वक़्त के साथ हर चीज़ धुंधली होती जाती है पर कुछ यादें ऐसी होती हैं, जो जीवन भर साथ चलती हैं जैसे आपकी साँस… माँ भी उन्हीं में से एक है … या अगर सच कहूँ तो शायद वही एक है जो रहती है बातों में, मिसालों में, सोच में, खाने में, घूमने में … और भी न जाने किस-किस में … लगता नहीं आज ग्यारह साल हो गए तुझे गए … पर लगने से क्या होता है, होतो गए हैं … समय पर किसका बस …
धूप देह पर मद्धम-मद्धम होती है.
माँ की डाँट-डपट भी मरहम होती है.
आशा और निराशा पल-पल जीवन-रत,
माँ तो माँ है हर पल हर-दम होती है.
माँ का शीतल आँचल अंबर सा गहरा,
सुख-दुख मौसम शोला-शबनम होती है.
माँ ने उँगली पकड़ी तब कुछ समझ सके,
वरना राह सरल भी दुर्गम होती है.
आशाएँ-उम्मीदें, झट-पट बो देगी,
माँ हर पथ पर लय-सुर-सरगम होती है.
वक़्त पे खाना-पीना, अध्यन, तैयारी,
माँ ख़ुद चलता-फिरता सिस्टम होती है.
ध्येय-समर्पण, नित नव-चिंतन, आजीवन,
कक्षा माँ की स्वयं-समागम होती है.