स्वप्न मेरे: मई 2023

मंगलवार, 23 मई 2023

बचपन जब मुड़ कर देखा तो जाने क्या-क्या होता था ...

लट्टू, कंचे, चूड़ी, गिट्टे, पेंसिल बस्ता होता था.
पढ़ते कम थे फिर भी अपना एक नज़रिया होता था.

पूरा-पूरा होता था या सच में था माँ का जादू,
कम-कम हो कर भी घर में सब पूरा-पूरा होता था.

शब्द कहाँ गुम हो जाते थे जान नहीं पाए अब तक,
चुपके-चुपके आँखों-आँखों इश्क़ पुराना होता था.

अपनी पैंटें, अपने जूते, साझा थे सबके मोज़े,
चार भाई में, चार क़मीज़ें, मस्त गुज़ारा होता था.

लम्बी रातें आँखों-आँखों में मिन्टों की होती थीं,
उन्ही दिनों के इंतज़ार का सैकेंड घण्टा होता था.

तुम देखोगे हम अपने बापू जी पर ही जाएँगे,
नब्बे के हो कर भी जिन के मन में बच्चा होता था.

हरी शर्ट पे ख़ाकी निक्कर, पी. टी. शू, नीले मौजे,
बचपन जब मुड़ कर देखा तो जाने क्या-क्या होता था.

शुक्रवार, 12 मई 2023

उनके इक परफ़्यूम की शीशी अब तक है ...

यादों से तेरी यूँ हाथ छुड़ाता हूँ.
एड़ी से इक सिगरेट रोज़ बुझाता हूँ.

मुमकिन है मेहमान ही बन कर आ जाएँ,
रोटी का इक पेड़ा रोज़ गिराता हूँ.

छत पर उनको ले जाता हूँ शाम ढले,
ऐसे भी मैं तारे रात सजाता हूँ.

बातें मीठी तीखी अदरक जैसी है,
चुस्की-चुस्की जो मैं चाय पिलाता हूँ.

इक दिन इठला कर तितली भी आएगी,
आँगन में इक ऐसा पेड़ उगाता हूँ.

आदम-कद जो ले आए थे तुम उस-दिन,
उस टैडी के अब-तक नाज़ उठाता हूँ.

पीली सी वो चुन्नी भी खूँटी पर है,
जिसके साथ लिपट कर रात बिताता हूँ.

उनके इक परफ़्यूम की शीशी अब तक है,
आते जाते उसको रोज़ लगता हूँ.

सोमवार, 8 मई 2023

शम्मा बुझी तो उड़ के पतंगे चले गए ...

लट्टू गए तो साथ में कंचे चले गए.
बजते थे जिनके नाम के डंके चले गए.

नाराज़ आईना भी तो इस बात पर हुआ,
दो चार दोष ढूँढ के अन्धे चले गए.

उस दिन के बाद लौट के वो घर नहीं गया,
माँ क्या गई के घर से परिंदे चले गए.

बापू की शेरवानी जो पहनी तो यूँ लगा,
हमको सम्भालते थे जो कन्धे चले गए.

गिर्दाब वक़्त का जो उठा सब पलट गया,
उठते थे बैठते थे जो बन्दे चले गए.

महँगे बिके जो लोग चमकते रहे सदा,
सोने के दिल थे जिनके वे मंदे चले गए.

मरना किसी के इश्क़ में जल कर ये अब नहीं,
शम्मा बुझी तो उड़ के पतंगे चले गए.