मंगलवार, 29 मार्च 2022
सोमवार, 21 मार्च 2022
लम्हे यादों के ...
मत तोडना पेड़ की उस टहनी को
जहाँ अब फूल नहीं खिलते
की है कोई ...
जो देता है हिम्मत मेरे होंसले को
की रहा जा सकता है हरा भरा प्रेम के बिना ...
*****
बालकनी के ठीक सामने वाले पेड़ पर
चौंच लड़ाते रहे दो परिंदे बहुत देर तक
फिर उड़ गए अलग-अलग दिशाओं में
हालांकि याद नहीं पिछली बार ऐसा कब हुआ था
आज तुम बहुत शिद्दत से याद आ रही हो ...
शनिवार, 12 मार्च 2022
प्रेम ...
प्रेम तो शायद हम दोनों ही करते थे
मैंने कहा ... “मेरा प्रेम समुन्दर सा गहरा है”
उसने कहा ... “प्रेम की
पैमाइश नहीं होती”
अचानक वो उठी ...
चली गई, वापस न आने के लिए
और मुझे भी समुन्दर का तल नहीं मिला ...
बुधवार, 2 मार्च 2022
हिसाब कुछ लम्हों का ...
जल्द ही ओढ़ लेगा सन्यासी चुनर
की रात का गहराता साया
मेहमान बन के आता है रौशनी के शहर
मत रखना हिसाब मुरझाए लम्हों का
स्याह से होते किस्सों का
नहीं सहेजना जख्मी यादें
सांसों की कच्ची-पक्की बुग्नी में
काट देना उम्र से वो टुकड़े
जहाँ गढ़ी हो दर्द की नुकीली कीलें
और न निकलने वाले काँटों का गहरा एहसास
की हो जाते हैं कुछ अच्छे दिन भी बरबाद
इन सबका हिसाब रखने में
वैसे जंगली गुलाब की यादों के बारे में
क्या ख्याल है ...
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