी ।
जवाब देंहटाएंबाल पके, एड़ियाँ भी घिस गईं,
जवाब देंहटाएंकोर्ट से पाला कभी जो पड़ गया.
वाह!!!!
तन्त्र की हिलने लगेंगी कुर्सियाँ,
आम सा ये आदमी जो अड़ गया.
कमाल की गजल....एकदम सटीक।
बहुत ख़ूब. यह शे'र तो एकदम सामयिक हो गया-
जवाब देंहटाएंतन्त्र की हिलने लगेंगी कुर्सियाँ,
आम-सा ये आदमी जो अड़ गया.
बहुत सुंदर और सार्थक सृजन वाह ! बहुत सुंदर कहानी,
जवाब देंहटाएंPoem On Mother In Hindi
तन्त्र की हिलने लगेंगी कुर्सियाँ,
जवाब देंहटाएंआम सा ये आदमी जो अड़ गया!
बहुत सटीक कमाल की गजल
अदभुत लेखन को नमन ।
जवाब देंहटाएंThese Information is verry impressive
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