गिरे है आसमां से धूप पीली
पसीने से हुयी हर चीज़ गीली
खबर सहरा को दे दो फिर मिली है
हवा के हाथ में माचिस की तीली
जलेगी देर तक तन्हाइयों में
अगरबत्ती की ये लकड़ी है सीली
कोई जैसे इबादत कर रहा है
कहीं गाती है फिर कोयल सुरीली
दिवारों में उतर आई है सीलन
है तेरी याद भी कितनी हठीली
तुझे जब एकटक मैं देखता हूँ
मुझे मिलती हैं दो आँखें पनीली
चली आती हो तुम जैसे हवा में
दुपट्टा आसमानी शाल नीली
बुधवार, 28 सितंबर 2011
मंगलवार, 20 सितंबर 2011
नम सी दो आँखें रहती हैं ...
गुरुदेव पंकज जी ने इस गज़ल को खूबसूरत बनाया है ... आशा है आपको पसंद आएगी ...
प्यासी दो साँसें रहती हैं
नम सी दो आँखें रहती हैं
बरसों से अब इस आँगन में
बस उनकी यादें रहती हैं
चुभती हैं काँटों सी फिर वो
दिल में जो बातें रहती हैं
शहर गया है बेटा जबसे
किस्मत में रातें रहती हैं
उनके जाने पर ये जाना
दिल में अब आहें रहती हैं
पत्थर मारा तो जाना वो
शीशे के घर में रहती हैं
पीपल और जिन्नों की बातें
बचपन को थामें रहती हैं
प्यासी दो साँसें रहती हैं
नम सी दो आँखें रहती हैं
बरसों से अब इस आँगन में
बस उनकी यादें रहती हैं
चुभती हैं काँटों सी फिर वो
दिल में जो बातें रहती हैं
शहर गया है बेटा जबसे
किस्मत में रातें रहती हैं
उनके जाने पर ये जाना
दिल में अब आहें रहती हैं
पत्थर मारा तो जाना वो
शीशे के घर में रहती हैं
पीपल और जिन्नों की बातें
बचपन को थामें रहती हैं
मंगलवार, 13 सितंबर 2011
ख़बरों को अखबार नहीं कर पाता हूँ ..
कविताओं के दौर से निकल कर ... पेश है आज एक गज़ल ...
उनसे आँखें चार नहीं कर पाता हूँ
मिलने से इंकार नहीं कर पाता हूँ
खून पसीना रोज बहाता हूँ मैं भी
मिट्टी को दीवार नहीं कर पाता हूँ
नाल लगाए बैठा हूँ इन पैरों पर
हाथों को तलवार नहीं कर पाता हूँ
सपने तो अपने भी रंग बिरंगी हैं
फूलों को मैं हार नहीं कर पाता हूँ
अपनों की आवाजें हैं पसमंज़र में
खूनी हैं पर वार नहीं कर पाता हूँ
सात समुन्दर पार किये हैं चुटकी में
बहते आंसूं पार नहीं कर पाता हूँ
कातिब हूँ कातिल भी मैंने देखा है
ख़बरों को अखबार नहीं कर पाता हूँ
उनसे आँखें चार नहीं कर पाता हूँ
मिलने से इंकार नहीं कर पाता हूँ
खून पसीना रोज बहाता हूँ मैं भी
मिट्टी को दीवार नहीं कर पाता हूँ
नाल लगाए बैठा हूँ इन पैरों पर
हाथों को तलवार नहीं कर पाता हूँ
सपने तो अपने भी रंग बिरंगी हैं
फूलों को मैं हार नहीं कर पाता हूँ
अपनों की आवाजें हैं पसमंज़र में
खूनी हैं पर वार नहीं कर पाता हूँ
सात समुन्दर पार किये हैं चुटकी में
बहते आंसूं पार नहीं कर पाता हूँ
कातिब हूँ कातिल भी मैंने देखा है
ख़बरों को अखबार नहीं कर पाता हूँ
गुरुवार, 8 सितंबर 2011
स्व ...
मेरी प्रवृति
भागने की नही
पर कृष्ण को देवत्व मिला
सिद्धार्थ को बुद्धत्व मिला
कभी तो मैं भी पा लूँगा
अपना
"स्व"
भागने की नही
पर कृष्ण को देवत्व मिला
सिद्धार्थ को बुद्धत्व मिला
कभी तो मैं भी पा लूँगा
अपना
"स्व"
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