अपने चेहरे से मुखोटे को हटाया उस दिन ...
जोड़ जो अपने गुनाहों का लगाया उस दिन.
आईना शर्म से फिर देख न पाया उस दिन.
कुछ परिंदों को गुलामी से बचाया उस दिन,
दाने-दाने पे रखा जाल उठाया उस दिन.
खूब दौड़े थे मगर वक़्त कहाँ हाथ आया,
यूँ ही किस्मत ने हमें खूब छकाया उस दिन.
होंसला रख के जो पतवार चलाने निकले,
खुद समुन्दर ने हमें पार लगाया उस दिन.
आ रहा है, अभी निकला है, पहुँचता होगा,
यूँ ही वो शाम तलक मिलने न आया उस दिन.
जीत का लुत्फ़ उठाए तो उठा लेने दो,
हार का हमने भी तो जश्न मनाया उस दिन.
अजनबी खुद को समझने की न गलती कर दूँ,
अपने चेहरे से मुखोटे को हटाया उस दिन.
अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
जवाब देंहटाएंgreetings from malaysia
let's be friend
अजनबी खुद को समझने की न गलती कर दूँ,
जवाब देंहटाएंअपने चेहरे से मुखोटे को हटाया उस दिन.
वाह!! बेहतरीन ग़ज़ल, ज़िंदगी की हक़ीक़त को खोलती हुई सी
होंसला रख के जो पतवार चलाने निकले,
खुद समुन्दर ने हमें पार लगाया उस दिन.
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अजनबी खुद को समझने की न गलती कर दूँ,
अपने चेहरे से मुखोटे को हटाया उस दिन.
.. बहुत खूब!
आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनायें
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (22-12-2022) को "सबके अपने तर्क" (चर्चा अंक-4629) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अजनबी खुद को समझने की न गलती कर दूँ,
जवाब देंहटाएंअपने चेहरे से मुखोटे को हटाया उस दिन.
क्या खूब लिखा है आदरणीय आपकी लेखनी को नमन
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
वाह! शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहर शेर उम्दा चुस्त दुरुस्त।
वाह! शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहर शेर उम्दा चुस्त दुरुस्त।
सुंदर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंसादर
जोड़ जो अपने गुनाहों का लगाया उस दिन.
जवाब देंहटाएंआईना शर्म से फिर देख न पाया उस दिन.
शानदार ग़ज़ल .... हर शेर सोचने पर मजबूर करता हुआ ।
आदरणीय सर,
जवाब देंहटाएंआपकी रचना आज के पाँच लिंक के अंक में
जोड़ी गयी है जिसका आमंत्रण हम देकर गये थे पर अब दीख नहीं रही शायद स्पेम में चली गयी हो कृपया स्पेम में देखकर प्रकाशित कर दीजिए।
सादर।
खूब दौड़े थे मगर वक़्त कहाँ हाथ आया,
जवाब देंहटाएंयूँ ही किस्मत ने हमें खूब छकाया उस दिन.
वाह!!!!
जोड़ जो अपने गुनाहों का लगाया उस दिन.
आईना शर्म से फिर देख न पाया उस दिन.
लाजवाब 👌👌👏👏👏🙏🙏🙏
खूब दौड़े थे मगर वक़्त कहाँ हाथ आया,
जवाब देंहटाएंयूँ ही किस्मत ने हमें खूब छकाया उस दिन.
वाह!!!!
जोड़ जो अपने गुनाहों का लगाया उस दिन.
आईना शर्म से फिर देख न पाया उस दिन.
लाजवाब 👌👌👏👏👏🙏🙏🙏
आ रहा है, अभी निकला है, पहुंचता होगा...दिल छू गयी यह पंक्ति.. वाह
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक शेरों सजी रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं दिगम्बर जी।आपके शेरो से निशाब्द
जवाब देंहटाएंजोड़ जो अपने गुनाहों का लगाया उस दिन.
जवाब देंहटाएंआईना शर्म से फिर देख न पाया उस दिन.////
एक से बढ़कर एक शेरों सजी रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं दिगम्बर जी।आपके शेरो से निशब्द हूँ।आपके सृजन की आभा निराली और अंदाजे बयां और है।सादर 🙏