रोज सिरहाने के पास पड़ी होती है
चाय की गर्म प्याली और ताज़ा अखबार
याद नहीं पड़ता कब देखा
माँ की दवाई और बापू के चश्मे से लेकर ...
बच्चों के जेब खर्च और नंबरों का हिसाब
पता नहीं कौन सी चाभी भरी रहती है तुम्हारे अंदर
सबके उठने से पहले से लेकर
सबके सो जाने के बाद तक
हर आहट पे तुम्हें जागते देखा है
सब्जी वाले से लेकर मांगने वाला तक
तुम्हारे दरवाज़े पे दस्तक देता है
सुबह से शाम तक
तुम्हारी झुकी पलकें और दबे होठों के बीच छुपी मुस्कुराहट में
न जाने कितने किरदार गुजर जाते हैं
आँखों के सामने से
मेरी जाना ...
तुम्हारा प्यार जानने के लिए
ज़रूरी नहीं तुम्हारी खामोशी को जुबां देना
या आँखों में लिखी इबारत पढ़ना ...