जिस्म काबू में नहीं और मौत भी मिलती नहीं
या खुदाया रहम कर अब जिंदगी कटती नहीं
वक्त कैसा आ गया तन्हाइयां हैं हम सफर
साथ में यादें हैं उनकी दिल से जो मिटती नहीं
लौटना बच्चों का बाकी है अभी तक गाँव में
कुछ बुजुर्गों की नज़र इस राह से हटती नहीं
हाथ में जुम्बिश नहीं है आँख में है मोतिया
उम्र के इस दौर में अपनों पे भी चलती नहीं
डूब के मर जाऊं जिसमें उम्र या वापस मिले
वो नदी अब तो हमारे शहर से बहती नहीं
टूट कर अपनी जड़ों से कब तलक रह पाओगे
खंडहरों की नीव लंबे वक्त तक रहती नहीं
धूप है बारिश कभी तो छाँव की बदली भी है
एक ही लम्हे पे आकर जिंदगी रूकती नहीं
मंगलवार, 27 मार्च 2012
बुधवार, 21 मार्च 2012
हाथ में पहले तो खंजर दे दिया ...
हाथ में पहले तो खंजर दे दिया
फिर अचानक सामने सर दे दिया
ले लिए सपने सुनहरी धूप के
और फिर खारा समुन्दर दे दिया
एक बस फरमान साहूकार का
छीन के घर मुझको छप्पर दे दिया
लहलहाती फसल ले ली सूद में
जोतने को खेत बंजर दे दिया
नौच खाया जिस्म सबके सामने
चीथडा ढंकने को गज भर दे दिया
चाकुओं से गोद कर इस जिस्म को
खुदकशी का नाम दे कर दे दिया
तोड़ दूंगा कांच सारे शहर के
हाथ में क्यूँ फिर से पत्थर दे दिया
फिर अचानक सामने सर दे दिया
ले लिए सपने सुनहरी धूप के
और फिर खारा समुन्दर दे दिया
एक बस फरमान साहूकार का
छीन के घर मुझको छप्पर दे दिया
लहलहाती फसल ले ली सूद में
जोतने को खेत बंजर दे दिया
नौच खाया जिस्म सबके सामने
चीथडा ढंकने को गज भर दे दिया
चाकुओं से गोद कर इस जिस्म को
खुदकशी का नाम दे कर दे दिया
तोड़ दूंगा कांच सारे शहर के
हाथ में क्यूँ फिर से पत्थर दे दिया
बुधवार, 14 मार्च 2012
न ज़ख्मों को हवा दो ...
न ज़ख्मों को हवा दो
कोई मरहम लगा दो
हवा देती है दस्तक
चरागों को बुझा दो
लदे हैं फूल से जो
शजर नीचे झुका दो
पडोसी अजनबी हैं
दिवारों को उठा दो
मुहब्बत मर्ज़ जिनका
उन्हें तो बस दुआ दो
मेरी नाकामियों को
सिरे से तुम भुला दो
जुनूने इश्क में तो
फकत उनसे मिला दो
कोई मरहम लगा दो
हवा देती है दस्तक
चरागों को बुझा दो
लदे हैं फूल से जो
शजर नीचे झुका दो
पडोसी अजनबी हैं
दिवारों को उठा दो
मुहब्बत मर्ज़ जिनका
उन्हें तो बस दुआ दो
मेरी नाकामियों को
सिरे से तुम भुला दो
जुनूने इश्क में तो
फकत उनसे मिला दो
बुधवार, 7 मार्च 2012
नेह गुलाल ...
सभी पढ़ने वालों को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं ... रंगों का पर्व सब को प्रेम के रंग में रंगे ... दिलों का वैर मिटे जीने की उमंग जगे ...
दो हाथों के मध्य तुम्हारे
कंचन जैसे गाल
जाने कौन बात पे हो गये
अधरों जैसे लाल
स्पर्श मात्र को जाने तुमने
क्या समझा जो
सिमट गयीं तुम ऐसे जैसे
छुई मुई की डाल
प्रेम की लाली
बदन पे तेरे ऐसी बिखरी
बिन होली के रंग गया जैसे
कोई नेह गुलाल
अंग अंग से
अंकुर फुट रहे यौवन के
चंचल बलखाती इठलाती
हिरनी जैसी चाल
कारी बदरी ज्यों
चंदा को छू उड़ जाए
गालों से अठखेली करते
चंचल रेशम बाल
दो हाथों के मध्य तुम्हारे
कंचन जैसे गाल
जाने कौन बात पे हो गये
अधरों जैसे लाल
स्पर्श मात्र को जाने तुमने
क्या समझा जो
सिमट गयीं तुम ऐसे जैसे
छुई मुई की डाल
प्रेम की लाली
बदन पे तेरे ऐसी बिखरी
बिन होली के रंग गया जैसे
कोई नेह गुलाल
अंग अंग से
अंकुर फुट रहे यौवन के
चंचल बलखाती इठलाती
हिरनी जैसी चाल
कारी बदरी ज्यों
चंदा को छू उड़ जाए
गालों से अठखेली करते
चंचल रेशम बाल
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