स्वप्न मेरे: नादान लम्हा ...

बुधवार, 31 जनवरी 2024

नादान लम्हा ...

हालाँकि लौटने लगा है वक़्त
यादों के सैलाब के साथ
दौड़ गया था जो ठीक उस पल, मिले थे जब पहली बार

वो नहीं छोड़ना चाहता, तेरे मेरे प्रेम का कोई भी राज़दार लम्हा

लौटने लगी है बारिश
सिमिट गयी थी जो बूँद बन कर उस पल
गुज़र जाती है ख़ामोश सरसराहट भी
अपने होने का एहसास दिला कर
तेज़ आँधियों के बीच रेत पर उभर कर मिटते हैं
कुछ क़दमों के निशान ...
लौटने लगे हैं फूल, पत्ते भी उगने लगे पेड़ों पर
काट कर बादलों का आवरण, बे-मौसम खिलने लगी है धूप

दूर कहीं मुस्कुराती है ख़ामोशी
और खिलखिलाता है जंगली गुलाब का आवारा पेड़
आज भी उस लम्हे पर, वक़्त की नादानी पर

प्रेम को कब कहाँ किसने समझा है ...
#जंगली_गुलाब

6 टिप्‍पणियां:

  1. लौटने लगी है बारिश
    सिमट गयी थी जो बूँद बन कर उस पल
    गुज़र जाती है ख़ामोश सरसराहट भी
    अपने होने का एहसास दिला कर..,
    बहुत ख़ूब !! कमाल का सृजन ।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 01 फरवरी 2024 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  3. आज भी उस लम्हे पर, वक़्त की नादानी पर
    प्रेम को कब कहाँ किसने समझा है ...
    हर प्रेम की अपनी अनोखी कहानी है ...उम्र भर प्रेम को उसी रूप में जीना भी एक कला ही तो है...
    हर कोई कहाँ जानता है इसे....
    बहुत ही लाजवाब।

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  4. ऐसा ही होता है, यादों का सैलाब जब आता है , वक्त पीछे लौटा ले जाता है एक खूबसूरत मंजर पे !

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