२००९ की ढेरों शुभ-कामनाएं
नव वर्ष मंगलमय हो, सबके दुखों का क्षय हो
प्रभू चरण में वंदन है, सबका जीवन सुखमय हो
इस साल की अन्तिम रचना है यह, आप सब का आभार है जो मुझे प्रोत्साहित करते रहते हैं.
प्यार से कैसी शिकायत
प्यार तो रब की अमानत
हम भी तेरे दिल में रहते
वक़्त की होती इनायत
चूमते क़दमों को तेरे
आप की होती इजाज़त
ताज है जिनके सरों पर
लोग करते हैं इबादत
धूप या सर्दी का मौसम
बेघरों पर है क़यामत
काट कर पीपल घरों का
धूप से क्यों है शिकायत
देश की सीमायें अक्सर
खून से लिक्खी इबारत
जंग का ऐलान है यह
आग से जलती इमारत
मार खाते, लौट आते
है यही कुत्तों की आदत
बारिशों ने फूल धोये
खुशबुओं ने की बगावत
हाथ में जिनके छुरा था
मिल गयी उनको ज़मानत
आस्था या सत्य है यह
आब-ऐ-गंगा में नज़ाफत
लौट कर कब जाउंगा मैं
घर मेरा मेरी जियारत
(नज़ाफत - शुद्धता, स्वछता, जियारत-तीर्थ यात्रा, धर्म स्थल पर जाना)
बुधवार, 31 दिसंबर 2008
गुरुवार, 25 दिसंबर 2008
अधूरी दास्ताँ
टूट कर बिखरे हुवे पत्थर समय से मांगते
कुछ अधूरी दास्ताँ खंडहर समय से मांगते
क्यों हुयी अग्नी परीक्षा, दाव पर क्यों द्रोपदी
आज भी कुछ प्रश्न हैं उत्तर समय से मांगते
हड़ताल पर बैठे हुवे तारों का हठ तो देखिये
चाँद जैसी प्रतिष्ठा आदर समय से मांगते
चाँदनी से जल गए थे जिनके दरवाजे कभी
रौशनी सूरज की वो अक्सर समय से मांगते
फूल जो काँटों का दर्द सह नही पाते यहाँ
समय से पहले वही पतझड़ समय से मांगते
कुछ अधूरी दास्ताँ खंडहर समय से मांगते
क्यों हुयी अग्नी परीक्षा, दाव पर क्यों द्रोपदी
आज भी कुछ प्रश्न हैं उत्तर समय से मांगते
हड़ताल पर बैठे हुवे तारों का हठ तो देखिये
चाँद जैसी प्रतिष्ठा आदर समय से मांगते
चाँदनी से जल गए थे जिनके दरवाजे कभी
रौशनी सूरज की वो अक्सर समय से मांगते
फूल जो काँटों का दर्द सह नही पाते यहाँ
समय से पहले वही पतझड़ समय से मांगते
रविवार, 21 दिसंबर 2008
घंटियों में गूंजती अज़ान होना चाहिए
गीत जो गाना हो राष्ट्रगान होना चाहिए
घंटियों में गूंजती अज़ान होना चाहिए
बाइबल गीता यहाँ, कुरान होना चाहिए
जो कोई इनको पढ़े इंसान होना चाहिए
आज भी है इंतज़ार में तुम्हारे अहिल्या
राम को जाते हुवे यह भान होना चाहिए
गीदड़ों ने ओढ़ ली है खाल आज शेर की
आज से जंगल में जंगल राज होना चाहिए
आज फ़िर उठने लगा है दंभ शिशुपाल का
तर्जनी मैं चक्र का संधान होना चाहिए
टूट गयी व्यवस्था, न्याय है बिखरा हुवा
नया फ़िर से कोई संविधान होना चाहिए
होंसले को तुम जो मेरे चाहते हो तोलना
साथ कश्ती के मेरे तूफ़ान होना चाहिए
सागर जमीं आकाश चाँद सब तुम्हारे नाम है
दो गज हि सही मेरा भी मकान होना चाहिए
गाँव के बरगद तले डेरा है काले मेघ का
सूख गयी जो ज़मी, खलिहान होना चाहिए
छोड़ दो मुझको या दे दो कैद सारे उम्र की
मेरी ग़ज़ल इकबालिया बयान होना चाहिए
ढूंढते हो काहे मुझको अर्श की गहराई मैं
मील का पत्थर मेरा निशान होना चाहिए
पंछियों के घोंसलों से एक ही आवाज़ है
बेखोफ उड़ सकें वो आसमान होना चाहिए
अमावस के शहर में जुगनू है मेरी जेब में
उनके महल के सामने मकान होना चाहिए
घंटियों में गूंजती अज़ान होना चाहिए
बाइबल गीता यहाँ, कुरान होना चाहिए
जो कोई इनको पढ़े इंसान होना चाहिए
आज भी है इंतज़ार में तुम्हारे अहिल्या
राम को जाते हुवे यह भान होना चाहिए
गीदड़ों ने ओढ़ ली है खाल आज शेर की
आज से जंगल में जंगल राज होना चाहिए
आज फ़िर उठने लगा है दंभ शिशुपाल का
तर्जनी मैं चक्र का संधान होना चाहिए
टूट गयी व्यवस्था, न्याय है बिखरा हुवा
नया फ़िर से कोई संविधान होना चाहिए
होंसले को तुम जो मेरे चाहते हो तोलना
साथ कश्ती के मेरे तूफ़ान होना चाहिए
सागर जमीं आकाश चाँद सब तुम्हारे नाम है
दो गज हि सही मेरा भी मकान होना चाहिए
गाँव के बरगद तले डेरा है काले मेघ का
सूख गयी जो ज़मी, खलिहान होना चाहिए
छोड़ दो मुझको या दे दो कैद सारे उम्र की
मेरी ग़ज़ल इकबालिया बयान होना चाहिए
ढूंढते हो काहे मुझको अर्श की गहराई मैं
मील का पत्थर मेरा निशान होना चाहिए
पंछियों के घोंसलों से एक ही आवाज़ है
बेखोफ उड़ सकें वो आसमान होना चाहिए
अमावस के शहर में जुगनू है मेरी जेब में
उनके महल के सामने मकान होना चाहिए
शनिवार, 20 दिसंबर 2008
एहसास
अक्सर ऐसा हुवा है
बहूत कोशिशों के बाद
जब उसे मैं छू न सका
सो गया मूँद कर आँखें अपनी
बहुत देर तक फ़िर सोया रहा
महसूस करता रहा उसके हाथ की नरमी
छू लिया हल्हे से उसके रुखसार को
उड़ता रहा खुले आसमान में
थामे रहा उसका हाथ
चुपके से सहलाता रहा उसके बाल
पर हर बार
जब भी मेरी आँख खुली
अचानक सब कुछ दूर
बहुत दूर हो गया
क्या वो सिर्फ़ इक एहसास था...................
एहसाह जिसे महसूस तो किया जा सकता है
पर जागती आखों से छुआ नही जा सकता
जागती आंखों से छुआ नही जाता
बहूत कोशिशों के बाद
जब उसे मैं छू न सका
सो गया मूँद कर आँखें अपनी
बहुत देर तक फ़िर सोया रहा
महसूस करता रहा उसके हाथ की नरमी
छू लिया हल्हे से उसके रुखसार को
उड़ता रहा खुले आसमान में
थामे रहा उसका हाथ
चुपके से सहलाता रहा उसके बाल
पर हर बार
जब भी मेरी आँख खुली
अचानक सब कुछ दूर
बहुत दूर हो गया
क्या वो सिर्फ़ इक एहसास था...................
एहसाह जिसे महसूस तो किया जा सकता है
पर जागती आखों से छुआ नही जा सकता
जागती आंखों से छुआ नही जाता
बुधवार, 17 दिसंबर 2008
रिश्ते
काश ये रिश्ते
पतझड़ के पत्तों की तरह होते
मौसम के साथ बदल जाते....
काश ये रिश्ते
बादल की तरह होते
बरसते बिखर जाते....
काश ये रिश्ते
बहती हवा होते
छूते गुज़र जाते....
दिल के किसी कोने मैं
गहरा घाव तो न बनाते
आंसूं बन कर
पिघलते तो न रहते....
कितना अच्छा होता,
ये रिश्ते ही न होते................
पतझड़ के पत्तों की तरह होते
मौसम के साथ बदल जाते....
काश ये रिश्ते
बादल की तरह होते
बरसते बिखर जाते....
काश ये रिश्ते
बहती हवा होते
छूते गुज़र जाते....
दिल के किसी कोने मैं
गहरा घाव तो न बनाते
आंसूं बन कर
पिघलते तो न रहते....
कितना अच्छा होता,
ये रिश्ते ही न होते................
रविवार, 14 दिसंबर 2008
ग़ज़ल
हाथ में जुम्बिश नज़र में ताब जब तक
कलम से लिक्खुंगा इन्कलाब तब तक
रौशनी का अपनी इंतज़ाम रक्खो
अर्श मैं जलता है आफताब कब तक
गुज़र गए दो, अभी बाकी हैं दो दिन
वक्त के सहता रहूँ अज़ाब कब तक
जब तलक साँसें है, दिल है और तुम हो
देख लूँगा ज़िन्दगी के ख्वाब तब तक
तोड़ कर यादों का कफ़स जान लोगे
जब तलक यादें हैं इज़्तिराब तब तक
चाहता हूँ फ़िर नयी शैतानियाँ करना
माँ तुझे आ जाए न इताब जब तक
उजड़ी हुयी इमारतों के ईंट पत्थर
मांगते हैं जुल्म का हिसाब अब तक
नज़रें झुकाए, हाथ जोड़े,मुस्कुरा कर
शैतान अब मिलेंगे इन्तिखाब जब तक
चंद लम्हे ही सही जी लो तमाम जिंदगी
ख्वाहिश औ अरमान की किताब कब तक
जब तलक जागे हैं पासबान-ऐ-चमन
हर कली, खिलता हुवा गुलाब तब तक
(अज़ाब-दर्द, इज़्तिराब-चिंता बैचेनी, इताब-क्रोध गुस्सा, इन्तिखाब-चुनाव)
कलम से लिक्खुंगा इन्कलाब तब तक
रौशनी का अपनी इंतज़ाम रक्खो
अर्श मैं जलता है आफताब कब तक
गुज़र गए दो, अभी बाकी हैं दो दिन
वक्त के सहता रहूँ अज़ाब कब तक
जब तलक साँसें है, दिल है और तुम हो
देख लूँगा ज़िन्दगी के ख्वाब तब तक
तोड़ कर यादों का कफ़स जान लोगे
जब तलक यादें हैं इज़्तिराब तब तक
चाहता हूँ फ़िर नयी शैतानियाँ करना
माँ तुझे आ जाए न इताब जब तक
उजड़ी हुयी इमारतों के ईंट पत्थर
मांगते हैं जुल्म का हिसाब अब तक
नज़रें झुकाए, हाथ जोड़े,मुस्कुरा कर
शैतान अब मिलेंगे इन्तिखाब जब तक
चंद लम्हे ही सही जी लो तमाम जिंदगी
ख्वाहिश औ अरमान की किताब कब तक
जब तलक जागे हैं पासबान-ऐ-चमन
हर कली, खिलता हुवा गुलाब तब तक
(अज़ाब-दर्द, इज़्तिराब-चिंता बैचेनी, इताब-क्रोध गुस्सा, इन्तिखाब-चुनाव)
शनिवार, 13 दिसंबर 2008
व्यथा
मेरे घर के सामने से, तुम जो गुज़रो मुसाफिर,
ठहर जाना पल दो पल पीपल की ठंडी छाँव में....
हो भला सूखे हुवे पत्तों की आवाज़ें वहाँ,
टकटकी बांधे हुवे बूढा खड़ा होगा जहाँ,
रात में घर लौट कर पंछी न कोई आएगा,
सुबह से ही गीत कोई विरह के फ़िर गायेगा,
कुछ उदास चूड़ियाँ खनकेंगी तुम को देख कर,
खिड़कियों से झांकती आँखें मिलेंगी गाँव में,
ठहर जाना पल दो पल पीपल की ठंडी छाँव में....
लौट कर आती हुई लहरों से तुम फ़िर पूछना,
साहिलों की रेत में उनका निशां तुम ढूंढ़ना,
पूछना उस हवा से आयी है जो छु कर उन्हे,
क्या कभी भी याद आता है पुराना घर उन्हे,
तोड़ न देना वो दिल, पूछे जो तुमसे चीख कर,
कहाँ हैं वो मुसाफिर बैठे थे कल जो नाव में,
ठहर जाना पल दो पल पीपल की ठंडी छाँव में....
ठहर जाना पल दो पल पीपल की ठंडी छाँव में....
हो भला सूखे हुवे पत्तों की आवाज़ें वहाँ,
टकटकी बांधे हुवे बूढा खड़ा होगा जहाँ,
रात में घर लौट कर पंछी न कोई आएगा,
सुबह से ही गीत कोई विरह के फ़िर गायेगा,
कुछ उदास चूड़ियाँ खनकेंगी तुम को देख कर,
खिड़कियों से झांकती आँखें मिलेंगी गाँव में,
ठहर जाना पल दो पल पीपल की ठंडी छाँव में....
लौट कर आती हुई लहरों से तुम फ़िर पूछना,
साहिलों की रेत में उनका निशां तुम ढूंढ़ना,
पूछना उस हवा से आयी है जो छु कर उन्हे,
क्या कभी भी याद आता है पुराना घर उन्हे,
तोड़ न देना वो दिल, पूछे जो तुमसे चीख कर,
कहाँ हैं वो मुसाफिर बैठे थे कल जो नाव में,
ठहर जाना पल दो पल पीपल की ठंडी छाँव में....
बुधवार, 10 दिसंबर 2008
ग़ज़ल
आज फ़िर मंथन हुवा है, ज़हर है छिटका हुवा
आज शिव ने कंठ मैं फ़िर गरल है गटका हुवा
देखने हैं और कितने महा-समर आज भी
है त्रिशंकू आज भी इस भंवर में भटका हुवा
पोंछना है दर्द तो दिल के करीब जाओ तुम
दूर से क्यूँ देखते हो दिल मेरा चटका हुवा
राह सूनी, आँख रीति, जोड़ कर तिनके सभी
मुद्दतों से शाख पर है घोंसला लटका हुवा
इक समय था जब समय मुट्ठी मैं मेरी कैद था
अब समय है, मैं समय के चक्र में अटका हुवा
आज शिव ने कंठ मैं फ़िर गरल है गटका हुवा
देखने हैं और कितने महा-समर आज भी
है त्रिशंकू आज भी इस भंवर में भटका हुवा
पोंछना है दर्द तो दिल के करीब जाओ तुम
दूर से क्यूँ देखते हो दिल मेरा चटका हुवा
राह सूनी, आँख रीति, जोड़ कर तिनके सभी
मुद्दतों से शाख पर है घोंसला लटका हुवा
इक समय था जब समय मुट्ठी मैं मेरी कैद था
अब समय है, मैं समय के चक्र में अटका हुवा
शनिवार, 6 दिसंबर 2008
ग़ज़ल
फ़िर कोई खण्डहर विराना ढूँढ़ते हो
मुझसे मिलने का बहाना ढूँढ़ते हो
पौंछ डाला शहर का इतिहास सारा
काहे अब पीपल पुराना ढूँढ़ते हो
इस शहर की बस्तियाँ वीरान हैं
तुम शहर में आबो-दाना ढूँढ़ते हो
गौर से क्यों देखते हो आसमां को
दोस्त या गुज़रा ज़माना ढूँढ़ते हो
मैं जड़ों को सींचता हुं, आब हूँ मैं
क्यूँ अब्र में मेरा ठिकाना ढूँढ़ते हो
रात की चादर लपेटे सोई हैं सड़कें
क्यूँ हादसे,किस्सा,फ़साना ढूँढ़ते हो
लहू से लिक्खा है हर अल्फाज़ मैंने
तुम ग़ज़ल का मुस्कुराना ढूँढ़ते हो
मुझसे मिलने का बहाना ढूँढ़ते हो
पौंछ डाला शहर का इतिहास सारा
काहे अब पीपल पुराना ढूँढ़ते हो
इस शहर की बस्तियाँ वीरान हैं
तुम शहर में आबो-दाना ढूँढ़ते हो
गौर से क्यों देखते हो आसमां को
दोस्त या गुज़रा ज़माना ढूँढ़ते हो
मैं जड़ों को सींचता हुं, आब हूँ मैं
क्यूँ अब्र में मेरा ठिकाना ढूँढ़ते हो
रात की चादर लपेटे सोई हैं सड़कें
क्यूँ हादसे,किस्सा,फ़साना ढूँढ़ते हो
लहू से लिक्खा है हर अल्फाज़ मैंने
तुम ग़ज़ल का मुस्कुराना ढूँढ़ते हो
गुरुवार, 4 दिसंबर 2008
जीवन
सुख जो तूने भोगा है, दुःख भी तुझको सहना है
दीपक चाहे तेज़ जले, तल में तो अँधेरा रहना है
लोभ, मोह, माया की मद में, अँधा हो कर दौड़ रहा
अंत समय में सब को भईया राम नाम ही कहना है
तेरा मेरा सबका जीवन पल दो पल का लेखा है
गिन कर सबकी साँसे, चोला पञ्च-तत्त्व का पहना है
सागर की लहरों सा जीवन तट की और है दौड़ रहा
किस को मालुम तट को छू कर लहरों को तो ढहना है
मुँह न मोड़ो तुम सपनो से, सपनो से तो है जीवन
सपने जब तक आंखों में, जीवन चलते रहना है
खुशियाँ सबकी अपनी, दुःख भी सबका अपना हैं
जीवन बच्चे की मुट्ठी में, रेत भरा इक सपना है
दीपक चाहे तेज़ जले, तल में तो अँधेरा रहना है
लोभ, मोह, माया की मद में, अँधा हो कर दौड़ रहा
अंत समय में सब को भईया राम नाम ही कहना है
तेरा मेरा सबका जीवन पल दो पल का लेखा है
गिन कर सबकी साँसे, चोला पञ्च-तत्त्व का पहना है
सागर की लहरों सा जीवन तट की और है दौड़ रहा
किस को मालुम तट को छू कर लहरों को तो ढहना है
मुँह न मोड़ो तुम सपनो से, सपनो से तो है जीवन
सपने जब तक आंखों में, जीवन चलते रहना है
खुशियाँ सबकी अपनी, दुःख भी सबका अपना हैं
जीवन बच्चे की मुट्ठी में, रेत भरा इक सपना है
बुधवार, 3 दिसंबर 2008
आँगन
बरसों हो गए उस घर को छोड़े जो आज भी छाया रहता है मेरे ज़हन में,पिछले १५ वर्षों में जाने कितने हि घरों मैं रहा हूँ, पर कोई भी 'अपने आँगन" जैसा नही लगता,उसकी याद, उसकी खुशबू, वहां गुज़ारा एक एक लम्हा, आज भी मन को गुदगुदाता है|
यह कविता, बहुत पहले उस आँगन की याद में शुरू हुई, यादें जुड़ती गयीं, कविता बनती गयी,जाने कितने छंद इसमे और जुडेगें, क्यूंकि वो आँगन तो आज भी उतना ही ताज़ा है, जितना कल था|
यह कविता, बहुत पहले उस आँगन की याद में शुरू हुई, यादें जुड़ती गयीं, कविता बनती गयी,जाने कितने छंद इसमे और जुडेगें, क्यूंकि वो आँगन तो आज भी उतना ही ताज़ा है, जितना कल था|
आँगन में बिखरे
रहे, चूड़ी कंचे गीत
आँगन की सोगात ये, आँगन के हैं मीत
आँगन आँगन
तितलियाँ, उड़ती उड़ती जाएँ
इक आँगन का हाल
ये, दूजे से कह आएँ
बचपन फ़िर योवन
गया, जैसे कल कि बात
आँगन तब भी साथ
था, आँगन अब भी साथ
आँगन में रच बस
गयी, खट्टी मीठी याद
आँगन सब को पालता, ज्यों अपनी औलाद
तुलसी गमला मध्य
में, गोबर लीपा द्वार
शिव के सुंदर रूप
में, आँगन एक विचार
सुख दुःख छाया
धूप में, आँगन सदा बहार
आँगन में सिमटा
हुवा, छोटा सा संसार
कूंवा जोहड़ सब
यहाँ, फ़िर भी बाकी प्यास
बाट जोहता पथिक
कि, आँगन एक उदास
दुःख सुख छाया
धूप में, भटक गया परिवार
मौन तपस्वी सा
रहा, आँगन का व्यवहार
इक इक कर सब छोड़
गए, नाते रिश्तेदार
आँगन में खिलता
रहा, फ़िर भी सदाबहार
इक कोने में पेड़
है, दूजे में गोशाल
तीजे ठाकुरद्वार
है, आँगन के रखवाल
आँगन से बरसात है,
आँगन से है धूप
आँगन जैसे मोहिनी, शिव का सुंदर रूप
रविवार, 16 नवंबर 2008
आओ मिल कर चाँद बुनें
दुःख में रोना आता है,सुख में आप निकलते हैं
मेरी आंखों के आंसू तो ख़ुद मुझको ही छलते हैं
सांसों का है खेल ये जीवन, जीत मौत की होनी है
फ़िर भी क्यों भँवरे गाते हैं, फूल रोज ही खिलते हैं
तेरे मेरे उसके सपने, सपनो से कैसा जीवन
सपने तो सपने होते है, आंखों में ही पलते हैं
दुःख सब का साँझा होगा, मिल कर खुशियाँ बाँटेंगे
एसे जुमले कभी कभी अब किस्सों में ही मिलते हैं
आओ मिल कर चाँद बुनें और सूरज मिल कर खड़ा करें
इस दुनिया के चाँद और सूरज, समय चक्र से चलते हैं
मेरी आंखों के आंसू तो ख़ुद मुझको ही छलते हैं
सांसों का है खेल ये जीवन, जीत मौत की होनी है
फ़िर भी क्यों भँवरे गाते हैं, फूल रोज ही खिलते हैं
तेरे मेरे उसके सपने, सपनो से कैसा जीवन
सपने तो सपने होते है, आंखों में ही पलते हैं
दुःख सब का साँझा होगा, मिल कर खुशियाँ बाँटेंगे
एसे जुमले कभी कभी अब किस्सों में ही मिलते हैं
आओ मिल कर चाँद बुनें और सूरज मिल कर खड़ा करें
इस दुनिया के चाँद और सूरज, समय चक्र से चलते हैं
शुक्रवार, 14 नवंबर 2008
हादसा
कल सुबह ही हादसा ये हो गया
चाँद सूरज की गली में खो गया
इतिहास ने रोका बहुत इंसान को
समय की रफ्तार में वो सो गया
जो धड़कता था मेरे सीने में हरदम
वो मेरा दिल पत्थरों का हो गया
गाँव की पग-डंडियाँ हैं ढूंढती
लौट कर आया नही फ़िर जो गया
कुछ सिसकते ख्वाब उसके साथ थे
अपना घर छोड़ कर जब वो गया
ज़ुल्म का जिसके नही कोई हिसाब
पैसे के बल वो पाप सारे धो गया
चाँद सूरज की गली में खो गया
इतिहास ने रोका बहुत इंसान को
समय की रफ्तार में वो सो गया
जो धड़कता था मेरे सीने में हरदम
वो मेरा दिल पत्थरों का हो गया
गाँव की पग-डंडियाँ हैं ढूंढती
लौट कर आया नही फ़िर जो गया
कुछ सिसकते ख्वाब उसके साथ थे
अपना घर छोड़ कर जब वो गया
ज़ुल्म का जिसके नही कोई हिसाब
पैसे के बल वो पाप सारे धो गया
बुधवार, 12 नवंबर 2008
शक्ति का अह्वान
दिव्यता का सूर्य फ़िर उगने लगा
मेघ अंधकार का छटने लगा
हो रहा है फ़िर ह्रदय में आज मंथन
तरुण फ़िर उठने लगे हैं तोड़ बंधन
देवता भी कर रहे हैं आज वंदन
गरल फ़िर शिव कंठ मैं दिखने लगा
दिग्भ्रमित हम हो गए थे राह मे
अर्थ, माया की अनोखी चाह मे
लौट कर हम आ गए संग्राम मे
थाल पूजा का पुनः सजने लगा
संस्कृति पर हम को अपनी गर्व है
जाग्रति का हर दिवस तो पर्व है
जाग अर्जुन समय के कुरुक्षेत्र में
तर्जनी पर चक्र फ़िर सधने लगा
समय के तो साथ चलना चाहिए
पर स्वयं को भूलना ना चाहिए
देख तेरे रास्ते का श्रंग भी
पुष्प बन कर राह में बिछने लगा
कौन सा परिचय है तुझको चाहिए
काहे तुझको मार्ग-दर्शन चाहिए
धवल यश है पूर्वजों का साथ तेरे
तिमिर तेरी राह का मिटने लगा
शक्ति का अह्वान कर तू सर्वदा
श्रृष्टि का निर्माण कर तू सर्वदा
लक्ष्य पर एकाग्र है जो दृष्टि तेरी
चिर विजय का रास्ता खुलने लगा
मेघ अंधकार का छटने लगा
हो रहा है फ़िर ह्रदय में आज मंथन
तरुण फ़िर उठने लगे हैं तोड़ बंधन
देवता भी कर रहे हैं आज वंदन
गरल फ़िर शिव कंठ मैं दिखने लगा
दिग्भ्रमित हम हो गए थे राह मे
अर्थ, माया की अनोखी चाह मे
लौट कर हम आ गए संग्राम मे
थाल पूजा का पुनः सजने लगा
संस्कृति पर हम को अपनी गर्व है
जाग्रति का हर दिवस तो पर्व है
जाग अर्जुन समय के कुरुक्षेत्र में
तर्जनी पर चक्र फ़िर सधने लगा
समय के तो साथ चलना चाहिए
पर स्वयं को भूलना ना चाहिए
देख तेरे रास्ते का श्रंग भी
पुष्प बन कर राह में बिछने लगा
कौन सा परिचय है तुझको चाहिए
काहे तुझको मार्ग-दर्शन चाहिए
धवल यश है पूर्वजों का साथ तेरे
तिमिर तेरी राह का मिटने लगा
शक्ति का अह्वान कर तू सर्वदा
श्रृष्टि का निर्माण कर तू सर्वदा
लक्ष्य पर एकाग्र है जो दृष्टि तेरी
चिर विजय का रास्ता खुलने लगा
रविवार, 9 नवंबर 2008
मानव
सभ्यता के माप दंड छोड़ता हुवा
समाज के नियम सभी तोड़ता हुवा
कौन दिशा अग्रसर आज का मानव
समय से भी तेज़ तेज़ दौड़ता हुवा
दर्प सर्प का है किंतु विष नही
लक्ष्य तो पाना है पर कोशिश नही
उड़ रहा है दिग्भ्रमित सा गगन में
कर्मपथ से हो विरल मुख मोड़ता हुवा
ताक पर क्यों रख दिए सम्बंध सारे
क्यों युधिष्ठर की तरह निज-बंधू हारे
क्यों चला विस्मरण कर इतिहास को
नेह-बन्ध आदतन मरोड़ता हुवा
सूख गया आँख से क्यों नीर सारा
उतर गया अंग से क्यों चीर सारा
होम कर क्यों मूल्य सारे जा रहा
तिमिर के तू आवरण ओड़ता हुवा
समाज के नियम सभी तोड़ता हुवा
कौन दिशा अग्रसर आज का मानव
समय से भी तेज़ तेज़ दौड़ता हुवा
दर्प सर्प का है किंतु विष नही
लक्ष्य तो पाना है पर कोशिश नही
उड़ रहा है दिग्भ्रमित सा गगन में
कर्मपथ से हो विरल मुख मोड़ता हुवा
ताक पर क्यों रख दिए सम्बंध सारे
क्यों युधिष्ठर की तरह निज-बंधू हारे
क्यों चला विस्मरण कर इतिहास को
नेह-बन्ध आदतन मरोड़ता हुवा
सूख गया आँख से क्यों नीर सारा
उतर गया अंग से क्यों चीर सारा
होम कर क्यों मूल्य सारे जा रहा
तिमिर के तू आवरण ओड़ता हुवा
गुरुवार, 6 नवंबर 2008
एक ख्वाहिश
जिस्म ज़ख्मों की जीती जागती नुमाइश है
फ़िर भी जीने की दिल मैं दबी दबी ख़्वाहिश है
दर्द पीछा नही छोड़ेगा मौत आने तक
साँस के साथ साथ दर्द की पैदाइश है
टूट कर बिखर जाने के नही कायल हम भी
साँस बाकी है जब तक सुबह की गुंजाईश है
यूँ न मायूस हो कर होंसले का दम तोड़ो
अभी तो ज़िंदगी से गीत की फरमाइश है
कही घायल, कहीं भूखे कहीं पंछी कफ़स में
हर तरफ़ मौत से जीवन की आज़मईश है
फ़िर भी जीने की दिल मैं दबी दबी ख़्वाहिश है
दर्द पीछा नही छोड़ेगा मौत आने तक
साँस के साथ साथ दर्द की पैदाइश है
टूट कर बिखर जाने के नही कायल हम भी
साँस बाकी है जब तक सुबह की गुंजाईश है
यूँ न मायूस हो कर होंसले का दम तोड़ो
अभी तो ज़िंदगी से गीत की फरमाइश है
कही घायल, कहीं भूखे कहीं पंछी कफ़स में
हर तरफ़ मौत से जीवन की आज़मईश है
मंगलवार, 4 नवंबर 2008
आइना
टूट कर बिखरा हुवा था आइना,
धर्म पर निभा रहा था आइना,
खून से लिख्खे हुवे इतिहास को,
आइना दिखला रहा था आइना,
देख कर वो सत्य सह न पायेगा,
सत्य पर दोहरा रहा था आइना,
तुमने काहे देख ली अपनी छवि,
गर्व से इठला रहा था आइना,
पत्थरों ने रची थीं ये साज़िशें,
कांच कांच सा रहा था आइना,
अंधों के घर आईने ही आईने,
ख़ुद पे तरस खा रहा था आइना,
कौन जाने कौन शहर बिकेगा,
सोच कर घबरा रहा था आइना,
मांग सूनी, भरी पर प्रति-बिम्ब मैं,
कोई गज़ब ढा रहा था आइना,
तोड़ कर हर एक टुकड़ा आईने का,
आईने बना रहा था आइना,
धर्म पर निभा रहा था आइना,
खून से लिख्खे हुवे इतिहास को,
आइना दिखला रहा था आइना,
देख कर वो सत्य सह न पायेगा,
सत्य पर दोहरा रहा था आइना,
तुमने काहे देख ली अपनी छवि,
गर्व से इठला रहा था आइना,
पत्थरों ने रची थीं ये साज़िशें,
कांच कांच सा रहा था आइना,
अंधों के घर आईने ही आईने,
ख़ुद पे तरस खा रहा था आइना,
कौन जाने कौन शहर बिकेगा,
सोच कर घबरा रहा था आइना,
मांग सूनी, भरी पर प्रति-बिम्ब मैं,
कोई गज़ब ढा रहा था आइना,
तोड़ कर हर एक टुकड़ा आईने का,
आईने बना रहा था आइना,
रविवार, 2 नवंबर 2008
आइनों के शहर का वो शख्स था
तेज़ थी हवा तुम्हारे शहर की
तितलियों का रंग भी उड़ा दिया
बादलों को घर में मैंने दी पनाह
बिजलियों ने घर मेरा जला दिया
बारिशों का खेल भी अजीब था
डूबतों को और भी डुबा दिया
आइनों के शहर का वो शख्स था
सत्य को सफाई से छुपा गया
इक ज्योतिषी हाथ मेरा देख कर
भाग्य की रेखाओं को मिटा गया
कौन सा भंवरा था साथ शहद के
पंखुरी का रंग भी चुरा गया
तितलियों का रंग भी उड़ा दिया
बादलों को घर में मैंने दी पनाह
बिजलियों ने घर मेरा जला दिया
बारिशों का खेल भी अजीब था
डूबतों को और भी डुबा दिया
आइनों के शहर का वो शख्स था
सत्य को सफाई से छुपा गया
इक ज्योतिषी हाथ मेरा देख कर
भाग्य की रेखाओं को मिटा गया
कौन सा भंवरा था साथ शहद के
पंखुरी का रंग भी चुरा गया
सोमवार, 27 अक्तूबर 2008
दीपावली के मंगल पर्व पर सभी को हार्दिक शुभकामनाऐं
अंतरमन को जाग्रत कर
दीप-शिखा बन जाएं
रात अमावस की आई
दीप से दीप जलाएं
दीप-शिखा बन जाएं
रात अमावस की आई
दीप से दीप जलाएं
शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2008
ज़िंदगी का गीत
ज़िंदगी का रंग हो वो गीत गाना चाहिए
यूँ कोई भी गीत नही गुन-गुनाना चाहिए
शहर पूरा जग-मगाता है चरागों से मगर
स्याह मोड़ पर कोई दीपक जलाना चाहिए
दोस्तों की दोस्ती पर नाज तो करिये मगर
दुश्मनों को देख कर भी मुस्कुराना चाहिए
मंज़िलें को पा ही लेते हैं तमाम राहबर
रास्ते के पत्थरों को भी उठाना चाहिए
चाँद की गली मैं सूरज खो गया अभी अभी
आज रात जुगनुओं को टिम-टिमाना चाहिए
आदमी और आदमी के बीच का ये फांसला
सुलगती सी आग है उसको बुझाना चाहिए
यूँ कोई भी गीत नही गुन-गुनाना चाहिए
शहर पूरा जग-मगाता है चरागों से मगर
स्याह मोड़ पर कोई दीपक जलाना चाहिए
दोस्तों की दोस्ती पर नाज तो करिये मगर
दुश्मनों को देख कर भी मुस्कुराना चाहिए
मंज़िलें को पा ही लेते हैं तमाम राहबर
रास्ते के पत्थरों को भी उठाना चाहिए
चाँद की गली मैं सूरज खो गया अभी अभी
आज रात जुगनुओं को टिम-टिमाना चाहिए
आदमी और आदमी के बीच का ये फांसला
सुलगती सी आग है उसको बुझाना चाहिए
बुधवार, 22 अक्तूबर 2008
भोर के सूरज
किरण के रथ पर सवार भोर के सूरज
विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज
तू स्वयं अग्नि शिखा है कर्म पथ पर
तू जो चाहे होम हो जा धर्म पथ पर
स्वयं के बल को निहार भोर के सूरज
विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज
मार्ग दुर्गम है बहुत सब जानते हैं
प्रबल झंझावात है सब मानते हैं
कंटकों से तू न हार भोर के सूरज
विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज
अग्रसर हो कर समर्पण कर समर्पण
विश्व का तू पुनः कर फ़िर मार्ग दर्शन
दूर कर ये अंधकार भोर के सूरज
विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज
विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज
तू स्वयं अग्नि शिखा है कर्म पथ पर
तू जो चाहे होम हो जा धर्म पथ पर
स्वयं के बल को निहार भोर के सूरज
विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज
मार्ग दुर्गम है बहुत सब जानते हैं
प्रबल झंझावात है सब मानते हैं
कंटकों से तू न हार भोर के सूरज
विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज
अग्रसर हो कर समर्पण कर समर्पण
विश्व का तू पुनः कर फ़िर मार्ग दर्शन
दूर कर ये अंधकार भोर के सूरज
विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज
शनिवार, 18 अक्तूबर 2008
तोड़ लाना चाँद
यूं तो साथ है तमाम लोगों का हजूम
हम सफ़र कोई तो मेरे साथ होना चाहिये
यूं तो गम में दोस्त बहुत होते हैं शरीक
गले लग कर कोई मेरे साथ रोना चाहिये
जुस्तजू, वादे-वफ़ा, अरमान दिल की ख्वाहिशें
घड़ी भर को नींद आ जाए वो कोना चाहिये
इस जहाँ में आब-दाने की नही चिंता मुझे
ओड़नी है आसमां मिट्टी बिछोना चाहिये
नफरतों की फसल बहुत काट ली सबने यहाँ
प्रेम की बाली उगे वो बीज बोना चाहिये
तुम अगर छूने चलो आकाश की बुलंदियाँ
तोड़ लाना चाँद ये मुझको खिलौना चाहिये
कोई नया खेल तुम न खेलना ऐ बादलों
तुम जो बरसो मेरा घर-आँगन भिगोना चाहिये
हम सफ़र कोई तो मेरे साथ होना चाहिये
यूं तो गम में दोस्त बहुत होते हैं शरीक
गले लग कर कोई मेरे साथ रोना चाहिये
जुस्तजू, वादे-वफ़ा, अरमान दिल की ख्वाहिशें
घड़ी भर को नींद आ जाए वो कोना चाहिये
इस जहाँ में आब-दाने की नही चिंता मुझे
ओड़नी है आसमां मिट्टी बिछोना चाहिये
नफरतों की फसल बहुत काट ली सबने यहाँ
प्रेम की बाली उगे वो बीज बोना चाहिये
तुम अगर छूने चलो आकाश की बुलंदियाँ
तोड़ लाना चाँद ये मुझको खिलौना चाहिये
कोई नया खेल तुम न खेलना ऐ बादलों
तुम जो बरसो मेरा घर-आँगन भिगोना चाहिये
शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2008
कुछ एहसास
१
बादल का एक टुकड़ा
अभी अभी मेरे ख़्वाब ले कर भागा है
चलो जल्दी से उसे पकड़ लें
कहीं बरसात के साथ
वो बिखर न जाये
२
क्षितिज के उस पार
जहाँ चाँद समुंदर में उतर आया है
चलो जल्दी से नहां लें
कंही चाँद खो न जाये
अभी अभी
एक बच्चे नें वहां
पत्थर उछाला है
बादल का एक टुकड़ा
अभी अभी मेरे ख़्वाब ले कर भागा है
चलो जल्दी से उसे पकड़ लें
कहीं बरसात के साथ
वो बिखर न जाये
२
क्षितिज के उस पार
जहाँ चाँद समुंदर में उतर आया है
चलो जल्दी से नहां लें
कंही चाँद खो न जाये
अभी अभी
एक बच्चे नें वहां
पत्थर उछाला है
कुंडलियाँ
मंदी के इस दौर में, सर पर खड़े चुनाव
नेता सारे सोच रहे, कौन सा खेलें दावं
कौन सा खेलें दावं, कौन सा झगड़ा बोयें
जनता पर भी राज करें कुर्सी न खोयें
कहे दिगम्बर नेताओं को दे दो झटका
मंदी के इस दौर मैं, पैसा ज्यों अटका
**********
आगजनी दंगों के बाद, नेता करते प्रतीक्षा
जांच के आयोग बिठाते, होती रहती समीक्षा
होती रहती समीक्षा, समय चुनाव का आता
जातिवाद का खेल, शुरू फ़िर से हो जाता
कहे दिगम्बर नेताओं का खेल निराला
अपनी ही माँ का आँचल छलनी कर डाला
नेता सारे सोच रहे, कौन सा खेलें दावं
कौन सा खेलें दावं, कौन सा झगड़ा बोयें
जनता पर भी राज करें कुर्सी न खोयें
कहे दिगम्बर नेताओं को दे दो झटका
मंदी के इस दौर मैं, पैसा ज्यों अटका
**********
आगजनी दंगों के बाद, नेता करते प्रतीक्षा
जांच के आयोग बिठाते, होती रहती समीक्षा
होती रहती समीक्षा, समय चुनाव का आता
जातिवाद का खेल, शुरू फ़िर से हो जाता
कहे दिगम्बर नेताओं का खेल निराला
अपनी ही माँ का आँचल छलनी कर डाला
गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008
नेता एक रूप अनेक
नेता - १
सर पर गाँधी टोपी
मुंह में पान
कुर्सी में अटकी
जिसकी जान
नेता - २
लोगों को
मदारी बन कर हंसाए
कुर्सी पर बैठते ही
जोंक बन जाए
नेता - ३
पांच साल तक
अंग्रेज़ी में करे बात
चुनाव पास आते हि
हिन्दी को करे याद
नेता - ४
चुनाव में
विरोधियों को निकाले गाली
चुनाव ख़त्म होते हि उनके साथ
मिल कर बजाय ताली
नेता - ५
आज के नेता
कुम्भकरण को आदर्श मानते हैं
तभी तो पाँच साल में एक बार
नींद से जागते हैं
नेता - ६
नेता और उल्लू
एक से होते हैं
दोनों हि दिन में सोते हैं
फर्क बस इतना
उल्लू पेड पर
नेता संसद में होते हैं
नेता - ७
नेता और मेढक में
एक बात सामान्य है
दोनों अपने अपने मौसम में आते
अपना अपना राग सुनाते
नेता वोट वोट
मेढक टर्र टर्र टर्राते
फर्क - मेढक साल के साल आते,
नेता पाँच साल बाद मुस्कुराते
नेता - ८
नेता और बिल्ली में
सामान्य रूप से क्या पाया
दोनों ने किसी न किसी को उल्लू बनाया
फर्क बस इतना है
नेता ने जनता का,
बिल्ली ने बंदर का माल खाया
नेता - ९
नेता जी ने
चुनाव जीतने कि करी तैयारी
खद्दर और लाठी छोड़ कर
ऐ के ४७ से कर ली यारी
सर पर गाँधी टोपी
मुंह में पान
कुर्सी में अटकी
जिसकी जान
नेता - २
लोगों को
मदारी बन कर हंसाए
कुर्सी पर बैठते ही
जोंक बन जाए
नेता - ३
पांच साल तक
अंग्रेज़ी में करे बात
चुनाव पास आते हि
हिन्दी को करे याद
नेता - ४
चुनाव में
विरोधियों को निकाले गाली
चुनाव ख़त्म होते हि उनके साथ
मिल कर बजाय ताली
नेता - ५
आज के नेता
कुम्भकरण को आदर्श मानते हैं
तभी तो पाँच साल में एक बार
नींद से जागते हैं
नेता - ६
नेता और उल्लू
एक से होते हैं
दोनों हि दिन में सोते हैं
फर्क बस इतना
उल्लू पेड पर
नेता संसद में होते हैं
नेता - ७
नेता और मेढक में
एक बात सामान्य है
दोनों अपने अपने मौसम में आते
अपना अपना राग सुनाते
नेता वोट वोट
मेढक टर्र टर्र टर्राते
फर्क - मेढक साल के साल आते,
नेता पाँच साल बाद मुस्कुराते
नेता - ८
नेता और बिल्ली में
सामान्य रूप से क्या पाया
दोनों ने किसी न किसी को उल्लू बनाया
फर्क बस इतना है
नेता ने जनता का,
बिल्ली ने बंदर का माल खाया
नेता - ९
नेता जी ने
चुनाव जीतने कि करी तैयारी
खद्दर और लाठी छोड़ कर
ऐ के ४७ से कर ली यारी
सोमवार, 13 अक्तूबर 2008
लम्हा
अभी अभी एक लम्हे की इब्तदा हुई
जागती आँखों में कुछ ख़्वाब सुगबुगाने लगे
ये कायनात जैसे ठिठक गयी
घने कोहरे की चादर चीर कर
रौशनी मद्धम मद्धम मुस्कुराने लगी
आसमान से टूट कर कोई तारा
ज़मीन पर बिखर गया
वो लम्हा अब निखर गया
कैनवस की आड़ी तिरछी रेखाओं में
एक अक्स साकार होने लगा
वो लम्हा साँस लेने लगा
वो लम्हा साँस लेने लगा
सारी कायनात झूम उठी
पल उस पल जैसे ठहर गया
साँस जैसे थम गयी
xxxxxx......
तुमने क्यों अचानक मुझे
झंड्झोर कर उठा दिया
लम्हा मेरे हाथ से फिसल कर
वक़्त की गहराइयों में खो गया
वो कहने को तो एक लम्हा ही था
पर मेरी जिंदगी निचोड़ गया
मेरी जिंदगी निचोड़ गया
जागती आँखों में कुछ ख़्वाब सुगबुगाने लगे
ये कायनात जैसे ठिठक गयी
घने कोहरे की चादर चीर कर
रौशनी मद्धम मद्धम मुस्कुराने लगी
आसमान से टूट कर कोई तारा
ज़मीन पर बिखर गया
वो लम्हा अब निखर गया
कैनवस की आड़ी तिरछी रेखाओं में
एक अक्स साकार होने लगा
वो लम्हा साँस लेने लगा
वो लम्हा साँस लेने लगा
सारी कायनात झूम उठी
पल उस पल जैसे ठहर गया
साँस जैसे थम गयी
xxxxxx......
तुमने क्यों अचानक मुझे
झंड्झोर कर उठा दिया
लम्हा मेरे हाथ से फिसल कर
वक़्त की गहराइयों में खो गया
वो कहने को तो एक लम्हा ही था
पर मेरी जिंदगी निचोड़ गया
मेरी जिंदगी निचोड़ गया
रविवार, 12 अक्तूबर 2008
लुट गए हैं रंग सारी कायनात के
खो गयी है आज क्यों सूरज की धूप
लुट गए हैं रंग सारी कायनात के
जुगनुओं से दोस्ती अब हो गयी अपनी
साथ मुझ को ले चलो ऐ राही रात के
तू छावं भी है धूप भी बरसात भी
रंग हैं कितने तुम्हारी शख्सियात के
छत तेरी आँगन मेरा, रोटी तेरी चूल्हा मेरा
सिलसिले खो गए वो मुलाक़ात के
मेरी तस्वीर मैं क्यों ज़िन्दगी के रंग भरे
झूठे फ़साने बन गए छोटी सी बात के
काँटे भी चुभे फूल का मज़ा भि लिया
दर्द लिए बैठे थे हम तेरी याद के
कुछ नए तारे खिले हैं आसमान पर
जी उठे लम्हे नए ज़ज्बात के
रास्तों ने रख लिया उनका हिसाब
जुल्म मैं सहता रहा ता-उम्र आप के
बाद-ऐ-मुद्दत फूल खिले हैं यहाँ
वो हिन्दू मुसलमान हैं या और ज़ात के
इक दिन मैं तुझको आईना दिखला दूँगा
तोड़ कर दीवारों दर इस हवालात के
लहू तो बस लाल रंग का हि गिरेगा
पत्थर संभालो दोस्तों तुम अपने हाथ के
है सोचने पर भी यहाँ पहरा लगा हुआ
पंछी उड़ाते रह गया मैं ख़यालात के
फ़िर नए इक हादसे का इंतज़ार
पन्ने पलटते रह गया अख़बार के
लुट गए हैं रंग सारी कायनात के
जुगनुओं से दोस्ती अब हो गयी अपनी
साथ मुझ को ले चलो ऐ राही रात के
तू छावं भी है धूप भी बरसात भी
रंग हैं कितने तुम्हारी शख्सियात के
छत तेरी आँगन मेरा, रोटी तेरी चूल्हा मेरा
सिलसिले खो गए वो मुलाक़ात के
मेरी तस्वीर मैं क्यों ज़िन्दगी के रंग भरे
झूठे फ़साने बन गए छोटी सी बात के
काँटे भी चुभे फूल का मज़ा भि लिया
दर्द लिए बैठे थे हम तेरी याद के
कुछ नए तारे खिले हैं आसमान पर
जी उठे लम्हे नए ज़ज्बात के
रास्तों ने रख लिया उनका हिसाब
जुल्म मैं सहता रहा ता-उम्र आप के
बाद-ऐ-मुद्दत फूल खिले हैं यहाँ
वो हिन्दू मुसलमान हैं या और ज़ात के
इक दिन मैं तुझको आईना दिखला दूँगा
तोड़ कर दीवारों दर इस हवालात के
लहू तो बस लाल रंग का हि गिरेगा
पत्थर संभालो दोस्तों तुम अपने हाथ के
है सोचने पर भी यहाँ पहरा लगा हुआ
पंछी उड़ाते रह गया मैं ख़यालात के
फ़िर नए इक हादसे का इंतज़ार
पन्ने पलटते रह गया अख़बार के
शनिवार, 11 अक्तूबर 2008
अन्तिम सफर तो सब करते
आ लौट चलें बचपन में
क्या रख्खा जीवन में
दो सांसों का खेल है वरना
पञ्च तत्त्व इस तन में
लोरी कंचे लट्टू गुड़िया
कौन धड़कता मन में
धीरे धीरे रात का आँचल
उतर गया आँगन में
तेरे बोल घड़ी की टिक टिक
धड़कन धड़कन में
बरखा तो आई फ़िर भी
क्यों प्यासे सावन में
रोयेंगे चुपके चुपके
ज़ख्म रिसेंगे तन में
यूँ तो सब संगी साथी
कौन बसा जीवन में
तेरा मेरा सबका जीवन
सांसों के बंधन में
वो तो मौत झटक के आया
मरा तेरे आँगन में
मेरे सपने चुभेंगे तुमको
खेलो न मधुबन में
अन्तिम सफर तो सब करते
मिट्टी या चंदन में
क्या रख्खा जीवन में
दो सांसों का खेल है वरना
पञ्च तत्त्व इस तन में
लोरी कंचे लट्टू गुड़िया
कौन धड़कता मन में
धीरे धीरे रात का आँचल
उतर गया आँगन में
तेरे बोल घड़ी की टिक टिक
धड़कन धड़कन में
बरखा तो आई फ़िर भी
क्यों प्यासे सावन में
रोयेंगे चुपके चुपके
ज़ख्म रिसेंगे तन में
यूँ तो सब संगी साथी
कौन बसा जीवन में
तेरा मेरा सबका जीवन
सांसों के बंधन में
वो तो मौत झटक के आया
मरा तेरे आँगन में
मेरे सपने चुभेंगे तुमको
खेलो न मधुबन में
अन्तिम सफर तो सब करते
मिट्टी या चंदन में
मंगलवार, 7 अक्तूबर 2008
चंद टुकड़े कांच के
लूटने वाले को मेरे घर से क्या मिल पाएगा
चंद टुकड़े कांच के और सिसकता दिल पाएगा
इक फ़ूल का इज़हार था इकरार या इन्कार था
बंद हैं अब कागजों में फूल क्या खिल पाएगा
गाँव की पगडंडियों को छोड़ कर जो आ गया
शहर की तन्हाईयो में ख़ुद को शामिल पाएगा
ओस की एक बूँद ने प्यासे के होठों को छुआ
देखना अब जुस्तुजू को होंसला मिल जाएगा
जिंदगी की कशमकश का जहर जो पीता रहा
होंसले की इन्तहा को शिव के काबिल पाएगा
चंद टुकड़े कांच के और सिसकता दिल पाएगा
इक फ़ूल का इज़हार था इकरार या इन्कार था
बंद हैं अब कागजों में फूल क्या खिल पाएगा
गाँव की पगडंडियों को छोड़ कर जो आ गया
शहर की तन्हाईयो में ख़ुद को शामिल पाएगा
ओस की एक बूँद ने प्यासे के होठों को छुआ
देखना अब जुस्तुजू को होंसला मिल जाएगा
जिंदगी की कशमकश का जहर जो पीता रहा
होंसले की इन्तहा को शिव के काबिल पाएगा
अपनी कहानी
आज भी है याद मुझ को पहली मुलाकात
पलंग पर चादर बिठाते कांपते तेरे हाथ
खिलखिलाते होठ और गालों का तेरे तिल
ढूँढता ही रह गया उस दिन मैं अपना दिल
उठे उठे दाँत जैसे चाहते थे बोलना
शायद कोई राज जैसे चाहते थे खोलना
बोलना कुछ भी नही खामोश बैठना
ये करेंगे वो करेंगे घंटों सोचना
पलकें झुका बिंदी लगा सादगी सा रूपा
घर की छत पर सेकना सर्दियों की धूप
लाल साड़ी में सजी थाल पूजा का लिए
कनखियों से देखना आरती करते हुवे
कभी तो याद आते हैं सदाबहार के फूल
गर्मियों की शामें और उड़ती हुई धूल
हाथ में चप्पल उठाए, कोवलम की रेत पर
या कभी ऊटी के रस्ते चाय के हरे खेत पर
तिरुपति में कृष्ण से पहला साक्षात्कार
सामने आ जाता है लम्हा वो बार बार
गली के नुक्कड़ पे खाना गर्म कचोरी
बेसुरे सुर मैं सुनाना बच्चों को लोरी
बरसात के मौसम में फ़िर छत पे नहाना
कपड़े न बदलना कमरे मैं घुस आना
गर्मियों मैं अक्सर बिजली चले जाना
रात रात बैठ कर गाने नए गाना
रूई जैसे किक्की के गाल लाल लाल
रिड्क कर चलती हुई निक्की कि मस्त चाल
अक्सर किक्की को डांटते ही जाना बार बार
पड़ने की, कम खाने की लगाना फिर गुहार
शाम को हर रोज तेरी माँ के घर जाना
पानी भरना, घूमना फ़िर लौट कर आना
गोदी मैं ले कर बैठना किक्की को रात रात
क्या कहूँ मुझ को बहुत आते हैं वो दिन याद
मुझ को तो अब तक गुदगुदाता है हँसी वो पल
क्या तुझे भी याद है बीता हुआ कल ?
मुझ को तो अब तक याद है हर लम्हा ज़ुबानी
ये किक्की निक्की तेरी मेरी अपनी कहानी
पलंग पर चादर बिठाते कांपते तेरे हाथ
खिलखिलाते होठ और गालों का तेरे तिल
ढूँढता ही रह गया उस दिन मैं अपना दिल
उठे उठे दाँत जैसे चाहते थे बोलना
शायद कोई राज जैसे चाहते थे खोलना
बोलना कुछ भी नही खामोश बैठना
ये करेंगे वो करेंगे घंटों सोचना
पलकें झुका बिंदी लगा सादगी सा रूपा
घर की छत पर सेकना सर्दियों की धूप
लाल साड़ी में सजी थाल पूजा का लिए
कनखियों से देखना आरती करते हुवे
कभी तो याद आते हैं सदाबहार के फूल
गर्मियों की शामें और उड़ती हुई धूल
हाथ में चप्पल उठाए, कोवलम की रेत पर
या कभी ऊटी के रस्ते चाय के हरे खेत पर
तिरुपति में कृष्ण से पहला साक्षात्कार
सामने आ जाता है लम्हा वो बार बार
गली के नुक्कड़ पे खाना गर्म कचोरी
बेसुरे सुर मैं सुनाना बच्चों को लोरी
बरसात के मौसम में फ़िर छत पे नहाना
कपड़े न बदलना कमरे मैं घुस आना
गर्मियों मैं अक्सर बिजली चले जाना
रात रात बैठ कर गाने नए गाना
रूई जैसे किक्की के गाल लाल लाल
रिड्क कर चलती हुई निक्की कि मस्त चाल
अक्सर किक्की को डांटते ही जाना बार बार
पड़ने की, कम खाने की लगाना फिर गुहार
शाम को हर रोज तेरी माँ के घर जाना
पानी भरना, घूमना फ़िर लौट कर आना
गोदी मैं ले कर बैठना किक्की को रात रात
क्या कहूँ मुझ को बहुत आते हैं वो दिन याद
मुझ को तो अब तक गुदगुदाता है हँसी वो पल
क्या तुझे भी याद है बीता हुआ कल ?
मुझ को तो अब तक याद है हर लम्हा ज़ुबानी
ये किक्की निक्की तेरी मेरी अपनी कहानी
गुरुवार, 2 अक्तूबर 2008
रौशनी का लाल गोला खो गया है सहर से
बच गए थे चंद लम्हे ज़िंदग़ी के कहर से
साँस अब लेने लगे हैं वो तुम्हारे हुनर से
लोग कहते हैं तुम्हारी बात से झड़ते हैं फूल
रीता हुआ आँगन हूँ मैं गुज़रो कभी तो इधर से
बारिशों का कारवाँ रुकता नही है आँख से
दर्द का बादल कोई गुज़रा है मेरे शहर से
समय की पगडंडियों मैं स्वप्न बिखरे हैं मेरे
पाँव में कंकड़ चुभेंगे तुम चलोगे जिधर से
तमाम उम्र तुम महसूस करोगे मेरे अहसास को
तुम तो बस इक बीज हो मेरे उगाये शजर से
इक जमाना हो गया दीपक जलाये बैठा हूँ
कभी तो गुज़रोगे तुम मेरी राहे गुज़र से
तमाम उम्र तेरी आँख में बैठा रहूँगा
ख़्वाब देखोगे तुम सिर्फ़ मेरी नज़र से
जुगनुओं की मांग सारे शहर से है आ रही
क्या रौशनी का लाल गोला खो गया है सहर से?
साँस अब लेने लगे हैं वो तुम्हारे हुनर से
लोग कहते हैं तुम्हारी बात से झड़ते हैं फूल
रीता हुआ आँगन हूँ मैं गुज़रो कभी तो इधर से
बारिशों का कारवाँ रुकता नही है आँख से
दर्द का बादल कोई गुज़रा है मेरे शहर से
समय की पगडंडियों मैं स्वप्न बिखरे हैं मेरे
पाँव में कंकड़ चुभेंगे तुम चलोगे जिधर से
तमाम उम्र तुम महसूस करोगे मेरे अहसास को
तुम तो बस इक बीज हो मेरे उगाये शजर से
इक जमाना हो गया दीपक जलाये बैठा हूँ
कभी तो गुज़रोगे तुम मेरी राहे गुज़र से
तमाम उम्र तेरी आँख में बैठा रहूँगा
ख़्वाब देखोगे तुम सिर्फ़ मेरी नज़र से
जुगनुओं की मांग सारे शहर से है आ रही
क्या रौशनी का लाल गोला खो गया है सहर से?
सोमवार, 29 सितंबर 2008
दर्द जब कागज़ पर उतर आएगा
दर्द जब कागज़ पर उतर आएगा
चेहरा तेरा लफ्जों में नज़र आएगा
अपने हाथों की लकीरों में न छुपाना मुझे
हाथ छूते हि तेरा चेहरा निखर आएगा
बदल गया है मौसम् महक सी आने लगी
मुझे लगता है जैसे तेरा शहर आएगा
तेरे पहलू में बैठूं तुझसे कोई बात करुँ
एक लम्हा ही सही पर ज़रूर आएगा
एक मुद्दत से आँखे बंद किए बैठा हूँ
कभी तो ख्वाब में मेरा हज़ूर आएगा
चेहरा तेरा लफ्जों में नज़र आएगा
अपने हाथों की लकीरों में न छुपाना मुझे
हाथ छूते हि तेरा चेहरा निखर आएगा
बदल गया है मौसम् महक सी आने लगी
मुझे लगता है जैसे तेरा शहर आएगा
तेरे पहलू में बैठूं तुझसे कोई बात करुँ
एक लम्हा ही सही पर ज़रूर आएगा
एक मुद्दत से आँखे बंद किए बैठा हूँ
कभी तो ख्वाब में मेरा हज़ूर आएगा
ख्वाब मेरे
वक़्त के दामन में कितने
ख्वाब बिखरे हैं मेरे
साँस लेते हैं वो लम्हे
तोड़ न देना उन्हें
दूर तक आएंगे मेरी
याद के तारे नज़र
जब चलो तुम आसमां पर
देख तो लेना उन्हें
ख्वाब बिखरे हैं मेरे
साँस लेते हैं वो लम्हे
तोड़ न देना उन्हें
दूर तक आएंगे मेरी
याद के तारे नज़र
जब चलो तुम आसमां पर
देख तो लेना उन्हें
शनिवार, 13 सितंबर 2008
धुँधला गया है चाँद
चोह्दवीं की रात है और घुप्प अंधेरा
कायनात में मेरी बदला गया है चाँद
तुम अचानक आ गयी हो रात के दूजे पहर
देख कर चेहरा तेरा पगला गया है चाँद
तेरे माथे पर सिमट आया है जीवन
सुर्ख़ पा वन चांदनी पिघला गया है चाँद
पलकें झुकाए थाल पूजा का उठाये
रूप सादगी भरा नहला गया है चाँद
देर तक करता था मैं दादी से बातें
उम्र का है असर या धुँधला गया है चाँद
कायनात में मेरी बदला गया है चाँद
तुम अचानक आ गयी हो रात के दूजे पहर
देख कर चेहरा तेरा पगला गया है चाँद
तेरे माथे पर सिमट आया है जीवन
सुर्ख़ पा वन चांदनी पिघला गया है चाँद
पलकें झुकाए थाल पूजा का उठाये
रूप सादगी भरा नहला गया है चाँद
देर तक करता था मैं दादी से बातें
उम्र का है असर या धुँधला गया है चाँद
गुरुवार, 11 सितंबर 2008
अच्छा लगेगा
शहर दरिया हो या हो सहरा पहाड़
साथ दो तुम उम्र भर अच्छा लगेगा
थक चुका हूँ जिन्दगी की धूप में
छावं में तेरी मगर अच्छा लगेगा
सर्दियों का वक़्त और कुल्लू का मौसम
हो गयी है दोपहर अच्छा लगेगा
रेत का दरिया और हम तुम साथ हैं
ख़त्म न हो ये सफर अच्छा लगेगा
चाँद में धब्बे सहे नही जाते
आप जेसे भी हो पर अच्छा लगेगा
दिल ही रखने को सही पर बोल दो
याद आया दिगम्बर अच्छा लगेगा
रात होने को है और तन्हा हूँ में
लौट आओ मेरे घर अच्छा लगेगा
साथ दो तुम उम्र भर अच्छा लगेगा
थक चुका हूँ जिन्दगी की धूप में
छावं में तेरी मगर अच्छा लगेगा
सर्दियों का वक़्त और कुल्लू का मौसम
हो गयी है दोपहर अच्छा लगेगा
रेत का दरिया और हम तुम साथ हैं
ख़त्म न हो ये सफर अच्छा लगेगा
चाँद में धब्बे सहे नही जाते
आप जेसे भी हो पर अच्छा लगेगा
दिल ही रखने को सही पर बोल दो
याद आया दिगम्बर अच्छा लगेगा
रात होने को है और तन्हा हूँ में
लौट आओ मेरे घर अच्छा लगेगा
गुरुवार, 4 सितंबर 2008
कुछ तो है
कुछ तो है इस मन में जो बोला नही जाता
राज् कुछ गहरा है जो खोला नही जाता
में तो ऐसा ही हूँ जो अपना सको
हर किसी के साथ में तोला नही जाता
कोन से लम्हे में मेरा दिल जला था
बुझ गयी है आग पर शोला नही जाता
राज् कुछ गहरा है जो खोला नही जाता
में तो ऐसा ही हूँ जो अपना सको
हर किसी के साथ में तोला नही जाता
कोन से लम्हे में मेरा दिल जला था
बुझ गयी है आग पर शोला नही जाता
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