रविवार, 29 दिसंबर 2019
मंगलवार, 17 दिसंबर 2019
एक पन्ना - कोशिश, माँ को समेटने की
आज अचानक ही उस दिन की याद हो आई जैसे मेरी
अपनी फिल्म चल रही हो और मैं दूर खड़ा उसे देख रहा हूँ. दुबई से जॉब का मैसेज
आया था और अपनी ही धुन में इतना खुश था, की समझ ही नहीं पाया तू क्या सोचने
लगी. लगा तो था की तू उदास है, पर शायद देख नहीं सका ...
मेरे लिए खुशी का दिन
ओर तुम्हारे लिए ...
सालों बाद जब पहली बार घर की देहरी से बाहर
निकला
समझ नहीं पाया था तुम्हारी उदासी का कारण
हालाँकि तुम रोक लेतीं तो शायद रुक भी जाता
या शायद नहीं भी रुकता
पर मुझे याद है तुमने रोका नहीं था
(वैसे व्यक्तिगत अनुभव से देर बाद समझ आया,
माँ बाप बच्चों की उड़ान में रोड़ा नहीं डालते)
सच कहूँ तो उस दिन के बाद से
अचानक यादों का सैलाब सा उमड़ आया था ज़हन में
गुज़रे पल अनायास ही दस्तक देने लगे थे
लम्हे फाँस बनके अटकने लगे थे
जो अनजाने ही जिए, सबके ओर तेरे साथ
भविष्य के सपनों पर कब अतीत की यादें हावी हो गईं
पता नहीं चला
खुशी के साथ चुपके से उदासी कैसे आ जाती है
तब ही समझ सका था मैं
जानता हूँ वापस लौटना आसान था
पर खुद-गर्जी ... या कुछ ओर
बारहाल ... लौट नहीं पाया उस दिन से
आज जब लौटना चाहता हूं
तो लगता है देर हो गई है
ओर अब तुम भी तो नहीं हो वहाँ, माँ ...
#कोशिश_माँ_को_समेटने_की
शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019
समीक्षा - कोशिश, माँ को समेटने की ...
एक समीक्षा मेरी किताब कोशिश, माँ को समेटने की ... आदरणीय मीना जी की कलम से ... जो सन 2015 से अपने ब्लॉग "मंथन" पे लगातार लिख रही हैं ...
https://www.shubhrvastravita.com/
'कोशिश माँ को समेटने की' एक संवेदनशील चार्टेड एकाउटेंट श्री दिगम्बर नासवा जी पुस्तक है, जो घर -परिवार से दूर विदेशों में प्रवास करते स्मृतियों में सदा माँ के समीप
रहते हैं। लेखक के शब्दों में -
ये गुफ्तगू है मेरी , मेरे अपने साथ। आप कहेंगे
अपने साथ क्यों…, माँ से क्यों नहीं ? ...मैं कहूँगा… माँ मुझसे अलग कहाँ… लम्बा समय माँ के साथ रहा… लम्बा समय नहीं भी
रहा, पर उनसे दूर तो
कभी भी नहीं रहा...
किताब को पढ़ते हुए कभी मन में एक डायरी पढ़ने जैसा सुखद
अहसास जगता है तो कभी किसी आर्ट गैलरी में दुर्लभ पेंटिंग को देख मन को मिले सुकून
जैसा। कुछ रचनाओं से पूर्व के घटनाक्रम का उल्लेख बरबस ही लेखक के साथ-साथ पाठक को
भी उस दुनिया में ले जाता है जो लेखक के अनुभूत पलों की है। आज के
भौतिकतावादी युग में मानव हृदय की
संवेदनशीलता को जागृत करने के लिए इस तरह की सृजनात्मकता मरूभूमि में सावन की
रिमझिम के सुखद अहसास जैसी है।
माँ के लिए गीत एवं
गज़ल पुस्तक को पूर्णता प्रदान करते हैं।
पुस्तक पृष्ठ दर पृष्ठ आगे बढ़ती है जिसमें लेखक की खुद से
खुद की बातें हैं और बातों की धुरी 'माँ' है। सांसारिक
नश्वरता को मानते हुए भी एक पुत्र हृदय उस नश्वरता को अमरता में बाँध देता है।
उसकी एक बानगी की झलक -
पुराने गीत बेटी जब कभी भी गुनगुनाती है
बड़ी शिद्दत से अम्मा फिर तुम्हारी याद आती है
दबा कर होठ वो दाँतों तले जब बात है करती
तेरी आँखें तेरा ही रूप तेरी छाँव है लगती
मैं तुझसे क्या कहूँ होता है मेरे साथ ये अक्सर
बड़ी बेटी किसी भी बात पर जब डाँट जाती है
बड़ी शिद्दत से अम्मा ...
बोधि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 'कोशिश माँ को समेटने की' पुस्तक के लेखक श्री
दिगम्बर नासवा हैं। पुस्तक का ISBN : 978
-93-89177-89-3 और मूल्य : ₹150/- है।
"मीना भारद्वाज"
किताब अब अमेज़न पर उपलब्द्ध है ... आप इस लिंक से मँगवा सकते हैं ...
गुरुवार, 5 दिसंबर 2019
कोशिश माँ को समेटने की
#कोशिश_माँ_को_समेटने_की
बहुत आभार बोधि प्रकाशन का, आदरणीय मायामृग जी का, सभी मित्र, पत्नी, बच्चे, भाई-बंधुओं का और माँ का (जो जहाँ भी है, मेरे करीब है) ... जिनके सहयोग और प्रेरणा के बिना ये संभव न होता ... ये हर किसी के मन के भाव हैं मेरी बस लेखनी है ...
हाँ एक बात और ... अगर इस किताब को पढ़ने के बाद, एक बच्चे का दिल, एक अंश भी बदल सके तो मेरा सात जन्मों का लिखना सार्थक होगा ...
किताब अमेज़न पर उपलब्ध है ...
लिंक साझा कर रहा हूँ ...
Hey buddies ... now my work is over, your started ...
https://www.amazon.in/dp/B081NJ3ZKD?ref=myi_title_dp
बहुत आभार बोधि प्रकाशन का, आदरणीय मायामृग जी का, सभी मित्र, पत्नी, बच्चे, भाई-बंधुओं का और माँ का (जो जहाँ भी है, मेरे करीब है) ... जिनके सहयोग और प्रेरणा के बिना ये संभव न होता ... ये हर किसी के मन के भाव हैं मेरी बस लेखनी है ...
हाँ एक बात और ... अगर इस किताब को पढ़ने के बाद, एक बच्चे का दिल, एक अंश भी बदल सके तो मेरा सात जन्मों का लिखना सार्थक होगा ...
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सोमवार, 2 दिसंबर 2019
किताब का एक पन्ना
“कोशिश – माँ को समेटने की” तैयार है ... कुछ ही
दिनों में आपके बीच होगी. आज एक और “पन्ना” आपके साथ साझा कर रहा हूँ ... आज सोचता
हूँ तो तेरी चिर-परिचित मुस्कान सामने आ जाती है ... मेरे खुद के चेहरे पर ...
कहते हैं गंगा मिलन
मुक्ति का मार्ग है
कनखल पे अस्थियाँ प्रवाहित करते समय
इक पल को ऐसा लगा
सचमुच तुम हमसे दूर जा रही हो ...
इस नश्वर सँसार से मुक्त होना चाहती हो
सत्य की खोज में
श्रृष्टि से एकाकार होना चाहती हो
पर गंगा के तेज प्रवाह के साथ
तुम तो केवल सागर से मिलना चाहती थीं
उसमें समा जाना चाहती थीं
जानतीं थीं
गंगा सागर से अरब सागर का सफर
चुटकियों में तय हो जाएगा
उसके बाद तुम दुबई के सागर में
फिर से मेरे करीब होंगी ...
किसी ने सच कहा है
माँ के दिल को जानना मुश्किल नहीं ...
(१३ वर्षों से दुबई रहते हुवे मन में ऐसे भाव
उठना स्वाभाविक है)
(अक्तूबर ३,
२०१२)
#कोशिश_माँ_को_समेटने_की
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