स्वप्न मेरे: अक्तूबर 2019

गुरुवार, 31 अक्तूबर 2019

सोमवार, 28 अक्तूबर 2019

रात की काली स्याही ढल गई ...


दिन उगा सूरज की बत्ती जल गई
रात की काली स्याही ढल गई

सो रहे थे बेच कर घोड़े, बड़े
और छोटे थे उनींदे से खड़े
ज़ोर से टन-टन बजी कानों में जब 
धड-धड़ाते बूट, बस्ते, चल पड़े  
हर सवारी आठ तक निकल गई
रात की काली ...

कुछ बुजुर्गों का भी घर में ज़ोर था
साथ कपड़े, बरतनों का शोर था
माँ थी सीधी ये समझ न पाई थी
बाई के नखरे थे, मन में चोर था
काम, इतना काम, रोटी जल गई
रात की काली ...

ढेर सारे काम बाकी रह गए
ख्वाब कुछ गुमनाम बाकी रह गए
नींद पल-दो-पल जो माँ को आ गई
पल वो उसके नाम बाकी रह गए 
घर, पती, बच्चों, की खातिर गल गई
रात की काली ...

सब पढ़ाकू थे, में कुछ पीछे रहा
खेल मस्ती में मगर, आगे रहा
सर पे आई तो समझ में आ गया
डोर जो उम्मीद की थामे रहा 
जंग लगी बन्दूक इक दिन चल गई
रात की काली ...

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2019

खो कर ही इस जीवन में कुछ पाना है ...


मूल मन्त्र इस श्रृष्टि का ये जाना है
खो कर ही इस जीवन में कुछ पाना है

नव कोंपल उस पल पेड़ों पर आते हैं
पात पुरातन जड़ से जब झड़ जाते हैं    
जैविक घटकों में हैं ऐसे जीवाणू 
मिट कर खुद जो दो बन कर मुस्काते हैं
दंश नहीं मानो, खोना अवसर समझो
यही शाश्वत सत्य चिरंतन माना है
खो कर ही इस जीवन में ...

बचपन जाता है यौवन के उद्गम पर   
पुष्प नष्ट होता है फल के आगम पर  
छूटेंगे रिश्ते, नाते, संघी, साथी
तभी मिलेगा उच्च शिखर अपने दम पर
कुदरत भी बोले-बिन, बोले गहरा सच 
तम का मिट जाना ही सूरज आना है
खो कर ही इस जीवन में ...

कुछ रिश्ते टूटेंगे नए बनेंगे जब  
समय मात्र होगा बन्धन छूटेंगे जब  
खोना-पाना, मोह प्रेम दुःख का दर्पण    
सत्य सामने आएगा सोचेंगे जब 
दुनिया रैन-बसेरा, माया, लीला है
आना जिस पल जग में निश्चित जाना है 
खो कर ही इस जीवन में ...