स्वप्न मेरे: अगस्त 2020

सोमवार, 31 अगस्त 2020

तेरा जाना ट्रिगर है यादों का बंधन

सिक्कों का कुछ चाँद सितारों का बंधन.
चुम्बक है पर तेरी बाहों का बंधन.
 
दिन में भी तो चाँद नज़र आ जाता है,
इसने कब माना है रातों का बंधन.
 
तेरी आहट जैसे ही दरवाज़े पर,
खोल दिया बादल ने बूंदों का बंधन.
 
जो करना है अभी करो, बस अभी करो,
किसने जाना कब तक साँसों का बंधन.
 
तुमसे रौनक, तुमसे रोटी, सब्जी, दाल,
वरना ये घर चार दीवारों का बंधन.
 
सूरज की दस्तक को कब तक ठुकराते,
टूट गया सपनों की बातों का बंधन.

कब तक तेरा साथ, वक़्त का पता नहीं,
तेरा जाना ट्रिगर है यादों का बंधन.

सोमवार, 24 अगस्त 2020

कुछ तिलिस्मी थी माँ तेरी झोली

रात जागी तो कान में बोली
इस अँधेरे की अब चली डोली
 
बंद रहना ही इसका अच्छा था
राज़ की बात आँख ने खोली
 
दोस्ती आये तो मगर कैसे
दुश्मनी की गिरह नहीं खोली
 
तब से चिढती है धूप बादल से
नींद भर जब से दो-पहर सो ली
 
तब भी रोई थी मार के थप्पड़
आज माँ याद कर के फिर रो ली
 
खून सैनिक का तय है निकलेगा
इस तरफ उस तरफ चले गोली
 
जो भी माँगा वही मिला तुझसे
कुछ तिलिस्मी थी माँ तेरी झोली 

सोमवार, 17 अगस्त 2020

एक बुग्नी फूल सूखा डायरी ...

धूप कहती है निकल के दें दें
रौशनी हर घर को चल के दें दें  

साहूकारों की निगाहें कह रहीं
दाम पूरे इस फसल के दें दें

तय अँधेरे में तुम्हें करना है अब
जुगनुओं का साथ जल के दें दें

बात वो सच की करेगा सोच लो
आइना उनको बदल के दें दें

फैंसला लहरों को अब करना है ये
साथ किश्ती का उछल के दे ... दें

सच है मंज़िल पर गलत है रास्ता
रास्ता रस्ता बदल के दे ... दें

एक बुग्नी, फूल सूखा, डायरी  
सब खज़ाने हैं ये कल के दे ... दें

सोमवार, 10 अगस्त 2020

हाथ खेतों की धान होते हैं

वो जो कड़वी ज़ुबान होते हैं, 
एक तन्हा मचान होते हैं.


चुप ही रहने में है समझदारी, 
कुछ किवाड़ों में कान होते हैं.

एक दो, तीन चार, बस भी करो, 
लोग चूने का पान होते हैं.

उम्र है लोन, सूद हैं सासें, 
अन्न-दाता, किसान होते हैं.

गोलियाँ, गालियाँ, खड़े तन कर,
फौज के ही जवान होते हैं. 
 
जो नहीं हैं रियाज़ के आदी,
एक टूटी सी तान होते हैं.
 
रख दिए साहूकार पे गिरवी,
हाथ खेतों की धान होते हैं.

सोमवार, 3 अगस्त 2020

उसी लम्हे की बस तस्वीर है आँखों में अपनी


अधूरी ख्वाहिशें रहती हैं दरवाज़ों में अपनी

तभी तो ज़िन्दगी जीते हैं सब टुकड़ों में अपनी

 

तू यूँ ही बोलना मैं भी फ़कत सुनता रहूँगा

सुनो शक्कर ज़रा कम डालना बातों में अपनी

 

अभी तो रात ने दिन का शटर खोला नहीं है

चलो इक नींद तो लेने दो तुम बाहों में अपनी

 

कभी गुस्सा, झिझकना, रूठना, फिर मान जाना

हमेशा बोलती रहती हो तस्वीरों में अपनी

 

कहीं कमज़ोर ना कर दें बुलंदी के इरादे

समुन्दर रोक के रखना ज़रा पलकों में अपनी

 

ज़रुरत जब हुई महसूस हमको ज़िन्दगी में

दुआएं दोस्तों की गई खातों में अपनी

 

कई अलफ़ाज़ जब मुंह मोड़ लेते हैं बहर से

तुम्हारा नाम लिख देता हूँ बस ग़ज़लों में अपनी

 

सुनो इस पेड़ को मत काटना जीते जी अपने

परिंदे छुप के रहते हैं यहाँ शाखों में अपनी

 

झुकी पलकें दुपट्टा आसमानी चाल अल्हड़

उसी लम्हे की बस तस्वीर है आँखों में अपनी