बुधवार, 27 जनवरी 2021
कुछ हैं तेरी याद से जुड़े हुए ...
गिर गए हैं और
कुछ खड़े हुए.
सोमवार, 18 जनवरी 2021
ज़िन्दगी भी रेत सी फिसल गई ...
पीठ तेरी नज्र से जो जल गई.
ज़िन्दगी तब से ही हमको छल गई.
रौशनी आई सुबह ने कह दिया,
कुफ्र की जो रात थी वो ढल गई.
मुस्कुराए हम भी वो भी हंस दिए,
मोम की दीवार थी पिघल गई.
रात भर कश्ती संभाले थी लहर,
दिन में अपना रास्ता बदल गई.
इस तरफ कूआं तो खाई उस तरफ,
बच के किस्मत बीच से निकल गई.
जब तलक ये दाड़ अक्ल का उगा,
ज़िन्दगी भी रेत सी फिसल गई.
बुधवार, 6 जनवरी 2021
आम सा ये आदमी जो अड़ गया ...
सच के लिए हर किसी से लड़ गया.
नाम का झन्डा उसी का गढ़ गया.
ठीक है मिलती रहे जो दूर से,
धूप में ज्यादा टिका जो सड़ गया.
हाथ बढ़ाया न शब्द दो कहे,
मार के ठोकर उसे वो बढ़ गया.
प्रेम के नगमों से थकेगा नहीं,
आप का जादू कभी जो चढ़ गया.
होश ठिकाने पे आ गए सभी,
वक़्त तमाचा कभी जो जड़ गया.
बाल पके, एड़ियाँ भी घिस गईं,
कोर्ट से पाला कभी जो पड़ गया.
जो न सितम मौसमों के सह सका,
फूल कभी पत्तियों सा झड़ गया.
तन्त्र की हिलने लगेंगी कुर्सियाँ,
आम सा ये आदमी जो अड़ गया.
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