हम दिसंबर की इक्कत्तिस रात में अब क्या करें ?
क्या विगत का ग़म के स्वागत मिल के आगत का करें ?
हम दिसंबर की …
है जो यह नव-वर्ष तम के साथ फिर आता है क्यों ?
बात है आनंद कि तो दुख चले आता है क्यों ?
नींद की टिक-टिक में उतरें पल तो क्या उसका करें ?
हम दिसंबर की …
वेदना का अंत क्या नव-वर्ष से हो पाएगा ?
भूख से छुटकारा क्या मानव को फिर मिल पाएगा ?
व्यर्थ है अवधारणा तो गीत क्यों गाया करें ?
हम दिसंबर की …
चल रहा आदित्य-पृथ्वी-चंद्रमा का दिव्य रथ,
लय सुनिश्चित, ताल नियमित, काल का पर एक पथ,
फिर बदल के वर्ष यह व्यवधान क्यों पैदा करें ?
हम दिसंबर की …
अभी तो
कुछ बयानों में गिरी हैं.
सभा में खून की छींटें गिरी हैं.
सुबह के साथ सब फीकी मिलेंगी,
ज़मीं पे रात कि पहरें गिरी हैं.
इसे मत दर्द के आँसू समझना,
टपकती आँख से यादें गिरी हैं.
मिले तिनका तो फिर उठने लगेंगी,
हथेली से जो उम्मीदें गिरी हैं.
बहुत याद आएगा खण्डहर जहाँ पर,
हमारे प्रेम की शक्लें गिरी हैं.
जवानी, बचपना, रिश्ते ये हसरत,
बिखर कर उम्र से चीजें गिरी हैं.
किसी ने स्याही छिड़की आसमाँ पर,
उफ़ुक़ से रात की बूँदें गिरी हैं.
जोड़ जो अपने गुनाहों का लगाया उस दिन.
आईना शर्म से फिर देख न पाया उस दिन.
कुछ परिंदों को गुलामी से बचाया उस दिन,
दाने-दाने पे रखा जाल उठाया उस दिन.
खूब दौड़े थे मगर वक़्त कहाँ हाथ आया,
यूँ ही किस्मत ने हमें खूब छकाया उस दिन.
होंसला रख के जो पतवार चलाने निकले,
खुद समुन्दर ने हमें पार लगाया उस दिन.
आ रहा है, अभी निकला है, पहुँचता होगा,
यूँ ही वो शाम तलक मिलने न आया उस दिन.
जीत का लुत्फ़ उठाए तो उठा लेने दो,
हार का हमने भी तो जश्न मनाया उस दिन.
अजनबी खुद को समझने की न गलती कर दूँ,
अपने चेहरे से मुखोटे को हटाया उस दिन.
रात को कहना सुबह जब लौट के घर जाएगी.
एक प्याली चाय मेरे साथ पी कर जाएगी.
चाँद है मेरी मेरी बगल में पर मुझे यह खौफ़ है,
कार की खिड़की खुली तो चाँदनी डर जाएगी.
प्रेम सागर का नदी से इक फरेबी जाल है,
जानती है ना-समझ मिट जाएगी, पर जाएगी.
है बड़ा आसान इसको काट कर यूँ फैंकना,
ज़ख्म दिल को पर अंगूठी दे के बाहर जाएगी.
बादलों के झुण्ड जिस पल धूप को उलझायेंगे,
नींद उस पल छाँव बन कर आँख में भर जाएगी.
चल रही होगी समुन्दर में पिघलती शाम जब,
चाँद झोली में छुपा के रात ऊपर जाएगी.
एक पुरानी विल्स
की सिगरेट जैसी है.
ख़ाकी फ्रौक में
लड़की सचमुच ऐसी है.
हंसी-ठिठोली, कूद-फाँद, ये मस्त-नज़र,
अस्त-व्यस्त सी
लड़की देखो कैसी है.
फ़ेस बनाता क्यों
है उस लड़की जैसे,
बादल अब तेरी तो
ऐसी-तैसी है.
सूरत, सीरत, आदत, अब क्या-क्या बोलूँ,
जैसी बाहर अंदर
बिलकुल वैसी है.
गहरा कश भर कर उस
दिन फिर भाग गई,
खौं-खौं करती
लड़की वाक़ई मैसी है.