उदासी जब कभी बाहों में
मुझको घेरती है
तू बन के राग खुशियों के
सुरों को छेड़ती है
तेरे एहसास को
महसूस करता हूं हमेशा
हवा बालों में मेरे
उंगलियां जब फेरती है
चहल कदमी सी होती है यकायक
नींद में फिर
निकल के तू मुझे तस्वीर से
जब देखती है
तू यादों में चली आती है जब
बूढी पड़ोसन
कभी सर्दी में फिर काढा बना
के भेजती है
“खड़ी है धूप छत पे कब तलक
सोता रहेगा”
ये बातें बोल के अब धूप
मुझसे खेलती है
तेरे हाथों की खुशबू की महक
आती है अम्मा
बड़ी बेटी जो फिर मक्की की
रोटी बेलती है
नहीं देखा खुदा को पर तुझे
देखा है मैंने
मेरी हर सांस इन क़दमों पे
माथा टेकती है