शुक्रवार, 30 सितंबर 2022
तुम आओ ...
बहुत चाहा शब्द गढ़ना
रविवार, 25 सितंबर 2022
माँ …
बीतते बीतते आज दस वर्ष हो गए, वर्ष बदलते रहे पर तारीख़ वही 25 सितम्बर … सच है जाने वाले याद रहते हैं मगर तारीख़ नहीं, परदेख आज की तारीख़ ऐसी है जो भूलती ही नहीं … तारीख़ ही क्यों, दिन, महीना, साल, कुछ भी नहीं भूलता … और तू … अब क्या कहूँ… मज़ा तो अब भी आता है तुझसे बात करने का … तुझे महसूस करने का …
माँ हक़ीक़त में तु मुझसे दूर है.
पर मेरी यादों में तेरा नूर है.
पहले तो माना नहीं था जो कहा,
लौट आ, कह फिर से, अब मंज़ूर है.
तू हमेशा दिल में रहती है मगर,
याद करना भी तो इक दस्तूर है.
रोक पाना था नहीं मुमकिन तुझे,
क्या करूँ अब दिल बड़ा मजबूर है.
तू मेरा संगीत, गुरु-बाणी, भजन,
तू मेरी वीणा, मेरा संतूर है.
तू ही गीता ज्ञान है मेरे लिए,
तू ही तो रसखान, मीरा, सूर है.
तू खुली आँखों से अब दिखती नहीं,
पर तेरी मौजूदगी भरपूर है.
बुधवार, 21 सितंबर 2022
नाज़ुक ख्वाब ...
उनींदी सी रात ओढ़े
जागती आँखों ने हसीन ख्व़ाब जोड़े
सुबह की आहट से पहले
छोड़ आया उन्हें तेरी पलकों तले
कच्ची धूप की पहली किरण
तुम्हारी पलकों पे जब दस्तक दे
हौले से अपनी नज़रें उठाना
नाज़ुक से मेरे ख्वाब
बिखर न जाएँ समय से पहले कहीं ...
सोमवार, 12 सितंबर 2022
नाक़ाम इश्क़ ...
काँटों की चुभन है नाक़ाम इश्क़
रहने नहीं देती जो चैन से
महसूस होता है रिस्ता दर्द, रह-रह के चुभती कील सरीखे
एक अन्तहीन दौड़ की दौड़
क्या प्रेम की प्राप्ति के लिए ?
या भटकता है खुद की तलाश में इन्सान ?
नाक़ाम इश्क़ के रिश्ते सँजोना
दीमक लगे पेड़ को जीवित रखने का प्रयास है
जो पनपने नहीं देता नए रिश्तों की नाज़ुक कोंपलें
काटना होता है ऐसे तमाम पेड़ों को दिल की बंज़र ज़मीन से
खिले होते हैं बहुत से जंगली गुलाब
नज़र भर देखना होता है आस-पास का मंज़र
ज़िन्दगी की दौड़ में
समय बदलते ... समय नहीं लगता ...
बुधवार, 7 सितंबर 2022
रेशमी एहसास ...
हरे पहाड़ों की चोटियों से
उतरते सफ़ेद बादल
रुक जाते हैं बल खाती काली सड़क के सीने पर
ललक है तुम्हें छूने की
इतना करीब से
की समेट सकें तेरी साँसों की महक उम्र भर के लिए
वो जानते हैं झाँकोगी तुम खुली खिड़की से
छुओगी नर्म हथेली से वो रेशमी एहसास ...
ठीक उसी वक़्त मैं भी हो जाऊँगा धुँवा-धुँवा
घुल जाऊँगा बादलों की नर्म छुवन में
सुन प्रकृति की अप्रतिम रचना ... मेरे जंगली गुलाब
छू के देखना अपने माथे की चन्द लकीरों उस पल
नमी की बूँद में महसूस करोगी मुझको
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