स्वप्न मेरे: #जंगली_गुलाब
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सोमवार, 6 नवंबर 2023

वज़ह प्रेम की …

उँगलियों में चुभे कांटे
इसलिए भी गढ़े रहने देता हूँ
की हो सके एहसास खुद के होने का

हालाँकि करता हूँ रफू ... जिस्म पे लगे घाव
फिर भी दिन है की रोज टपक जाता है ज़िन्दगी से

उम्मीद घोल के पीता हूँ हर शाम
कि बेहतर है सपने टूटने से
उम्मीद के हैंग-ओवर में रहना


सिवाए इसके की खुदा याद आता है
वज़ह तो कुछ भी नहीं तुम्हें प्रेम करने की

और वजह जंगली गुलाब के खिलने की ...?
ये कहानी फिर कभी ...

शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2023

खास दिन ...

सृष्टि ने जब कुछ देना है तो वो दे देती है, क्योंकि इंसान के जीवन में हर सजीव हर लम्हा उस कायनात का दिया हुआ ही तो है … ये दिन, ये महूरत … सब इंसानी बाते हैं … पर हम भी तो इंसान हैं … तो क्यों न दिन को खास मानें …

वक़्त की टहनियों पे टंगे प्रेम के गुलाबी लम्हे
संदली ख़ुशबू का झीना आवरण ओढ़े
सजीव हो उठते हैं सूरज की पहली किरण के साथ ...

ताज़ा हवा के झौकों के साथ
कायनात में खिलने लगते हैं जंगली गुलाब
कहीं मुखर हो जाते हैं डायरी में बन्द सूखे फूल जैसे

कहीं सादगी से पलकें झुकाए
तो कहीं आसमानी चुन्नी में महकते
जुड़ जाते हैं तमान ये लम्हे उम्र के हसीन सफ़र में

सच कहूँ ...
तुम ही तो मेरे एहसास का जंगली गुलाब हो
पुरानी डायरी का सूखा फूल
जागती आँखों का पहला ख़्वाब
देखा है जिसे ज़िन्दगी बनते बरसों पहले, तुम्हारे साथ ...
Love you Jana 🌹🌹🌹

#मद्धम_मद्धम 

बुधवार, 2 मार्च 2022

हिसाब कुछ लम्हों का ...

जल्द ही ओढ़ लेगा सन्यासी चुनर
की रात का गहराता साया
मेहमान बन के आता है रौशनी के शहर
 
मत रखना हिसाब मुरझाए लम्हों का
स्याह से होते किस्सों का
 
नहीं सहेजना जख्मी यादें
सांसों की कच्ची-पक्की बुग्नी में
 
काट देना उम्र से वो टुकड़े
जहाँ गढ़ी हो दर्द की नुकीली कीलें
और न निकलने वाले काँटों का गहरा एहसास  
 
की हो जाते हैं कुछ अच्छे दिन भी बरबाद
इन सबका हिसाब रखने में
 
वैसे जंगली गुलाब की यादों के बारे में
क्या ख्याल है ...

बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

जंगली गुलाब ...

लम्बे समय से गज़ल लिखते लिखते लग रहा है जैसे मेरा जंगली-गुलाब कहीं खो रहा है ... तो आज एक नई रचना के साथ ... अपने जंगली गुलाब के साथ ...
 
प्रेम क्या डाली पे झूलता फूल है ... 
मुरझा जाता है टूट जाने के कुछ लम्हों में
माना रहती हैं यादें, कई कई दिन ताज़ा
 
फिर सोचता हूँ प्रेम नागफनी क्यों नहीं 
रहता है ताज़ा कई कई दिन, तोड़ने के बाद 
दर्द भी देता है हर छुवन पर, हर बार  
 
कभी लगता है प्रेम करने वाले हो जाते हैं सुन्न  
दर्द से परे, हर सीमा से विलग 
बुनते हैं अपन प्रेम-आकाश, हर छुवन से इतर
 
देर तक सोचता हूँ, फिर पूछता हूँ खुद से
क्या मेरा भी प्रेम-आकाश है ... ? 
कब, कहाँ, कैसे, किसने बुना ...
पर उगे तो हैं, फूल भी नागफनी भी
क्यों ...
 
कसम है तुम्हें उसी प्रेम की
अगर हुआ है कभी मुझसे, तो सच-सच बताना  
प्रेम तो शायद नहीं ही कहेंगे उसे ...
 
तुम चाहो तो जंगली-गुलाब का नाम दे देना ... 

सोमवार, 27 अप्रैल 2020

दास्ताँ - हसीन सपनों की ...


इंद्र-धनुष के सात रँगों में रँग नहीं होते ... रँग सूरज की किरणों में भी नहीं होते और आकाश के नीलेपन में तो बिलकुल भी नहीं ... रँग होते हैं तो देखने वाले की आँखों में जो जागते हैं प्रेम के एहसास से ...  

दुनिया रंगीन दिखे
इसलिए तो नहीं भर लेते रँग आँखों में   

उदास रातों की कुछ उदास यादें
आँसू बन के न उतरें
तो खुद-ब-खुद रंगीन हो जाती है दुनिया

दुनिया तब भी रंगीन होती है
जब हसीन लम्हों के द्रख्त
जड़ बनाने लगते हैं दिल की कोरी ज़मीन पर
क्योंकि उसके साए में उगे रंगीन सपने
जगमगाते हैं उम्र भर

सच पूछो तो दुनिया तब भी रंगीन होती है     
जब तेरे एहसास के कुछ कतरे लिए  
फूल फूल डोलती हैं तितलियाँ
ओर उनके पीछे भागते कुछ मासूम बच्चे
रँग-बिरँगे कपड़ों में

पूजा की थाली लिए
गुलाबी साड़ी पे आसमानी शाल ओढ़े 
तुम भी तो करती हो चहल-कदमी रोज़ मेरे ज़ेहन में
दुनिया इसलिए भी तो रंगीन होती है

दुनिया इसलिए भी रंगीन होती है
कि टांकती हो तुम जुड़े में जंगली गुलाब

#जंगली_गुलाब

सोमवार, 20 अप्रैल 2020

लम्हे ... तितर-बितर यादों से ...


पता नही प्रेम है के नही ... पर कुछ करने का मन करना वो भी किसी एक की ख़ातिर ... जो भी नाम देना चाहो दे देना ... हाँ ... जैसे कुछ शब्द रखते हैं ताकत अन्दर तक भिगो देने की, वैसे कुछ बारिशें बरस कर भी नहीं बरस पातीं ... लम्हों का क्या ... कभी सो गए कभी चुभ गए ... ये भी तो लम्हे हैं तितर-बितर यादों से ...

रात के तीसरे पहर
पसरे हुए घने अँधेरे की चादर तले
बाहों में बाहें डाल दिन के न निकलने की दुआ माँगना
प्रेम तो नहीं कह सकते इसे

किस्मत वाले हैं जिन्होंने प्रेम नहीं किया
जंगली गुलाब के गुलाबी फूल उन्हें गुलाबी नज़र आते हैं

उतार नहीं पाता ठहरी हुयी शान्ति मन में
कि आती जाती साँसों का शोर
खलल न डाल दे तुम्हारी नींद में
तुम इसे प्यार समझोगी तो ये तुम्हारा पागलपन होगा 

हर आदमी के अन्दर छुपा है शैतान
हक़ है उसे अपनी बात कहने का
तुमसे प्यार करने का भी

काश के टूटे मिलते सड़कों पे लगे लैम्प
काली हो जाती घनी धूप
आते जातों से नज़रें बचा कर
टांक देता जंगली गुलाब तेरे बालों में
वैसे मनाही तो नहीं तुम्हें चूमने की भी

#जंगली_गुलाब 

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

शिद्दत ...


तुम्हें सामने खड़ा करके बुलवाता हूँ कुछ प्रश्न तुमसे ... फिर देता हूँ जवाब खुद को, खुद के ही प्रश्नों का ... हालाँकि बेचैनी फिर भी बनी रहती है ... अजीब सी रेस्टलेसनेस ... आठों पहर ...   

पूछती हो तुम ... क्यों डूबे रहते हो यादों में ... ?
मैं ... क्या करूँ
समुन्दर का पानी जो कम है डूबने के लिए
(तुम उदासी ओढ़े चुप हो जाती हो, जवाब सुनने के बाद)
...
मैं कहता हूँ ... अच्छा ऐसा करो वापस आ जाओ मेरे पास
यादें खत्म हो जाएंगी खुद-ब-खुद
(क्या कहा ... संभव नहीं ...)

मैं ... चलो ऐसा करो
पतझड़ के पत्तों की तरह
जिस्म से पुरानी यादों को काटने का तिलिस्म
मुझे भी सिखा दो

ताज़ा हवा के झोंके नहीं आते थे मेरे करीब

मुलाकात का सिलसिला जब आदत हो गया
तमाम रोशनदान बन्द हो गए थे

सुबह के साथ फैलता है यादों का सैलाब

रात के पहले पहर दिन तो सो जाता है
पर रौशनी कम नहीं होती
यादों के जुगनू जो जगमगाते हैं   

मालुम है मुझे शराब ओर तुम्हारी मदहोशी का नशा 
टूटने के बाद तकलीफ देगा 

पर क्या करूँ
शिद्दत ... कमीनी कम नहीं होती
#जंगली_गुलाब

सोमवार, 30 मार्च 2020

हिसाब चाहत का


कहाँ खिलते हैं फूल रेगिस्तान में ... हालांकि पेड़ हैं जो जीते हैं बरसों बरसों नमी की इंतज़ार में ... धूल है की साथ छोड़ती नहीं ... नमी है की पास आती नहीं ... कहने को सागर साथ है पीला सा ...

मैंने चाहा तेरा हर दर्द
अपनी रेत के गहरे समुन्दर में लीलना

तपती धूप के रेगिस्तान में मैंने कोशिश की
धूल के साथ उड़ कर
तुझे छूने का प्रयास किया

पर काले बादल की कोख में
बेरंग आंसू छुपाए
बिन बरसे तुम गुजर गईं  

आज मरुस्थल का वो फूल भी मुरझा गया
जी रहा था जो तेरी नमी की प्रतीक्षा में

कहाँ होता है चाहत पे किसी का बस ...

सोमवार, 23 मार्च 2020

यूँ ही ... एक ख़ुशबू ...

हालाँकि छूट गया था शहर 
छूट जाती है जैसे उम्र समय के साथ 
टूट गया वो पुल 
उम्मीद रहती थी जहाँ से लौट आने की 
पर एक ख़ुशबू है, भरी रहती है जो नासों में 
बिना खिंचेबिना सूंघे 

लगता है खिलने लगा है आस-पास 
जंगली गुलाब का फूल कोई 

या ... गुजरी हो तुम इस रास्ते से कभी 

वैसे मनाही तुम्हारी याद को भी नहीं 
उठा लाती है जो तुम्हें 
जंगली गुलाब की ख़ुशबू लपेटे 

#जंगली_गुलाब