स्वप्न मेरे: मार्च 2020

सोमवार, 30 मार्च 2020

हिसाब चाहत का


कहाँ खिलते हैं फूल रेगिस्तान में ... हालांकि पेड़ हैं जो जीते हैं बरसों बरसों नमी की इंतज़ार में ... धूल है की साथ छोड़ती नहीं ... नमी है की पास आती नहीं ... कहने को सागर साथ है पीला सा ...

मैंने चाहा तेरा हर दर्द
अपनी रेत के गहरे समुन्दर में लीलना

तपती धूप के रेगिस्तान में मैंने कोशिश की
धूल के साथ उड़ कर
तुझे छूने का प्रयास किया

पर काले बादल की कोख में
बेरंग आंसू छुपाए
बिन बरसे तुम गुजर गईं  

आज मरुस्थल का वो फूल भी मुरझा गया
जी रहा था जो तेरी नमी की प्रतीक्षा में

कहाँ होता है चाहत पे किसी का बस ...

सोमवार, 23 मार्च 2020

यूँ ही ... एक ख़ुशबू ...

हालाँकि छूट गया था शहर 
छूट जाती है जैसे उम्र समय के साथ 
टूट गया वो पुल 
उम्मीद रहती थी जहाँ से लौट आने की 
पर एक ख़ुशबू है, भरी रहती है जो नासों में 
बिना खिंचेबिना सूंघे 

लगता है खिलने लगा है आस-पास 
जंगली गुलाब का फूल कोई 

या ... गुजरी हो तुम इस रास्ते से कभी 

वैसे मनाही तुम्हारी याद को भी नहीं 
उठा लाती है जो तुम्हें 
जंगली गुलाब की ख़ुशबू लपेटे 

#जंगली_गुलाब 

रविवार, 15 मार्च 2020

हवा का रुख़ कभी का मोड़ आया ...

क़रीब दो महीने हो गएअभी तक देश की मिट्टी का आनंद ले रहा हूँ ... कुछ काम तो कुछ करोना का शोर ... उम्मीद है जल्दी ही मलेशिया लौटना होगा ... ब्लॉग पर लिखना भी शायद तभी नियमित हो सके ... तब तक एक ताज़ा गज़ल  ...

कई क़िस्सों को पीछे छोड़ आया 
सड़क तन्हाई की दौड़ आया 

शहर जिस पर तरक़्क़ी के शजर थे 
तेरी पगडंडियों से जोड़ आया 

किसी की सिसकियों का दर्द ले कर 
गुबाड़े कुछ हँसी के फोड़ आया 

तेरी यादों की गुल्लक तोड़ कर मैं 
सभी रिश्ते पुराने तोड़ आया 

वहाँ थे मोह के किरदार कितने 
दुशाला प्रेम का मैं ओढ़ आया 

भरे थे जेब में आँसू किसी के 
समुन्दर मिल रहा था छोड़ आया 

कभी निकलो तो ले कर अपनी कश्ती 
हवा का रुख़ कभी का मोड़ आया 
#मद्धम_मद्धम