काम के सिलसिले में आने वाला सप्ताह ब्लॉग-जगत से दूर रहूँगा ...... जाते जाते ये कविता आपके सुपुर्द है ...
सुनो
क्या याद है तुम्हे
पहली मुलाकात
पलकें झुकाए
दबी दबी हँसी
छलकने को बेताब
वो अल्हड़ लम्हे
भीगा एहसास
हाथों में हाथ लिए
घंटों ठहरा वक़्त
उनिंदी रातें
कहने को
अनगिनत बातें
दिल की बंज़र ज़मीन पर
नाख़ून से बने कुछ निशान
कोरे केनवस पर खिंची
आडी तिरछी रेखाओं के ज़ख़्म
आज भी ताज़ा है नमी
खून से रिसती लकीरों में
जिंदा है तेरे हाथों की खुश्बू
धमनियों में दौड़ते खून में
तेरी यादें मकसद हैं
मेरे जीने की चाह का
तेरा एहसास उर्जा है
मेरी साँसों के प्रवाह का
मंगलवार, 27 अप्रैल 2010
गुरुवार, 22 अप्रैल 2010
बुढ़ापा - एक दृष्टि-कोण
मेरी रचना "बुढ़ापा" पर सभी मित्रों की टिप्पणी पढ़ कर अभिभूत हूँ ... जहाँ एक और रचना को सभी ने सराहा वहीं मुझे ये आभास भी हुवा की कहीं ना कहीं मेरी रचना एक नकारात्मक पहलू को इंगित कर रही है. सभी टिप्पणियों और विशेष कर आदरणीय महावीर जी की समीक्षा और उनकी लिखी ग़ज़ल ने मुझे प्रेरित किया की मैं बुढ़ापे को इक नये दृष्टि-कोण से देखूं.
आशा है इस नयी रचना में आपको ज़रूर सकारात्मक पहलू नज़र आएगा.
उम्र का मंथन
तज़ुरबों की ख़ान
समय के पन्नों पर लिखा
अनुभव का ग्रंथ
चेहरे की झुर्रियों में उगे
मील के पत्थर
हाथों की उर्वरा से उगे
अनगिनत भविष्य
यज्ञ जीवन
अनंत का निर्माण
जीवन की संध्या
स्वयं का निर्वाण
श्रीष्टि का नियम
प्रेयसी की प्रतीक्षा
मौत का आलिंगन
देह का त्याग
यही तो प्रारंभ है
आत्मा परमात्मा के मिलन का
नये युग के प्रवाह का
आशा है इस नयी रचना में आपको ज़रूर सकारात्मक पहलू नज़र आएगा.
उम्र का मंथन
तज़ुरबों की ख़ान
समय के पन्नों पर लिखा
अनुभव का ग्रंथ
चेहरे की झुर्रियों में उगे
मील के पत्थर
हाथों की उर्वरा से उगे
अनगिनत भविष्य
यज्ञ जीवन
अनंत का निर्माण
जीवन की संध्या
स्वयं का निर्वाण
श्रीष्टि का नियम
प्रेयसी की प्रतीक्षा
मौत का आलिंगन
देह का त्याग
यही तो प्रारंभ है
आत्मा परमात्मा के मिलन का
नये युग के प्रवाह का
सोमवार, 19 अप्रैल 2010
बुढ़ापा
जिस्म पर रेंगती
चीटियाँ की सुगबुगाहट
वक़्त के हाथों लाहुलुहान शरीर
खोखले जिस्म को घसीटते
दीमक के काफिले
शारीरिक दर्द से परे
मुद्दतो की नींद से उठा
म्रत्प्राय जिस्म का जागृत मन
दिमाग़ के सन्नाटे में
चीखती आवाज़ों का शोर
उफन कर आती यादों का झंझावात
अचेतन शरीर की आँख से निकलते
पानी के बेरंग कतरे
साँसों का अनवरत सिलसिला
जीने की मजबूरी
हाथ भर दूरी पे पड़ा
इच्छा मृत्यु का वरदान
धीरे धीरे मुस्कुराता है ...
चीटियाँ की सुगबुगाहट
वक़्त के हाथों लाहुलुहान शरीर
खोखले जिस्म को घसीटते
दीमक के काफिले
शारीरिक दर्द से परे
मुद्दतो की नींद से उठा
म्रत्प्राय जिस्म का जागृत मन
दिमाग़ के सन्नाटे में
चीखती आवाज़ों का शोर
उफन कर आती यादों का झंझावात
अचेतन शरीर की आँख से निकलते
पानी के बेरंग कतरे
साँसों का अनवरत सिलसिला
जीने की मजबूरी
हाथ भर दूरी पे पड़ा
इच्छा मृत्यु का वरदान
धीरे धीरे मुस्कुराता है ...
सोमवार, 12 अप्रैल 2010
नज़्म मेरी
कई बार गिरी
कई बार उठी
शब्दों के
हाथों से निकली
चिंदी चिंदी
हवा में बिखरी
पहलू में
कई बार रुकी
नज़्म मेरी
मुझे मेरी नज़्म ने कहा
मैं तेरे सामने
ज़िंदा खड़ी हूँ
जिस्म की खुश्बू में लिपटी
साँस लेती
बात करती
तू काहे
ढूंढता है मुझे
काग़ज़ के पुराने पन्नों में
कई बार उठी
शब्दों के
हाथों से निकली
चिंदी चिंदी
हवा में बिखरी
पहलू में
कई बार रुकी
नज़्म मेरी
मुझे मेरी नज़्म ने कहा
मैं तेरे सामने
ज़िंदा खड़ी हूँ
जिस्म की खुश्बू में लिपटी
साँस लेती
बात करती
तू काहे
ढूंढता है मुझे
काग़ज़ के पुराने पन्नों में
रविवार, 4 अप्रैल 2010
कैसा भविष्य ..
बेरहम वक़्त
जीवन की डोर
लंबी कतार
मरीज़ों का शोर
प्रसूता कक्ष से आती
साँसों की सुगबुगाहट
मुनिया की आँखों में
भविष्य की आहट
जीवन का खेल
किरण की आशा
हल्का सा डर
कुछ कुछ निराशा
अटकी साँसें
कल के सपने
प्रतीक्षा और प्रसूता कक्ष के बीच
सदियों का फांसला
मटमैला
फटा पाजामा पहने
मुनिया का पति
कुछ लम्हे को अटका वक़्त
निस्तब्धता का शोर
अचानक
लंबी चीख के साथ गूँजती बच्चे की आवाज़
करवट बदलती श्रीष्टि
समय की अंगड़ाई
साँसों का प्रवाह
नयी सुबह की आहट
भड़भड़ा कर खुलते दरवाजे की चरमराहट की बीच
सफेद चादर में लिपटा मुनिया का बेजान शरीर
साथ ही गुलाबी चोला पहने
खिलखिलाता बचपन
साँसों के बदले
साँसों का सौदा
भविष्य की चाह में
वर्तमान से टूटा नाता
बाहर लगा मुस्कुराता होर्डिंग
बच्चे - हमारे आने वाले कल का भविष्य ....
जीवन की डोर
लंबी कतार
मरीज़ों का शोर
प्रसूता कक्ष से आती
साँसों की सुगबुगाहट
मुनिया की आँखों में
भविष्य की आहट
जीवन का खेल
किरण की आशा
हल्का सा डर
कुछ कुछ निराशा
अटकी साँसें
कल के सपने
प्रतीक्षा और प्रसूता कक्ष के बीच
सदियों का फांसला
मटमैला
फटा पाजामा पहने
मुनिया का पति
कुछ लम्हे को अटका वक़्त
निस्तब्धता का शोर
अचानक
लंबी चीख के साथ गूँजती बच्चे की आवाज़
करवट बदलती श्रीष्टि
समय की अंगड़ाई
साँसों का प्रवाह
नयी सुबह की आहट
भड़भड़ा कर खुलते दरवाजे की चरमराहट की बीच
सफेद चादर में लिपटा मुनिया का बेजान शरीर
साथ ही गुलाबी चोला पहने
खिलखिलाता बचपन
साँसों के बदले
साँसों का सौदा
भविष्य की चाह में
वर्तमान से टूटा नाता
बाहर लगा मुस्कुराता होर्डिंग
बच्चे - हमारे आने वाले कल का भविष्य ....
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