शनिवार, 25 सितंबर 2021
माँ ...
9 साल ... वक़्त बहुत क्रूर होता है ... या ऐसा कहो
वक़्त व्यवहारिक होता है, प्रेक्टिकल होता है .... उसे
पता होता है की क्या हो सकता है, वो भावुक नहीं होता, अगले
ही पल पिछले पल को ऐसे भूल जाता है जैसे ज़िन्दगी इसी पल से शुरू हई हो ... हम भी
तो जी रहे हैं, रह रहे हैं माँ के बिना, जबकि सोच नहीं सके थे तब ... एक वो 25 सितम्बर और एक आज की 25 सितम्बर
... कहीं न कहीं से तुम ज़रूर देख रही हो माँ, मुझे पता है ...
बुधवार, 15 सितंबर 2021
वक़्त ने करना है तय सबका सफ़र
उम्र तारी है दरो दीवार पर.
खाँसता रहता है बिस्तर रात भर.
जो मिला, मिल तो गया, बस खा लिया,
अब नहीं होती है हमसे न-नुकर.
सुन चहल-कदमी गुज़रती उम्र की,
वक़्त की कुछ मान कर अब तो सुधर.
रात के लम्हे गुज़रते ही नहीं,
दिन गुज़र जाता है खुद से बात कर.
सोचता कोई तो होगा, है वहम,
कौन करता है किसी की अब फिकर.
था खरीदा, बिक गया तो बिक गया,
क्यों इसे कहने लगे सब अपना घर.
मौत की चिंता जो कर लोगे तो क्या,
वक़्त ने करना है तय सबका सफ़र.
मंगलवार, 7 सितंबर 2021
ज़रूर नाम किसी शख्स ने लिया होता
किसी हसीन के जूड़े में सज रहा होता.
खिला गुलाब कहीं पास जो पड़ा होता.
किसी की याद में फिर झूमता उठा
होता,
किसी के प्रेम का प्याला जो गर पिया होता.
यकीन मानिए वो सामने खड़ा होता,
वो इक गुनाह जो हमने कहीं किया होता.
हर एक हाल में तन के खड़ा हुआ होता,
खुद अपने आप से मिलता कभी लड़ा होता.
किसी के काम कभी मैं भी आ गया होता,
दुआ के साथ मेरे हाथ जो शफ़ा होता,
किसी मुकाम पे मिलता कहीं रुका
होता,
मेरी तलाश में घर से अगर चला होता.
लगाता हुस्न जो मरहम किसी के ज़ख्मों पर,
ज़रूर नाम किसी शख्स ने लिया होता.
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