गुरुदेव पंकज जी के आशीर्वाद से खिली ग़ज़ल आपकी नज़र है .......... आशा है आपको पसंद आएगी .....
नेह के संबंध जब बंधन हुए
मन के उपवन झूम के मधुबन हुए
लक्ष्य ही रहता है दृष्टि में जहाँ
वक्त के हाथों वही कुंदन हुए
प्रेम की भाषा से जो अंजान हैं
जिंदगी में वो सदा निर्धन हुए
सत्य बोलो सत्य की भाषा सुनो
तब समझना आज तुम दर्पण हुए
किसके हाथों देश की पतवार है
गूंगे बहरे न्याय के आसन हुए
हैं मलाई खा रहे खादी पहन
असल के नेता मगर खुरचन हुए
रविवार, 27 दिसंबर 2009
रविवार, 20 दिसंबर 2009
जितनी चादर पाँव पसारो
अपना जीवन आप संवारो
जितनी चादर पाँव पसारो
हार गये तो कल जीतोगे
मन से अपने तुम न हारो
आशा के चप्पू को थामो
दरिया में फिर नाव उतारो
काँटों को हंस कर स्वीकारो
दूजे का न ताज निहारो
स्वर्ग बनाना है जो घर को
अपना आँगन आप बुहारो
जितनी चादर पाँव पसारो
हार गये तो कल जीतोगे
मन से अपने तुम न हारो
आशा के चप्पू को थामो
दरिया में फिर नाव उतारो
काँटों को हंस कर स्वीकारो
दूजे का न ताज निहारो
स्वर्ग बनाना है जो घर को
अपना आँगन आप बुहारो
शनिवार, 12 दिसंबर 2009
छोड़ कर भविष्य को इतिहास पकड़ा है
बासी रोटी प्याज़ उसके पास पकड़ा है
सूना सूना दिल मगर उदास पकड़ा है
जेब में थे क़हक़हे, किस्से, कहानी
होठों पर महका हुवा परिहास पकड़ा है
कौन सी धारा लगेगी तुम बताओ
टूटी लाठी, फटा हुवा लिबास पकड़ा है
बस किताबों में ही मिलती हैं मिसालें
बोलो किसने आज़ तक आकाश पकड़ा है
सभ्यता कैसे वो आगे बढ़ सकेगी
छोड़ कर भविष्य को इतिहास पकड़ा है
पार है वो दम है जिसकी बाज़ुओं में
वो नही जिसने फकत विश्वास पकड़ा है
सूना सूना दिल मगर उदास पकड़ा है
जेब में थे क़हक़हे, किस्से, कहानी
होठों पर महका हुवा परिहास पकड़ा है
कौन सी धारा लगेगी तुम बताओ
टूटी लाठी, फटा हुवा लिबास पकड़ा है
बस किताबों में ही मिलती हैं मिसालें
बोलो किसने आज़ तक आकाश पकड़ा है
सभ्यता कैसे वो आगे बढ़ सकेगी
छोड़ कर भविष्य को इतिहास पकड़ा है
पार है वो दम है जिसकी बाज़ुओं में
वो नही जिसने फकत विश्वास पकड़ा है
रविवार, 6 दिसंबर 2009
हार में ही जीत है तो हार क्यों नहीं
आस्था विशवास का विस्तार क्यों नहीं
आदमी को आदमी से प्यार क्यों नहीं
भ्रमर भी है, गीत भी है, रीत भी
पुष्प में फिर गंध और श्रृंगार क्यों नहीं
पा लिया दुनिया को मैंने हार कर दिल
हार में ही जीत है तो हार क्यों नहीं
दिल के बदले दिल मिले, आंसू नहीं
इस तरह से प्यार का व्यापार क्यों नहीं
सत्य ही कहता है आईना हमेशा
आईने को खुद पर अहंकार क्यों नहीं
आदमी को आदमी से प्यार क्यों नहीं
भ्रमर भी है, गीत भी है, रीत भी
पुष्प में फिर गंध और श्रृंगार क्यों नहीं
पा लिया दुनिया को मैंने हार कर दिल
हार में ही जीत है तो हार क्यों नहीं
दिल के बदले दिल मिले, आंसू नहीं
इस तरह से प्यार का व्यापार क्यों नहीं
सत्य ही कहता है आईना हमेशा
आईने को खुद पर अहंकार क्यों नहीं
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