स्वप्न मेरे: सत्य
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सोमवार, 11 मई 2020

कृष्ण


बहाने से प्रश्न करता हूँ स्वयं से ... पर उलझ जाता हूँ अपने कर्म से ... असम्भव को सम्भव करने के प्रयास में फिर फंस जाता हूँ मोह-जाल में ... फिर सोचता हूँ, ऐसी चाह रखता ही क्यों हूँ ... चाहत का कोई तो अंत होना चाहिए ...

क्या मनुष्य
या सत्य कहूं तो ... मैं 
कभी कृष्ण बन पाऊंगा ... ? 

मोह-माया से दूर 
अपना-पराया मन से हटा 
निज से परे 
सत्य और धर्म की राह पर  
स्वयं को होम कर पाऊंगा 

क्या कृष्ण का सत्य जान जाऊंगा 
कर्म के मार्ग पर  
एक क्षण के लिए ही 
कृष्ण बन पाऊंगा ... ?

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2019

खो कर ही इस जीवन में कुछ पाना है ...


मूल मन्त्र इस श्रृष्टि का ये जाना है
खो कर ही इस जीवन में कुछ पाना है

नव कोंपल उस पल पेड़ों पर आते हैं
पात पुरातन जड़ से जब झड़ जाते हैं    
जैविक घटकों में हैं ऐसे जीवाणू 
मिट कर खुद जो दो बन कर मुस्काते हैं
दंश नहीं मानो, खोना अवसर समझो
यही शाश्वत सत्य चिरंतन माना है
खो कर ही इस जीवन में ...

बचपन जाता है यौवन के उद्गम पर   
पुष्प नष्ट होता है फल के आगम पर  
छूटेंगे रिश्ते, नाते, संघी, साथी
तभी मिलेगा उच्च शिखर अपने दम पर
कुदरत भी बोले-बिन, बोले गहरा सच 
तम का मिट जाना ही सूरज आना है
खो कर ही इस जीवन में ...

कुछ रिश्ते टूटेंगे नए बनेंगे जब  
समय मात्र होगा बन्धन छूटेंगे जब  
खोना-पाना, मोह प्रेम दुःख का दर्पण    
सत्य सामने आएगा सोचेंगे जब 
दुनिया रैन-बसेरा, माया, लीला है
आना जिस पल जग में निश्चित जाना है 
खो कर ही इस जीवन में ...