बीतते बीतते आज दस वर्ष हो गए, वर्ष बदलते रहे पर तारीख़ वही 25 सितम्बर … सच है जाने वाले याद रहते हैं मगर तारीख़ नहीं, परदेख आज की तारीख़ ऐसी है जो भूलती ही नहीं … तारीख़ ही क्यों, दिन, महीना, साल, कुछ भी नहीं भूलता … और तू … अब क्या कहूँ… मज़ा तो अब भी आता है तुझसे बात करने का … तुझे महसूस करने का …
माँ हक़ीक़त में तु मुझसे दूर है.
पर मेरी यादों में तेरा नूर है.
पहले तो माना नहीं था जो कहा,
लौट आ, कह फिर से, अब मंज़ूर है.
तू हमेशा दिल में रहती है मगर,
याद करना भी तो इक दस्तूर है.
रोक पाना था नहीं मुमकिन तुझे,
क्या करूँ अब दिल बड़ा मजबूर है.
तू मेरा संगीत, गुरु-बाणी, भजन,
तू मेरी वीणा, मेरा संतूर है.
तू ही गीता ज्ञान है मेरे लिए,
तू ही तो रसखान, मीरा, सूर है.
तू खुली आँखों से अब दिखती नहीं,
पर तेरी मौजूदगी भरपूर है.