बुधवार, 27 अक्तूबर 2021
शेर बोली पर हैं मिसरे बेचता हूँ ...
टोपियें, हथियार, झण्डे बेचता हूँ.
शनिवार, 9 अक्तूबर 2021
चलो बूँदा-बाँदी को बरसात कर लें
कहीं दिन गुजारें, कहीं रात कर लें.
कभी खुद भी खुद से मुलाक़ात कर लें.
बुढ़ापा है यूँ भी तिरस्कार होगा,
चलो साथ बच्चों के उत्पात कर लें.
ज़रूरी नहीं है जुबानें समझना,
इशारों इशारों में कुछ बात कर लें.
मिले डूबते को बचाने का मौका,
कभी हम जो तिनके सी औकात कर लें.
न जज हम करें, न करें वो हमें जज,
भरोसा रहे ऐसे हालात कर लें.
ये बस दोस्ती में ही मुमकिन है यारों,
बिना सोचे समझे हर इक बात कर लें.
दिखाना मना है जो दुनिया को आँसू,
चलो बूँदा-बाँदी को बरसात कर लें.
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