विकसित होने से पहले
कुचल जाते हैं
कुछ शब्दों के भ्रूण
बाहर आने से पहले
फँस जाते हैं होठों के बीच
कुछ जवाब
द्वंद में उलझ कर
दम तोड़ देते हैं
कुछ विचार
हथेलियों में दबे दबे
पिघल जाता है आक्रोश
पेट की आग
जिस्म की जलन
उम्मीद का झुनझुना
मौत का डर
मुक्ति की आशा
अधूरे स्वप्न
जीने की चाह
कुछ खुला गगन
पूंजीवाद की तिजोरी में बंद
गिनती की साँसें के बदले
सोदा बुरा तो नही ......
गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010
गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010
गुबार
कुछ अनसुलझे सवाल
कुछ हसीन लम्हे
जिस्म में उगी
आवारा ख्वाबों की
भटकती नागफनी
कितना कुछ
एक ही साँस में कहने को
भटकते शब्द
डिक्शनरी के पन्नों की
फड़फड़ाहट के बीच
कुछ नये मायने तलाशते
बाहर आने की छटपटाहट में
अटके शब्द
एक मुद्दत से
होठों के मुहाने
पलते शब्द
तेरे आने का लंबा इंतज़ार
फिर अचानक
तू आ गयी इतने करीब
मुद्दत से होठों के मुहाने
पलते शब्द
फँस कर रह गये
होठों के बीच
वो मायने
जिन्हे शब्दों ने
नये अर्थ में ढाला
आँखों की उदासी ने
चुपचाप कह डाला
सुना है
आँखों की ज़ुबान होती है.....
कुछ हसीन लम्हे
जिस्म में उगी
आवारा ख्वाबों की
भटकती नागफनी
कितना कुछ
एक ही साँस में कहने को
भटकते शब्द
डिक्शनरी के पन्नों की
फड़फड़ाहट के बीच
कुछ नये मायने तलाशते
बाहर आने की छटपटाहट में
अटके शब्द
एक मुद्दत से
होठों के मुहाने
पलते शब्द
तेरे आने का लंबा इंतज़ार
फिर अचानक
तू आ गयी इतने करीब
मुद्दत से होठों के मुहाने
पलते शब्द
फँस कर रह गये
होठों के बीच
वो मायने
जिन्हे शब्दों ने
नये अर्थ में ढाला
आँखों की उदासी ने
चुपचाप कह डाला
सुना है
आँखों की ज़ुबान होती है.....
शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010
ख्वाबों के पेड़ ...
मेरे जिस्म की
रेतीली बंजर ज़मीन पर
ख्वाब के कुछ पेड़ उग आए हैं
बसंत भी दे रहा दस्तक
चाहत के फूल मुस्कुराए हैं
भटक रहे हैं कुछ लम्हे
तेरी ज़मीन की तलाश में
बिखर गये हैं शब्दों के बौर
तेरे लबों की प्यास में
अब हर साल शब्दों के
कुछ नये पेड़ उग आते हैं
नये मायनों में ढल कर
रेगिस्तान में जगमगाते हैं
अभिव्यक्ति की खुश्बू को
बरसों से तेरी प्रतीक्षा है
सुना है बरगद का पेड़
सालों साल जीता है ....
रेतीली बंजर ज़मीन पर
ख्वाब के कुछ पेड़ उग आए हैं
बसंत भी दे रहा दस्तक
चाहत के फूल मुस्कुराए हैं
भटक रहे हैं कुछ लम्हे
तेरी ज़मीन की तलाश में
बिखर गये हैं शब्दों के बौर
तेरे लबों की प्यास में
अब हर साल शब्दों के
कुछ नये पेड़ उग आते हैं
नये मायनों में ढल कर
रेगिस्तान में जगमगाते हैं
अभिव्यक्ति की खुश्बू को
बरसों से तेरी प्रतीक्षा है
सुना है बरगद का पेड़
सालों साल जीता है ....
रविवार, 7 फ़रवरी 2010
चाहत
चाहत
इक मधुर एहसास
पाने की नही
मुक्ति की प्यास
स्वयं को सुनाई देता
मौन स्पंदन
सीमाओं में बँधा
मुक्त बंधन
अनंत संवाद
प्रकृति से छलकता
विमुक्त आह्लाद
श्रिष्टी में गूँजता
अनहद नाद
अंतस से निकला
शाश्वत राग
अर्थ से परे
अभिव्यक्ति से आगे
क्या संभव है शब्दों में
प्रेम समेट पाना
क्या संभव है प्रेम को
भाषा में व्यक्त कर पाना
क्या संभव है अभिव्यक्ति को
सही शब्द दे पाना
क्या संभव है
चाहत के विस्त्रत आकाश को
शब्दों में बाँध पाना
इक मधुर एहसास
पाने की नही
मुक्ति की प्यास
स्वयं को सुनाई देता
मौन स्पंदन
सीमाओं में बँधा
मुक्त बंधन
अनंत संवाद
प्रकृति से छलकता
विमुक्त आह्लाद
श्रिष्टी में गूँजता
अनहद नाद
अंतस से निकला
शाश्वत राग
अर्थ से परे
अभिव्यक्ति से आगे
क्या संभव है शब्दों में
प्रेम समेट पाना
क्या संभव है प्रेम को
भाषा में व्यक्त कर पाना
क्या संभव है अभिव्यक्ति को
सही शब्द दे पाना
क्या संभव है
चाहत के विस्त्रत आकाश को
शब्दों में बाँध पाना
बुधवार, 3 फ़रवरी 2010
कैसे जीवन बीतेगा
राशन नही मिलेगा भाषन
पीने को कोरा आश्वासन
नारों की बरसात हो जब
तब कैसे जीवन बीतेगा
भीख मांगती भरी जवानी
नही बचा आँखों का पानी
बेशर्मी से बात हो जब
तब कैसे जीवन बीतेगा
जातिवाद का जहर घोलते
राष्ट्र वेदी पर स्वार्थ तोलते
अपनो का प्रतिघात हो जब
तब कैसे जीवन बीतेगा
आदर्शों की बात पुरानी
संस्कार बस एक कहानी
मानवता पर घात हो जब
तब कैसे जीवन बीतेगा
नियम खोखले, तोड़े हैं दम
मैं ही मैं है, नही बचा हम
निज के हित की बात हो जब
तब कैसे जीवन बीतेगा
पीने को कोरा आश्वासन
नारों की बरसात हो जब
तब कैसे जीवन बीतेगा
भीख मांगती भरी जवानी
नही बचा आँखों का पानी
बेशर्मी से बात हो जब
तब कैसे जीवन बीतेगा
जातिवाद का जहर घोलते
राष्ट्र वेदी पर स्वार्थ तोलते
अपनो का प्रतिघात हो जब
तब कैसे जीवन बीतेगा
आदर्शों की बात पुरानी
संस्कार बस एक कहानी
मानवता पर घात हो जब
तब कैसे जीवन बीतेगा
नियम खोखले, तोड़े हैं दम
मैं ही मैं है, नही बचा हम
निज के हित की बात हो जब
तब कैसे जीवन बीतेगा
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