आज भी है याद मुझ को पहली मुलाकात
पलंग पर चादर बिठाते कांपते तेरे हाथ
खिलखिलाते होठ और गालों का तेरे तिल
ढूँढता ही रह गया उस दिन मैं अपना दिल
उठे उठे दाँत जैसे चाहते थे बोलना
शायद कोई राज जैसे चाहते थे खोलना
बोलना कुछ भी नही खामोश बैठना
ये करेंगे वो करेंगे घंटों सोचना
पलकें झुका बिंदी लगा सादगी सा रूपा
घर की छत पर सेकना सर्दियों की धूप
लाल साड़ी में सजी थाल पूजा का लिए
कनखियों से देखना आरती करते हुवे
कभी तो याद आते हैं सदाबहार के फूल
गर्मियों की शामें और उड़ती हुई धूल
हाथ में चप्पल उठाए, कोवलम की रेत पर
या कभी ऊटी के रस्ते चाय के हरे खेत पर
तिरुपति में कृष्ण से पहला साक्षात्कार
सामने आ जाता है लम्हा वो बार बार
गली के नुक्कड़ पे खाना गर्म कचोरी
बेसुरे सुर मैं सुनाना बच्चों को लोरी
बरसात के मौसम में फ़िर छत पे नहाना
कपड़े न बदलना कमरे मैं घुस आना
गर्मियों मैं अक्सर बिजली चले जाना
रात रात बैठ कर गाने नए गाना
रूई जैसे किक्की के गाल लाल लाल
रिड्क कर चलती हुई निक्की कि मस्त चाल
अक्सर किक्की को डांटते ही जाना बार बार
पड़ने की, कम खाने की लगाना फिर गुहार
शाम को हर रोज तेरी माँ के घर जाना
पानी भरना, घूमना फ़िर लौट कर आना
गोदी मैं ले कर बैठना किक्की को रात रात
क्या कहूँ मुझ को बहुत आते हैं वो दिन याद
मुझ को तो अब तक गुदगुदाता है हँसी वो पल
क्या तुझे भी याद है बीता हुआ कल ?
मुझ को तो अब तक याद है हर लम्हा ज़ुबानी
ये किक्की निक्की तेरी मेरी अपनी कहानी
सुंदर काव्य रचना के लिए बधाई स्वीकारें मेरे ब्लॉग पर आपका आगमन के लिए बहुत बहुत धनयबाद नई रचना हैण्ड वाश डे पढने पुन: आमंत्रित हैं
जवाब देंहटाएंduniya ki SARII KHUSHIYAN apko mile!!!! =D
जवाब देंहटाएं20AC9FAA00
जवाब देंहटाएंkiralık hacker
hacker bulma
tütün dünyası
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