मैं देखता था सपने कुछ बनने
के
भाई भी देखता था कुछ ऐसे ही
सपने
बहन देखती थी कुछ सपने जो
मैं नहीं जान सका
पर माँ जरूर जानती थी
उन्हें, बिना जाने ही
सपने तो पिताजी भी देखते थे
हमारे भविष्य के
एक छोटे से मकान के, सुखी
परिवार के
समाज में, रिश्तेदारी में
एक मुकाम के
हर किसी के पास अपने सपनों
की गठरी थी
सबको अपने सपनों से लगाव
था,
अनंत फैलाव था, जहां चाहते
थे सब छलांग लगाना
वो सब कुछ पाना, जिसकी वो
करते थे कल्पना
ऐसा नहीं की माँ नहीं देखती
थी सपने
वो न सिर्फ देखती थी, बल्कि
दुआ भी मांगती थी उनके पूरे होने की
मैं तो ये भी जानता हूं ...
हम सब में बस वो ही थीं, जो
सतत प्रयास भी करती थी
अपने सपनों को पूर्णतः पा
लेने की
हाँ ... ये सच है की एक ही
सपना था माँ का
और ये बात मेरे साथ साथ घर
के सब जानते थे
और वो सपना था ...
हम सब के सपने पूरे होने का
सपना
उसके हाथ हमारे सपने पूरे
होने की दुआ में ही उठते रहे
हालंकि सपने तो मैं अब भी
देखता हूँ
शायद मेरे सपने पूरे होने
की दुआ में उठने वाले हाथ भी हैं
पर मेरे सपने पूरे हों ...
बस ऐसा ही सपने देखने वाली
माँ नहीं है अब ...