सच की जब से रौशनी कम हो गई. झूठ की आवाज़ परचम हो गई. दिल कारिश्ता है, में
क्यों न मान लूं, मिलके मुझसे आँख जो नम हो गई. कागज़ों का खेल चालू हो गया, आंच बूढ़े की जो मद्धम हो गई. मैं ही मैं बस सोचता था आज
तक, दुसरे “मैं” से मिला हम हो
गई. फूल, खुशबू, धूप, बारिश, तू-ही-तू, क्या कहूँ तुझको तु मौसम हो गई. बूँद इक मासूम बादल से गिरी, छू लिया तुझको तो शबनम हो गई.