कहते हैं गंगा मिलन
मुक्ति का मार्ग है
कनखल पे अस्थियां प्रवाहित
करते समय
इक पल को ऐसा लगा
सचमुच तुम हमसे दूर जा रही
हो ...
इस नश्वर संसार से मुक्त
होना चाहती हो
सत्य की खोज में
श्रृष्टि से एकाकार होना
चाहती हो
पर गंगा के तेज प्रवाह के
साथ
तुम तो केवल सागर से मिलना
चाहती थीं
उसमें समा जाना चाहती थीं
जानतीं थीं
गंगा सागर से अरब सागर का
सफर
चुटकियों में तय हो जाएगा
उसके बाद तुम दुबई के सागर
में
फिर से मेरे के करीब होंगी
...
किसी ने सच कहा है
अपनी माँ के दिल को जानना
मुश्किल नहीं ...
(१३ वर्षों से दुबई रहते
हुवे मन में ऐसे भाव उठाना स्वाभाविक है)