कष्ट में भी हास्य की संभावना बाकी रहे
प्रेम का बंधन रहे सदभावना बाकी रहे
यूँ करो स्पर्श मेरा दर्द सब जाता रहे
शूल हों पग में मगर ना यातना बाकी रहे
इस तरह से ज़िन्दगी का संतुलन होता रहे
जय पराजय की कभी ना भावना बाकी रहे
आप में शक्ति हे फिर चाहे के दर्शन दो न दो
पर ह्रदय में आपकी अवधारना बाकी रहे
सात फेरे डालना है आत्माओं का मिलन
इस तरह परिणय न हो, स्वीकारना बाकी रहे
कर सको निर्माण तो ऐसा करो इस देश में
प्रेम की फंसलें उगी हों काटना बाकी रहे
थाल पूजा का लिए चंचल निगाहें देख लूं
हे प्रभू फिर और कोई चाह ना बाकी रहे
सोमवार, 21 मार्च 2011
सोमवार, 14 मार्च 2011
आज के नेता
सपनों की सौगात उठाई होती है
वादों की बारात सजाई होती हैं
वोटों की खातिर नेताओं ने देखो
दुनिया भर में आग लगाई होती है
इनकी शै पर इनके चॅमचों ने कितनी
गुंडागर्दी आम मचाई होती है
घोटाले पर घौटाले करते जाते
लीपा पोती आग बुझाई होती है
सूखा हो या हाहाकार मचा कितना
इनके हिस्से ढेर मलाई होती है
कुर्सी कुर्सी खेल रहे हैं सब नेता
कहने को बस टाँग खिचाई होती है
हिंदू मुस्लिम इनकी सत्ता के मुहरे
मंदिर मस्जिद रोज़ लड़ाई होती है
वादों की बारात सजाई होती हैं
वोटों की खातिर नेताओं ने देखो
दुनिया भर में आग लगाई होती है
इनकी शै पर इनके चॅमचों ने कितनी
गुंडागर्दी आम मचाई होती है
घोटाले पर घौटाले करते जाते
लीपा पोती आग बुझाई होती है
सूखा हो या हाहाकार मचा कितना
इनके हिस्से ढेर मलाई होती है
कुर्सी कुर्सी खेल रहे हैं सब नेता
कहने को बस टाँग खिचाई होती है
हिंदू मुस्लिम इनकी सत्ता के मुहरे
मंदिर मस्जिद रोज़ लड़ाई होती है
सोमवार, 7 मार्च 2011
सूरज के आने से पहले ...
भोर ने आज
जब थपकी दे कर मुझे उठाया
जाने क्यों ऐसा लगा
सवेरा कुछ देर से आया
अलसाई सी सुबह थी
आँखों में कुछ अधखिले ख्वाब
खिड़की के सुराख से झाँक रहा था
अंधेरों का धुंधला साया
मैं दबे पाँव तेरे कमरे में आया
देखा ... तेरे बिस्तर के मुहाने
सुबह की पहली किरण तेरे होठों को चूम रही थी
सोए सोए तू करवट बदल होले से मुस्कुराइ
हवा के झोंके के साथ
कच्ची किरण ने ली अंगड़ाई
रात के घुप्प अंधेरे को चीर
वो कायनात में जा समाई
अगले ही पल
सवेरे ने दस्तक दी
अंधेरे की गठरी उठा
रात बिदा हुई
मुद्दतों बाद
मुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया
जब थपकी दे कर मुझे उठाया
जाने क्यों ऐसा लगा
सवेरा कुछ देर से आया
अलसाई सी सुबह थी
आँखों में कुछ अधखिले ख्वाब
खिड़की के सुराख से झाँक रहा था
अंधेरों का धुंधला साया
मैं दबे पाँव तेरे कमरे में आया
देखा ... तेरे बिस्तर के मुहाने
सुबह की पहली किरण तेरे होठों को चूम रही थी
सोए सोए तू करवट बदल होले से मुस्कुराइ
हवा के झोंके के साथ
कच्ची किरण ने ली अंगड़ाई
रात के घुप्प अंधेरे को चीर
वो कायनात में जा समाई
अगले ही पल
सवेरे ने दस्तक दी
अंधेरे की गठरी उठा
रात बिदा हुई
मुद्दतों बाद
मुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया
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