हालाँकि लौटने लगा है वक़्त
यादों के सैलाब के साथ
दौड़ गया था जो ठीक उस पल, मिले थे जब पहली बार
वो नहीं छोड़ना चाहता, तेरे मेरे प्रेम का कोई भी राज़दार लम्हा
लौटने लगी है बारिश
सिमिट गयी थी जो बूँद बन कर उस पल
गुज़र जाती है ख़ामोश सरसराहट भी
अपने होने का एहसास दिला कर
तेज़ आँधियों के बीच रेत पर उभर कर मिटते हैं
कुछ क़दमों के निशान ...
लौटने लगे हैं फूल, पत्ते भी उगने लगे पेड़ों पर
काट कर बादलों का आवरण, बे-मौसम खिलने लगी है धूप
दूर कहीं मुस्कुराती है ख़ामोशी
और खिलखिलाता है जंगली गुलाब का आवारा पेड़
आज भी उस लम्हे पर, वक़्त की नादानी पर
प्रेम को कब कहाँ किसने समझा है ...#जंगली_गुलाब
बादलों का आवारा झुण्ड चला गया कब का
वापस लौटने लगी पहाड़ों की धूप
गडरिए भी लौटने लगे अपनी-अपनी भेड़ों के साथ
मौसम बदलने लगा रुख हवा की चाल पर
तुम तो साक्षी थीं उस पल की
कैद किया था हम दोनों ने कायनात का वो लम्हा
झपकती पलकों के दर्मियाँ
उस दिन इन सब के बीच
एक दस्तक और भी हुई थी मेरे दिल के आस-पास
वो शायद पहली हलचल थी प्यार की
क्या तुमने भी महसूस की ऐसी ही कोई हलचल
एक जंगली गुलाब भी तो खिला था उसी पल ...#जंगली_गुलाब
जिद्द है तुझे पाने की
पर दौड़ने नहीं देता वक़्त अपने से आगे
जबकि तू सवार रहती है पतंग के उस कोने पे
जो रहता है आसमान में, कट जाने से पहले तक
तेरे कटने का इंतज़ार मुझे मंज़ूर नहीं
दूसरी पतंगों से आँख-मिचौली मैं चाहता नहीं
(तेरी ऊंची उड़ान, हमेशा से मेरी चाहत जो रही है)
शायद ये डोर अब वक़्त के हाथों ठीक नहीं
उम्मीद का क़तरा जो बाकी है आँखों में अभी
पतंग के उसी कोने पे बैठ
दुआ करना तू मेरे हक़ में
सुना है दुनिया बनाने वाला
वहीं रहता है ऊपर आसमान में कहीं …
#जंगली_गुलाब