स्वप्न मेरे: आते आते रात शाम ढल गई ...

बुधवार, 25 अक्तूबर 2023

आते आते रात शाम ढल गई ...

तप्सरों की केतली उबल गई.
बात कानों कान जब निकल गई.

क्यों हुआ कभी हुआ नहीं पता,
उनको देखते ही आँख चल गई.

हम अना के हाथ ऐंठते रहे,
पाँव पाँव ज़िन्दगी फिसल गई.

बुझते बुझते जल उठी मशाल जब,
आँधियों में एक बस्ती जल गई.

देर से मगर इसे समझ गया,
आग तेज़ हो तो दाल गल गई.

लोन क्या लिया किसी किसान ने,
देखते ही देखते फसल गई.

मैं निकल गया था घर की ओर पर,
आते आते रात शाम ढल गई.

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" गुरुवार 26 अक्टूबर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. हम अना के हाथ ऐंठते रहे,
    पाँव पाँव ज़िन्दगी फिसल गई.
    अति सुन्दर !! बेहद खूबसूरत ग़ज़ल ।

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  3. बुझते बुझते जल उठी मशाल जब,
    आँधियों में एक बस्ती जल गई.

    लोन क्या लिया किसी किसान ने,
    देखते ही देखते फसल गई.
    वाह!!!
    क्या बात...
    बहुत सटीक उत्कृष्ट एवं लाजवाब गजल।

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  4. देर से मगर इसे समझ गया,
    आग तेज़ हो तो दाल गल गई.

    बहुत सुंदर सटीक लिखा।
    शानदार गज़ल।

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