दर्द जब कागज़ पर उतर आएगा
चेहरा तेरा लफ्जों में नज़र आएगा
अपने हाथों की लकीरों में न छुपाना मुझे
हाथ छूते हि तेरा चेहरा निखर आएगा
बदल गया है मौसम् महक सी आने लगी
मुझे लगता है जैसे तेरा शहर आएगा
तेरे पहलू में बैठूं तुझसे कोई बात करुँ
एक लम्हा ही सही पर ज़रूर आएगा
एक मुद्दत से आँखे बंद किए बैठा हूँ
कभी तो ख्वाब में मेरा हज़ूर आएगा
सोमवार, 29 सितंबर 2008
ख्वाब मेरे
वक़्त के दामन में कितने
ख्वाब बिखरे हैं मेरे
साँस लेते हैं वो लम्हे
तोड़ न देना उन्हें
दूर तक आएंगे मेरी
याद के तारे नज़र
जब चलो तुम आसमां पर
देख तो लेना उन्हें
ख्वाब बिखरे हैं मेरे
साँस लेते हैं वो लम्हे
तोड़ न देना उन्हें
दूर तक आएंगे मेरी
याद के तारे नज़र
जब चलो तुम आसमां पर
देख तो लेना उन्हें
शनिवार, 13 सितंबर 2008
धुँधला गया है चाँद
चोह्दवीं की रात है और घुप्प अंधेरा
कायनात में मेरी बदला गया है चाँद
तुम अचानक आ गयी हो रात के दूजे पहर
देख कर चेहरा तेरा पगला गया है चाँद
तेरे माथे पर सिमट आया है जीवन
सुर्ख़ पा वन चांदनी पिघला गया है चाँद
पलकें झुकाए थाल पूजा का उठाये
रूप सादगी भरा नहला गया है चाँद
देर तक करता था मैं दादी से बातें
उम्र का है असर या धुँधला गया है चाँद
कायनात में मेरी बदला गया है चाँद
तुम अचानक आ गयी हो रात के दूजे पहर
देख कर चेहरा तेरा पगला गया है चाँद
तेरे माथे पर सिमट आया है जीवन
सुर्ख़ पा वन चांदनी पिघला गया है चाँद
पलकें झुकाए थाल पूजा का उठाये
रूप सादगी भरा नहला गया है चाँद
देर तक करता था मैं दादी से बातें
उम्र का है असर या धुँधला गया है चाँद
गुरुवार, 11 सितंबर 2008
अच्छा लगेगा
शहर दरिया हो या हो सहरा पहाड़
साथ दो तुम उम्र भर अच्छा लगेगा
थक चुका हूँ जिन्दगी की धूप में
छावं में तेरी मगर अच्छा लगेगा
सर्दियों का वक़्त और कुल्लू का मौसम
हो गयी है दोपहर अच्छा लगेगा
रेत का दरिया और हम तुम साथ हैं
ख़त्म न हो ये सफर अच्छा लगेगा
चाँद में धब्बे सहे नही जाते
आप जेसे भी हो पर अच्छा लगेगा
दिल ही रखने को सही पर बोल दो
याद आया दिगम्बर अच्छा लगेगा
रात होने को है और तन्हा हूँ में
लौट आओ मेरे घर अच्छा लगेगा
साथ दो तुम उम्र भर अच्छा लगेगा
थक चुका हूँ जिन्दगी की धूप में
छावं में तेरी मगर अच्छा लगेगा
सर्दियों का वक़्त और कुल्लू का मौसम
हो गयी है दोपहर अच्छा लगेगा
रेत का दरिया और हम तुम साथ हैं
ख़त्म न हो ये सफर अच्छा लगेगा
चाँद में धब्बे सहे नही जाते
आप जेसे भी हो पर अच्छा लगेगा
दिल ही रखने को सही पर बोल दो
याद आया दिगम्बर अच्छा लगेगा
रात होने को है और तन्हा हूँ में
लौट आओ मेरे घर अच्छा लगेगा
गुरुवार, 4 सितंबर 2008
कुछ तो है
कुछ तो है इस मन में जो बोला नही जाता
राज् कुछ गहरा है जो खोला नही जाता
में तो ऐसा ही हूँ जो अपना सको
हर किसी के साथ में तोला नही जाता
कोन से लम्हे में मेरा दिल जला था
बुझ गयी है आग पर शोला नही जाता
राज् कुछ गहरा है जो खोला नही जाता
में तो ऐसा ही हूँ जो अपना सको
हर किसी के साथ में तोला नही जाता
कोन से लम्हे में मेरा दिल जला था
बुझ गयी है आग पर शोला नही जाता
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