सभी मित्रों को दीपावली की हार्दिक बधाई और ढेरों शुभकामनायें ... कुछ नए दोहे अभी हाल ही में प्रकाशित पत्रिका “अनुभूति” के साथ ...
बच्चे, बूढ़े, चिर-युवा, हर आयू में ख़ास
भाँति-भाँति की फुलझड़ी, मिलती सब के पास
दीपों के त्योहार
में, फुलझड़ियों का जोर
बच्चों का तो ठीक
है, बड़े भी माँगे मोर
सरपट स्याही रात की, दौड़ी उल्टे पाँव
सजग फुलझड़ी आ गई, अंधियारे के गाँव
फुलझड़ियाँ केवल
नहीं, दीपोत्सव त्योहार
राम राज की कल्पना, एक समग्र विचार
टिम-टिम तारों सा
लगे फुलझड़ियों का रूप
ज्यों बादल की ओट
से झिलमिल-झिलमिल धूप
मर्यादा तोड़ी नहीं, राम गए वनवास
अवध पधारे लौट कर, प्रकट हुआ मधु-मास
फुलझड़ियों के नाम
पर, दीप-पर्व पर क्रोध
अधिक प्रदूषण हो
रहा, कह-कर करें विरोध
जगमग-जगमग फुलझड़ी, सुतली बंब घनघोर
चिटपिट-चिटपिट बज
उठीं, कुछ लड़ियाँ कमजोर