दुःख में रोना आता है,सुख में आप निकलते हैं
मेरी आंखों के आंसू तो ख़ुद मुझको ही छलते हैं
सांसों का है खेल ये जीवन, जीत मौत की होनी है
फ़िर भी क्यों भँवरे गाते हैं, फूल रोज ही खिलते हैं
तेरे मेरे उसके सपने, सपनो से कैसा जीवन
सपने तो सपने होते है, आंखों में ही पलते हैं
दुःख सब का साँझा होगा, मिल कर खुशियाँ बाँटेंगे
एसे जुमले कभी कभी अब किस्सों में ही मिलते हैं
आओ मिल कर चाँद बुनें और सूरज मिल कर खड़ा करें
इस दुनिया के चाँद और सूरज, समय चक्र से चलते हैं
रविवार, 16 नवंबर 2008
शुक्रवार, 14 नवंबर 2008
हादसा
कल सुबह ही हादसा ये हो गया
चाँद सूरज की गली में खो गया
इतिहास ने रोका बहुत इंसान को
समय की रफ्तार में वो सो गया
जो धड़कता था मेरे सीने में हरदम
वो मेरा दिल पत्थरों का हो गया
गाँव की पग-डंडियाँ हैं ढूंढती
लौट कर आया नही फ़िर जो गया
कुछ सिसकते ख्वाब उसके साथ थे
अपना घर छोड़ कर जब वो गया
ज़ुल्म का जिसके नही कोई हिसाब
पैसे के बल वो पाप सारे धो गया
चाँद सूरज की गली में खो गया
इतिहास ने रोका बहुत इंसान को
समय की रफ्तार में वो सो गया
जो धड़कता था मेरे सीने में हरदम
वो मेरा दिल पत्थरों का हो गया
गाँव की पग-डंडियाँ हैं ढूंढती
लौट कर आया नही फ़िर जो गया
कुछ सिसकते ख्वाब उसके साथ थे
अपना घर छोड़ कर जब वो गया
ज़ुल्म का जिसके नही कोई हिसाब
पैसे के बल वो पाप सारे धो गया
बुधवार, 12 नवंबर 2008
शक्ति का अह्वान
दिव्यता का सूर्य फ़िर उगने लगा
मेघ अंधकार का छटने लगा
हो रहा है फ़िर ह्रदय में आज मंथन
तरुण फ़िर उठने लगे हैं तोड़ बंधन
देवता भी कर रहे हैं आज वंदन
गरल फ़िर शिव कंठ मैं दिखने लगा
दिग्भ्रमित हम हो गए थे राह मे
अर्थ, माया की अनोखी चाह मे
लौट कर हम आ गए संग्राम मे
थाल पूजा का पुनः सजने लगा
संस्कृति पर हम को अपनी गर्व है
जाग्रति का हर दिवस तो पर्व है
जाग अर्जुन समय के कुरुक्षेत्र में
तर्जनी पर चक्र फ़िर सधने लगा
समय के तो साथ चलना चाहिए
पर स्वयं को भूलना ना चाहिए
देख तेरे रास्ते का श्रंग भी
पुष्प बन कर राह में बिछने लगा
कौन सा परिचय है तुझको चाहिए
काहे तुझको मार्ग-दर्शन चाहिए
धवल यश है पूर्वजों का साथ तेरे
तिमिर तेरी राह का मिटने लगा
शक्ति का अह्वान कर तू सर्वदा
श्रृष्टि का निर्माण कर तू सर्वदा
लक्ष्य पर एकाग्र है जो दृष्टि तेरी
चिर विजय का रास्ता खुलने लगा
मेघ अंधकार का छटने लगा
हो रहा है फ़िर ह्रदय में आज मंथन
तरुण फ़िर उठने लगे हैं तोड़ बंधन
देवता भी कर रहे हैं आज वंदन
गरल फ़िर शिव कंठ मैं दिखने लगा
दिग्भ्रमित हम हो गए थे राह मे
अर्थ, माया की अनोखी चाह मे
लौट कर हम आ गए संग्राम मे
थाल पूजा का पुनः सजने लगा
संस्कृति पर हम को अपनी गर्व है
जाग्रति का हर दिवस तो पर्व है
जाग अर्जुन समय के कुरुक्षेत्र में
तर्जनी पर चक्र फ़िर सधने लगा
समय के तो साथ चलना चाहिए
पर स्वयं को भूलना ना चाहिए
देख तेरे रास्ते का श्रंग भी
पुष्प बन कर राह में बिछने लगा
कौन सा परिचय है तुझको चाहिए
काहे तुझको मार्ग-दर्शन चाहिए
धवल यश है पूर्वजों का साथ तेरे
तिमिर तेरी राह का मिटने लगा
शक्ति का अह्वान कर तू सर्वदा
श्रृष्टि का निर्माण कर तू सर्वदा
लक्ष्य पर एकाग्र है जो दृष्टि तेरी
चिर विजय का रास्ता खुलने लगा
रविवार, 9 नवंबर 2008
मानव
सभ्यता के माप दंड छोड़ता हुवा
समाज के नियम सभी तोड़ता हुवा
कौन दिशा अग्रसर आज का मानव
समय से भी तेज़ तेज़ दौड़ता हुवा
दर्प सर्प का है किंतु विष नही
लक्ष्य तो पाना है पर कोशिश नही
उड़ रहा है दिग्भ्रमित सा गगन में
कर्मपथ से हो विरल मुख मोड़ता हुवा
ताक पर क्यों रख दिए सम्बंध सारे
क्यों युधिष्ठर की तरह निज-बंधू हारे
क्यों चला विस्मरण कर इतिहास को
नेह-बन्ध आदतन मरोड़ता हुवा
सूख गया आँख से क्यों नीर सारा
उतर गया अंग से क्यों चीर सारा
होम कर क्यों मूल्य सारे जा रहा
तिमिर के तू आवरण ओड़ता हुवा
समाज के नियम सभी तोड़ता हुवा
कौन दिशा अग्रसर आज का मानव
समय से भी तेज़ तेज़ दौड़ता हुवा
दर्प सर्प का है किंतु विष नही
लक्ष्य तो पाना है पर कोशिश नही
उड़ रहा है दिग्भ्रमित सा गगन में
कर्मपथ से हो विरल मुख मोड़ता हुवा
ताक पर क्यों रख दिए सम्बंध सारे
क्यों युधिष्ठर की तरह निज-बंधू हारे
क्यों चला विस्मरण कर इतिहास को
नेह-बन्ध आदतन मरोड़ता हुवा
सूख गया आँख से क्यों नीर सारा
उतर गया अंग से क्यों चीर सारा
होम कर क्यों मूल्य सारे जा रहा
तिमिर के तू आवरण ओड़ता हुवा
गुरुवार, 6 नवंबर 2008
एक ख्वाहिश
जिस्म ज़ख्मों की जीती जागती नुमाइश है
फ़िर भी जीने की दिल मैं दबी दबी ख़्वाहिश है
दर्द पीछा नही छोड़ेगा मौत आने तक
साँस के साथ साथ दर्द की पैदाइश है
टूट कर बिखर जाने के नही कायल हम भी
साँस बाकी है जब तक सुबह की गुंजाईश है
यूँ न मायूस हो कर होंसले का दम तोड़ो
अभी तो ज़िंदगी से गीत की फरमाइश है
कही घायल, कहीं भूखे कहीं पंछी कफ़स में
हर तरफ़ मौत से जीवन की आज़मईश है
फ़िर भी जीने की दिल मैं दबी दबी ख़्वाहिश है
दर्द पीछा नही छोड़ेगा मौत आने तक
साँस के साथ साथ दर्द की पैदाइश है
टूट कर बिखर जाने के नही कायल हम भी
साँस बाकी है जब तक सुबह की गुंजाईश है
यूँ न मायूस हो कर होंसले का दम तोड़ो
अभी तो ज़िंदगी से गीत की फरमाइश है
कही घायल, कहीं भूखे कहीं पंछी कफ़स में
हर तरफ़ मौत से जीवन की आज़मईश है
मंगलवार, 4 नवंबर 2008
आइना
टूट कर बिखरा हुवा था आइना,
धर्म पर निभा रहा था आइना,
खून से लिख्खे हुवे इतिहास को,
आइना दिखला रहा था आइना,
देख कर वो सत्य सह न पायेगा,
सत्य पर दोहरा रहा था आइना,
तुमने काहे देख ली अपनी छवि,
गर्व से इठला रहा था आइना,
पत्थरों ने रची थीं ये साज़िशें,
कांच कांच सा रहा था आइना,
अंधों के घर आईने ही आईने,
ख़ुद पे तरस खा रहा था आइना,
कौन जाने कौन शहर बिकेगा,
सोच कर घबरा रहा था आइना,
मांग सूनी, भरी पर प्रति-बिम्ब मैं,
कोई गज़ब ढा रहा था आइना,
तोड़ कर हर एक टुकड़ा आईने का,
आईने बना रहा था आइना,
धर्म पर निभा रहा था आइना,
खून से लिख्खे हुवे इतिहास को,
आइना दिखला रहा था आइना,
देख कर वो सत्य सह न पायेगा,
सत्य पर दोहरा रहा था आइना,
तुमने काहे देख ली अपनी छवि,
गर्व से इठला रहा था आइना,
पत्थरों ने रची थीं ये साज़िशें,
कांच कांच सा रहा था आइना,
अंधों के घर आईने ही आईने,
ख़ुद पे तरस खा रहा था आइना,
कौन जाने कौन शहर बिकेगा,
सोच कर घबरा रहा था आइना,
मांग सूनी, भरी पर प्रति-बिम्ब मैं,
कोई गज़ब ढा रहा था आइना,
तोड़ कर हर एक टुकड़ा आईने का,
आईने बना रहा था आइना,
रविवार, 2 नवंबर 2008
आइनों के शहर का वो शख्स था
तेज़ थी हवा तुम्हारे शहर की
तितलियों का रंग भी उड़ा दिया
बादलों को घर में मैंने दी पनाह
बिजलियों ने घर मेरा जला दिया
बारिशों का खेल भी अजीब था
डूबतों को और भी डुबा दिया
आइनों के शहर का वो शख्स था
सत्य को सफाई से छुपा गया
इक ज्योतिषी हाथ मेरा देख कर
भाग्य की रेखाओं को मिटा गया
कौन सा भंवरा था साथ शहद के
पंखुरी का रंग भी चुरा गया
तितलियों का रंग भी उड़ा दिया
बादलों को घर में मैंने दी पनाह
बिजलियों ने घर मेरा जला दिया
बारिशों का खेल भी अजीब था
डूबतों को और भी डुबा दिया
आइनों के शहर का वो शख्स था
सत्य को सफाई से छुपा गया
इक ज्योतिषी हाथ मेरा देख कर
भाग्य की रेखाओं को मिटा गया
कौन सा भंवरा था साथ शहद के
पंखुरी का रंग भी चुरा गया
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