मंगलवार, 29 दिसंबर 2020
कभी वो आपकी, अपनी कभी सुनाते हैं
२०२० कई खट्टी-मीठी यादें ले के बीत गया ... जीवन जीने का नया अंदाज़
सिखा गया ... आप सब सावधान रहे, संयम बरतें ... २०२१ का स्वागत करें ... मेरी बहुत बहुत
शुभकामनायें सभी को ...
मंगलवार, 22 दिसंबर 2020
ये कायनात इश्क में डूबी हुई मिली
सागर की बाज़ुओं में उतरती हुई मिली.
तन्हा उदास शाम जो रूठी हुई मिली.
फिर से किसी की याद के लोबान जल उठे ,
बरसों पुरानी याद जो भूली हुई मिली.
बिखरा जो काँच काँच तेरा अक्स छा गया ,
तस्वीर अपने हाथ जो टूटी हुई मिली.
कितने
दिनों के बाद लगा लौटना है अब ,
बुग्नी
में ज़िन्दगी जो खनकती हुई मिली.
सुनसान खूँटियों पे था कब्ज़ा कमीज़ का,
छज्जे पे तेरी शाल लटकती हुई मिली.
यादों के सिलसिले भी, परिन्दे भी उड़ गए ,
पेड़ों की सब्ज़ डाल जो सूखी हुई मिली.
ख्वाहिश जो गिर गई थी शिखर के करीब से ,
सत्तर
की उम्र में वो चिढ़ाती हुई मिली.
बिस्तर की हद, उदास रज़ाई की सिसकियाँ ,
सिगड़ी में एक रात सुलगती हुई मिली .
तितली ने जबसे इश्क़ चमेली पे लिख दिया ,
ये कायनात इश्क में डूबी हुई मिली.
बुधवार, 9 दिसंबर 2020
मगर फिर भी वो इठलाती नहीं है ...
कोई भी बात उकसाती नहीं है
न जाने क्यों वो इठलाती नहीं है
कभी दौड़े थे जिन पगडंडियों पर
हमें किस्मत वहाँ लाती नहीं है
मुझे लौटा दिया सामान सारा
है इक “टैडी” जो लौटाती नहीं है
कहाँ अब दम रहा इन बाजुओं में
कमर तेरी भी बलखाती नहीं है
नहीं छुपती है च्यूंटी मार कर अब
दबा कर होठ शर्माती नहीं है
तुझे पीता हूँ कश के साथ कब से
तू यादों से कभी जाती नहीं है
“छपक” “छप” बारिशों की दौड़ अल्हड़
गली में क्यों नज़र आती नहीं है
अभी भी ओढ़ती है शाल नीली
मगर फिर भी वो इठलाती नहीं है
मंगलवार, 1 दिसंबर 2020
बहुत आसान है सपने चुराना ...
नया ही चाहिए कोई बहाना.
तभी फिर मानता है ये ज़माना.
परिंदों का है पहला हक़ गगन पर,
हवा में देख कर गोली चलाना.
दरो दीवार खिड़की बन्द कर के,
किसी के राज़ से पर्दा उठाना.
सृजन
होगा वहाँ हर हल में बस,
जहाँ
मिट्टी वहां गुठली गिराना.
यहाँ आँसू के कुछ कतरे गिरे थे,
यहीं होगा मुहब्बत का ठिकाना.
लहर ले जाएगी मिट्टी बहा कर,
किनारों पर संभल कर घर बनाना.
न करना ज़िक्र सपनों का किसी से,
बहुत आसान है सपने चुराना.
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