कई बार गिरी
कई बार उठी
शब्दों के
हाथों से निकली
चिंदी चिंदी
हवा में बिखरी
पहलू में
कई बार रुकी
नज़्म मेरी
मुझे मेरी नज़्म ने कहा
मैं तेरे सामने
ज़िंदा खड़ी हूँ
जिस्म की खुश्बू में लिपटी
साँस लेती
बात करती
तू काहे
ढूंढता है मुझे
काग़ज़ के पुराने पन्नों में
Waah !
जवाब देंहटाएंमुझे मेरी नज़्म ने कहा
जवाब देंहटाएंमैं तेरे सामने
ज़िंदा खड़ी हूँ
जिस्म की खुश्बू में लिपटी
साँस लेती
बात करती
तू काहे
ढूंढता है मुझे
काग़ज़ के पुराने पन्नों में
Ati Sundar Naswa sahaab !
तू काहे
जवाब देंहटाएंढूंढता है मुझे
काग़ज़ के पुराने पन्नों में
-कितनी अहम बात कह गई आपसे आपकी नज़्म!!
वाह!!
हो कहाँ आजकल? दिखते ही नहीं.
बहुत खूब, लाजबाब !
जवाब देंहटाएंmaan naswa ji
dum hai
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमैं तेरे सामने...ज़िंदा खड़ी हूँ
जवाब देंहटाएंजिस्म की खुश्बू में लिपटी
साँस लेती...बात करती...
बहुत खूब रही नज़्म से ये मुलाकात.
यह बोलती हुई नज़्म बहुत बेहतरीन है!
जवाब देंहटाएंमैं तेरे सामने
जवाब देंहटाएंज़िंदा खड़ी हूँ
जिस्म की खुश्बू में लिपटी
साँस लेती
बात करती
तू काहे
ढूंढता है मुझे
काग़ज़ के पुराने पन्नों में
क्या क्या कह जाते हैं आप छोटी छोटी बातों में बिना शब्दों के ढेरों शब्द ज़ेहन में फूल के अनेक रंगों की तरह महका जाते हैं ..लाजबाब हैं!!!
नज़्म आपकी काश ! मेरी प्रेयसी की सहेली बन जाए ...............................
जवाब देंहटाएंlajawab rachana.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंji bahut sundar rachna.....
जवाब देंहटाएंkunwar ji,
मुझे मेरी नज़्म ने कहा
जवाब देंहटाएंमैं तेरे सामने
ज़िंदा खड़ी हूँ
जिस्म की खुश्बू में लिपटी
साँस लेती
बात करती
बेहतरीन। लाजवाब।
...बहुत सुन्दर ...बेहतरीन रचना !!!
जवाब देंहटाएंनज़्म से बात करना, उसे उटते गिरते देखना और फिर ---- शायद कोरी कल्पना नहीं जिन्दा एहसास होती होगी.
जवाब देंहटाएंनज़्म के जिस्म की खुश्बू यहाँ तक आ रही है
बहुत खूबसूरत
बहुत खूबसूरत ख्याल...नज़्म सच में खुशबू बन मन में बसी होती है...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंमैं तेरे सामने
जवाब देंहटाएंज़िंदा खड़ी हूँ
जिस्म की खुश्बू में लिपटी
साँस लेती
बात करती
तू काहे
ढूंढता है मुझे
काग़ज़ के पुराने पन्नों में
बहुत खूब...गहरी बात कह गए है इन पंक्तियों में
बेहतरीन अभियक्त्ति
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंshbd nahi mere paas!
जवाब देंहटाएंतू काहे
जवाब देंहटाएंढूंढता है मुझे
काग़ज़ के पुराने पन्नों में
Kitna sahi kaha..ham antarmukhi nahi hote, bahirmukhihi,bahirmukhi...
सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंठीक उसके आने की आहट और मेरे कलम का रुकना
कागज पर बिखरी स्याही, सब नज्म ही तो है .
रत्नेश त्रिपाठी
मैं तेरे सामने
जवाब देंहटाएंज़िंदा खड़ी हूँ
जिस्म की खुश्बू में लिपटी
साँस लेती
बात करती
तू काहे
ढूंढता है मुझे
काग़ज़ के पुराने पन्नों में
aakhri ye panktiyaan bahut hi khoobsurat lagi ,laazwaab sach hi hai .
"उठती है, गिरती है, सम्भलती है, फिसलती है
जवाब देंहटाएंके पकड के रखूं तुझे कैसे, जिन्दगी तेज़ दौडती है।"
ये नज़्म ही तो जिन्दगी की तरह ही है, दिगम्बरजी , बहुत खूब लिखा है आपने। आदमी जब बूढा होता है तो अपने अतीत में, अतीत की बातें ज्यादा करता है, या वो ढूंढ्ता है पुराना पल। किंतु नज़्म (जिन्दगी) तब भी उसके सामने होती है। भाई मैं तो अपनी तरह ही सोचता हूं, और अक्सर आपकी नज़्मों में डूबता-उतरता हूं।
बहुत खूबसूरत ख्याल...नज़्म सच में खुशबू बन मन में बसी होती है...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ....
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही लाजवाब बात कही आपने.
जवाब देंहटाएंरामराम.
Too kaahe dhoondhta hai mujhe kaagaz ke purane panno mein?
जवाब देंहटाएंManna padega!
"नज़्म आपके" अहसासों की.
जवाब देंहटाएंमैं तेरे सामने
जवाब देंहटाएंज़िंदा खड़ी हूँ
जिस्म की खुश्बू में लिपटी
साँस लेती
बात करती
......vah, bahut sundar......
वाह वाह वाह वाह एक हजार बार...
जवाब देंहटाएंसाँस लेती
जवाब देंहटाएंबात करती
वाह, क्या संवेदना है ।
waah digambhar ji , waah , kya kahe .. aapne to hum saare kaviyo ki man ki baat ko kah diya ...waah ji , bahut hi acche shabdo me kavi ki nazm ko qaid kiya hai.. meri badhyi sweekar kare .. aur haan deri se aane ke liye maafi ...
जवाब देंहटाएंaabhar
vijay
- pls read my new poem at my blog -www.poemsofvijay.blogspot.com
very nice
जवाब देंहटाएंमनोहर रचना है ! बहुत अच्छा लगा !
जवाब देंहटाएंमैं तेरे सामने
जवाब देंहटाएंज़िंदा खड़ी हूँ
जिस्म की खुश्बू में लिपटी
साँस लेती
बात करती
तू काहे
ढूंढता है मुझे
काग़ज़ के पुराने पन्नों में....waah
मोहतरम योगेश साहब
जवाब देंहटाएंमैं तेरे सामने
ज़िंदा खड़ी हूँ
जिस्म की खुश्बू में लिपटी
साँस लेती
बात करती
तू काहे
ढूंढता है मुझे
काग़ज़ के पुराने पन्नों में
लफ्ज़ और एहसास जब मिलते हैं तो नज़्म बनती है........आपकी नज़्म इसी सम्मिलन का प्रतीक है! शानदार रचना के लिए दिली मुबारकबाद
hmmmmmmmmm.......achhi hai....
जवाब देंहटाएंशब्दों के
जवाब देंहटाएंहाथों से निकली
चिंदी चिंदी
हवा में बिखरी
पहलू में
कई बार रुकी
नज़्म मेरी
बहुत ही खूबसूरत रचना
आभार
अहसास कब अलग होते हैं खुद से...कभी नज़्म की शक्ल में कभी खुद ज़िंदगी की प्रति कृति बन झकझोरने आ ही जाते हैं.
जवाब देंहटाएंइन भावों को शब्दों का जामा पहना दिया और आप की नज़्म बन गयी...बहुत खूबसूरत प्रस्तुति.
मैं तेरे सामने
जवाब देंहटाएंज़िंदा खड़ी हूँ
जिस्म की खुश्बू में लिपटी
साँस लेती
बात करती
तू काहे
ढूंढता है मुझे
काग़ज़ के पुराने पन्नों में
अजी इतनी खुबसूरत और खुशबूदार नज़्म हो तो ढूढने की वाकई जरुरत नहीं. वाह जी वाह क्या हसीं नज़्म है आपकी मज़ा आ गया
lajawaab rachna...
जवाब देंहटाएंitni behtareen rachna ke liye badhai....
mere blog par is baar..
वो लम्हें जो शायद हमें याद न हों......
jaroor aayein...
आप जैसे पारखी के सामने नज्म साकार हो जाती है ! बहुत सुंदर ! बधाई !
जवाब देंहटाएंआपकी इस सुन्दर पोस्ट की चर्चा यहाँ भी तो है-
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_13.html
बहुत ही खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंअच्छी नज़्म।
जवाब देंहटाएंकस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूँढे वन माहीं।
अक्सर ज़िंदगी सामने खड़ी होती है और हम जाने कहाँ-कहाँ उसे तलाशते रहते हैं।
वाह...लाजवाब नज़्म...बधाई
जवाब देंहटाएंनीरज
मैं तेरे सामने
जवाब देंहटाएंज़िंदा खड़ी हूँ
जिस्म की खुश्बू में लिपटी
साँस लेती
बात करती
तू काहे
ढूंढता है मुझे
काग़ज़ के पुराने पन्नों में
.... bahut sundar bhavavykti...
शब्दों के
जवाब देंहटाएंहाथों से निकली
चिंदी चिंदी
हवा में बिखरी
पहलू में
कई बार रुकी
नज़्म मेरी
waah bahut ki khoobsurat nazm
शब्दों के
जवाब देंहटाएंहाथों से निकली
चिंदी चिंदी
हवा में बिखरी
पहलू में
कई बार रुकी
waah.........
तू काहे
जवाब देंहटाएंढूंढता है मुझे
काग़ज़ के पुराने पन्नों में
great lines
मैं तेरे सामने
जवाब देंहटाएंज़िंदा खड़ी हूँ
जिस्म की खुश्बू में लिपटी
साँस लेती
बात करती
तू काहे
ढूंढता है मुझे
काग़ज़ के पुराने पन्नों में
बहुत ही सुंदर ।
bahut sunder !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंतू काहे
जवाब देंहटाएंढूंढता है मुझे
काग़ज़ के पुराने पन्नों में
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! लाजवाब रचना!
बहुत ही सुन्दर रचना । बेहतरीन ।
जवाब देंहटाएंआपने जो नज़्म को कस्तूरी बना कर लफ्ज़ का जामा पहनाया है, क़ाबिले तारीफ है...
जवाब देंहटाएंआप कहीँ भी ढुंढेँ मगर हमेँ तो आपकी नज्मोँ का पता मालूम है...........
जवाब देंहटाएंमम से ममेत्तर तक पहुंचती रचना। उत्कृष्ट और प्रभावी। नासवां जी बधाई।
जवाब देंहटाएंमैं तेरे सामने
जवाब देंहटाएंज़िंदा खड़ी हूँ
जिस्म की खुश्बू में लिपटी
साँस लेती
बात करती
बहुत ही सुंदर!!
मोको कहां ढूंढे बन्दे ,मै तो तेरे पास मे
जवाब देंहटाएंdairy k liye kshama...
जवाब देंहटाएंbahut acchhi nazm.khushboo se ot-prot. badhayi.
mere blog par is baar..
जवाब देंहटाएंनयी दुनिया
jaroor aayein....
नज्म का उठना गिरना दिल की भावनाओं का उतार चढ़ाव है. मन बावरा जाने कब क्या सोचने लगता है. पल में आसमा पर तो पल में पाताल तक पहूंच जाता है...
जवाब देंहटाएंआप बेहतरीन लिखती हैं...
Khoobasurat kavita---kam shabdon men bahut kuchh kahatee huyee.
जवाब देंहटाएंमैं तेरे सामने
जवाब देंहटाएंज़िंदा खड़ी हूँ
जिस्म की खुश्बू में लिपटी
साँस लेती
बात करती
- नज्म की जीवन्तता !
भाई गरीबों पर दया करना सीखें. इतना अच्छा (अब कितना बताऊँ) लिखने से आपको नहीं लगता कि अब आप और सिर्फ आप ही चर्चा में रहेंगे. यानी हमा-शुमा को अब कोई पूछने वाला नहीं. थोडा ख़राब नहीं लिख सकते थे क्या! ये जो इतने ढेर सारे लोगों ने मुझ से पहले कमेन्ट दिए हैं, क्या ये लोग अपने सुझाव देकर इसकी धार थोड़ी कुंद नहीं करा सकते थे!
जवाब देंहटाएंमैं इस कविता से स्तब्ध हूँ. क्या नज्म का पर्सनिफिकेशन इतने खूबसूरत अंदाज़ से भी किया जा सकता है. बहुत बुझे मन से बधाई दे रहा हूँ.
ऐसी नज्म लिख कर आपने मेरा कबाड़ा कर दिया.
मैं तेरे सामने
जवाब देंहटाएंज़िंदा खड़ी हूँ
जिस्म की खुश्बू में लिपटी
साँस लेती
बात करती
कमाल की नज़्म. बधाई.
यही थी क्या .....??
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत है ....अब संभाल कर रखियेगा .......!!
:)
जवाब देंहटाएंwaah
जवाब देंहटाएं