स्वप्न मेरे: कोशिश_माँ_को_समेटने_की
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शनिवार, 25 सितंबर 2021

माँ ...

9 साल ... वक़्त बहुत क्रूर होता है ... या ऐसा कहो वक़्त व्यवहारिक होता है, प्रेक्टिकल होता है .... उसे पता होता है की क्या हो सकता है, वो भावुक नहीं होता, अगले ही पल पिछले पल को ऐसे भूल जाता है जैसे ज़िन्दगी इसी पल से शुरू हई हो ... हम भी तो जी रहे हैं, रह रहे हैं माँ के बिना, जबकि सोच नहीं सके थे तब ... एक वो 25 सितम्बर और एक आज की 25 सितम्बर ... कहीं न कहीं से तुम ज़रूर देख रही हो माँ, मुझे पता है ...   
 
कह के तो देख बात तेरी मान जाएगी
वो माँ है बिन कहे ही सभी जान जाएगी
 
क्या बात हो गयी है परेशान क्यों हूँ मैं
चेहरे का रंग देख के पहचान जाएगी
 
मुश्किल भले ही आयें हज़ारों ही राह में
हर बात अपने दिल में मगर ठान जाएगी
 
साए कभी जो रात के घिर-घिर के आएंगे
आँचल सुनहरी धूप का फिर तान जाएगी
 
खुद जो किया है उसका ज़िक्र भी नहीं किया
देखेगी पर शिखर पे तो कुरबान जाएगी 

गुरुवार, 31 अक्तूबर 2019

आने वाली किताब का कवर पेज

आज अपनी पहली पुस्तक का कवर पेज आपके सम्मुख है ... शीघ्र ही किताब आपके बीच होगी ... आपके आशीर्वाद की आकाँक्षा है ...