बुधवार, 31 मार्च 2021
चले भी आओ के दिल की खुली हैं दीवारें ...
ये सोच-सोच के हैरान सी हैं दीवारें
मंगलवार, 23 मार्च 2021
छू लिया तुझको तो शबनम हो गई ...
सच की जब से रौशनी कम हो गई.
झूठ की आवाज़ परचम हो गई.
दिल का रिश्ता है, में
क्यों न मान लूं,
मिलके मुझसे आँख जो नम हो गई.
कागज़ों का खेल चालू हो गया,
आंच बूढ़े की जो मद्धम हो गई.
मैं ही मैं बस सोचता था आज
तक,
दुसरे “मैं” से मिला हम हो
गई.
फूल, खुशबू, धूप, बारिश, तू-ही-तू,
क्या कहूँ तुझको तु मौसम हो गई.
बूँद इक मासूम बादल से गिरी,
छू लिया तुझको तो शबनम हो गई.
शुक्रवार, 19 मार्च 2021
चम्मच कहीं नहीं था शरबत घोला जब ...
होट बजे थे उठा जिगर में शोला जब.
नंगे पाँव चली थी कुड़ी पटोला जब.
आसमान में काले बादल गरजे थे,
झट से रिब्बन हरा-हरा सा खोला जब.
टैली-पैथी इसको ही कहते होंगे,
दिखती हो तुम दिल को कभी टटोला जब.
बीस नहीं मुझको इक्किस ही लगती हो,
नील गगन के चाँद को तुझसे तोला जब.
इश्क़ लिखा था जंगली फूल के सीने पर,
बैठा, उड़ा, हरी तितली का टोला जब.
चूड़ी में, आँखों में, प्रेम की हाँ ही थी,
इधर, उधर, सर कर के ना-ना बोला जब.
चीनी सच में थी या ऊँगली घूमी थी,
चम्मच कहीं नहीं था शरबत घोला जब.
बुधवार, 10 मार्च 2021
तीरगी के शह्र आ कर छूट, परछाई, गई ...
पाँव दौड़े, महके रिब्बन, चुन्नी
लहराई, गई.
पलटी, फिर पलटी, दबा कर होंठ शरमाई, गई.
खुल गई थी एक खिड़की कुछ हवा के जोर से,
दो-पहर की धूप सरकी, पसरी सुस्ताई, गई.
आसमां का चाँद, मैं भी, रूबरू तुझसे
हुए,
टकटकी सी बंध गई, चिलमन जो
सरकाई, गई.
यक-ब-यक तुम सा ही गुज़रा, तुम नहीं तो
कौन था,
दफ-अतन ऐसा लगा की बर्क यूँ आई, गई.
था कोई पैगाम उनका या खुद उसको इश्क़ था,
एक तितली उडती उडती आई, टकराई, गई.
जानती है पल दो पल का दौर ही उसका है बस,
डाल पर महकी कलि खिल आई, मुस्काई, गई.
दिन ढला तो ज़िन्दगी का साथ छोड़ा सबने ज्यूँ,
तीरगी के शह्र आ कर छूट, परछाई, गई.
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