धूप मेरे हाथ से जब से फिसल गई
जिंदगी से रौशनी उस दिन निकल गई
नाव साहिल तक वही लौटी है आज तक
रुख हवा का देख जो रस्ता बदल गई
मुद्दतों के बाद जो बेटा मिला उन्हें
देखते ही देखते सेहत संभल गई
दाम होते हैं किसी बच्चे को क्या पता
फिर खिलौना देख के तबीयत मचल गई
वो मेरे पहलू में आए दिन निकल गया
चाँद पहले फिर अचानक रात ढल गई
लिख तो लेता मैं भी कितने शैर क्या कहूं
काफिया अटका बहर भटकी गज़ल गई
लोग हैं मसरूफ अंदाजा नहीं रहा
चुटकले मस्ती ठिठोली फिर हजल गई